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महाकुम्भ : सनातन संस्कृति में अयोध्या की चार पट्टियों की महत्ता, हनुमानगढ़ी की कमान है इनके हाथ

महाकुम्भ नगर, 5 फरवरी (हि.स.)। सनातन धर्म के सबसे बड़े पर्व महाकुम्भ में आपको अलग-अलग मत, पंथ और सम्प्रदाय को मानने वाले मिल जाएंगे। 25 सेक्टर में फैले मेला क्षेत्र में स्थान-स्थान पर आपको भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के शिविर स्थापित हैं। सेक्टर 20 में सनातन धर्म के 13 अखाड़ों के भव्य शिविर स्थापित हैं। यहां वैष्णव मत के श्री निर्वाणी अनी अखाड़े की भव्यता देखते ही बनती है। अयोध्या हनुमानगढ़ी में रामानंदी संप्रदाय के अंतर्गत वैष्णव साधु होते हैं जो चार पट्टी में विभक्त हैं। ये वैष्णव साधु निर्वाणी अखाड़े का ही अंग हैं।

अयोध्या की चार पट्टियांसनातन परम्परा और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका सिद्ध पीठों की भी रहती है। हिंदू धर्म में ऐसे कई पौराणिक और प्राचीन सिद्ध पीठ हैं जहां अपना नियम कानून चलता है। ऐसी की एक सिद्ध पीठ रामनगरी अयोध्या में भी है। हम बात कर रहे हैं अयोध्या के हनुमान गढ़ी सिद्ध पीठ की। जहां प्रधानमंत्री (चार पट्टी के महंत) से लेकर राष्ट्रपति (गद्दीनशीन) का अपना कानून है। वैसे तो अपने सुना ही होगा की हर मठ-मंदिर में एक महंत होता है, लेकिन अयोध्या के हनुमानगढ़ी में चार पट्टी हैं, जिसके चार महंत होते हैं और एक गद्दीनशीन यानी प्रमुख होता हैं।

निर्वाणी अखाड़े के अंतर्गत है चार पट्टियांहनुमानगढ़ी में रामानंदी संप्रदाय के निर्वाणी अखाड़े के अंतर्गत वैष्णो साधु होते हैं जो चार पट्टी में विभक्त हैं। उज्जैनिया, सागरिया, बसंती और हरिद्वारी। यह 4 महंत हनुमानगढ़ी के प्रधानमंत्री होते हैं। इनके ऊपर एक राष्ट्रपति हैं, जिसे गद्दीनशीन कहा जाता है। बता दें कि हनुमानगढ़ी के पहले गद्दीनशीन अभय रामदास महाराज थे। सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी में वर्तमान गद्दीनशीन प्रेमदास हैं, जो 51वें गद्दीनशीन पर आसीन हैं। वर्तमान समय में सगरिया पट्टी के गद्दीनशीन बनाए गए है।

चार पट्टियों के वर्तमान महंतवर्तमान में हरिद्वारी पट्टी के महंत राजेश दास पहलवान, उज्जैनिया पट्टी के महंत संत राम दास, सागरीय पट्टी के महंत ज्ञान दास और बसंतियापट्टी के मंहत रामचरण दास हैं। यही चारों पट्टियां हनुमानगढ़ी की व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से संभालती है।

कैसे बनते हैं गद्दीनशीनहनुमानगढ़ी के हरिद्वारी पट्टी के महंत राजेश दास पहलवान बताते हैं कि चार पट्टी के 3-3 लोगों का नाम अखाड़े में भेजा जाता है। अखाड़े के लोग चुनाव करते हैं कि वह व्यक्ति गद्दीनशीन बनने योग्य है या नहीं। चुनाव होने के बाद अखाड़ा पास करता है। उसके बाद बैठक होती है। बैठक में वरिष्ठ संत अखाड़े के लोग यह तय करते हैं कि कौन बनेगा गद्दीनशीन। फिर उसके बाद चुनाव होता है। तब सर्वसम्मति से गद्दीनशीन अपने आसन पर विराजमान होते हैं।

महंत राजेश दास पहलवान के मुताबिक, गद्दीनशीन 60 वर्षों के बाद बनाए जाते हैं। जब उम्र का पड़ाव अंतिम छोर पर होता है। मोह माया तमाम चीजों से व्यक्ति दूर हो जाता है। उस समय उस व्यक्ति को गद्दीनशीन पर बैठाया जाता है।

परिसर से बाहर क्यों नहीं निकलते गद्दीनशीनहनुमानगढ़ी पंचायती अखाड़ा का मठ है। यहां महंत गद्दीनशीन की नियुक्ति गुरु-चेला की परंपरा पर आधारित नहीं होती है। इसका निर्णय पंचांन अखाड़ा लेता है। उसी प्रकार चारों पट्टिओं के महंत की नियुक्ति भी पंचांन अखाडे ही करते हैं। यहां पर सब को एक समान का अधिकार होता है। परंपरा के अनुसार गद्दीनशीन का पद संभालने के बाद हनुमानगढ़ी के अपने नियम और संविधान के अनुसार गद्दीनशीन पर आसीन महंत अपने अंतिम पड़ाव तक हनुमानगढ़ी के परिसर में ही रहता है। 52 बीघे में फैले हनुमानगढ़ी का परिसर के बाहर गद्दीनशीन नहीं निकलता। मृत्यु के बाद ही उनका शरीर परिसर के बाहर जा सकता है।

हनुमान जी का स्वरूप होते हैं गद्दीनशीनवहीं, हनुमानगढ़ी के हरिद्वारी पट्टी के महंत शिव कुमार दास के मुताबिक, गद्दीनशीन हनुमान जी की गद्दी मानी जाती है। ऐसे में उस पर आसीन होने वाले महंत को हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है। उस गद्दी पर आसीन होने वाले व्यक्ति का सिर्फ एक ही काम है। वह भगवान का भजन करें और आए हुए भक्तों को आशीर्वाद दे। गद्दीनशीन प्रसिद्ध सिद्ध गद्दी है। अगर गद्दीनशीन का किसी परिस्थितियों में तबीयत या कोई आरोप-प्रत्यारोप लगता है। तो डॉक्टर से लेकर कोर्ट का प्रतिनिधिमंडल भी गद्दीनशीन यानी हनुमानगढ़ी परिसर में ही आएगा। गद्दीनशीन बाहर नहीं जाएगा।

आजीवन गद्दी पर आसीन रहते हैं गद्दीनशीनमहंत शिवकुमार दास बताते हैं कि, गद्दीनशीन पर आसीन होने के बाद महंत कि जब तक मृत्यु नहीं होती है तब तक वह गद्दी पर आसीन रहता है

नवाब ने बनवाई थी अयोध्या की हनुमानगढ़ीकहा जाता है 1739 से 1754 के बीच नवाब शुजादुद्दौला के पुत्र को हनुमानगढ़ी के तत्कालीन पुजारी अभय रामदास ने चमत्कारी ढंग से ठीक किया था। इससे खुश होकर नवाब शुजादुद्दौला ने अयोध्या में 52 बीघा जमीन पर हनुमानगढ़ी मंदिर की स्थापना करा दी। वर्तमान समय में चार प्रमुख पट्टी के साधु हनुमानगढ़ी की देखरेख करते हैं।

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