साक्षात्कार: चरित्रवान वैराग्यवान संतों के सत्संग से संस्कारों का निर्माण होगा
महाकुम्भनगर, 6 फरवरी (हि.स.)। ”कुम्भ मेला में आये हो प्यारे सुजन, दुर्गुणों को यहाँ छोड़कर जाइए। सत्संग भक्ति में मन को लगाकर जीवन को निर्मल बनाकर जाइए।। ” कबीर पंथ परम्परा से जुड़े राष्ट्रीय संत असंग देव साहेब महाकुम्भ में देश विदेश से आये अपने भक्तों को यही संदेश दे रहे हैं। वह सत्संग के माध्यम से अपने भक्तों को भक्ति, ज्ञान समता ममता,एकता व बंधुत्व का संदेश देते हैं। असंग साहेब देश के विभिन्न हिस्सों में सत्संग के माध्यम से आम बोलचाल की भाषा में सामान्य जन का प्रबोधन करते हैं। वह भक्तों को दीक्षा भी देते हैं। राष्ट्रीय संत असंग देव साहेब से हिन्दुस्थान समाचार ने भक्ति व सत्संग के अलावा सामाजिक विषयों पर बातचीत की। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के संक्षिप्त अंश।
प्रश्न: परिवारों में असंतोष बढ़ रहा है क्या कारण है?
उत्तर: क्योंकि संस्कार की शिक्षा देने के लिए कोई विद्यालय है ही नहीं। विद्यालय में भौतिक शिक्षा मिलती है। माता-पिता, भाई-बहन को कैसे रहना चाहिए ,यह कहीं शिक्षा ही नहीं दी जाती। संस्कारों का ज्ञान केवल संत लोग ही कराते हैं। संस्कार के अभाव में तो लोग अपना अपना कर्तव्य भूल जाते हैं।
प्रश्न: संस्कारों का निर्माण कैसे होगा?
उत्तर: संस्कारों का निर्माण सत्संग से ही होगा। सत्संग में जितना लोग जुड़ेंगे संस्कारी बनेंगे। बशर्ते सत्संग सुनाने वाले संस्कारी होना चाहिए। यदि सत्संग करने वाला व्यक्ति नशा करता है,आचरण हीन हैं तो उनके सत्संग से कुछ नहीं होगा। अच्छे महात्मा हों, चरित्रवान वैराग्यवान विवेकवान हों तो उनके सत्संग का प्रभाव होगा।
प्रश्न: युवाओं में नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसे रोकने का क्या उपाय है?
उत्तर: व्यसन करते इसलिए हैं कि कोई उनको ज्ञान देने वाला है नहीं। माता पिता केवल स्कूली शिक्षा पर ध्यान देते हैं। बचपन से कोई मां बाप संस्कारों पर कोई ध्यान नहीं देता। संस्कार विहीन होकर शिक्षा का अभिमान लेकर निकलता है तो वह किसी को कुछ समझता नहीं है। इसके लिए युवाओं को जागरूक करना होगा।
प्रश्न: कबीर ने सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए प्रयत्न किया था। आज भी तमाम कुरीतियां समाज में विद्यमान हैं?
उत्तर: क्योंकि एक कुरीति मिटाओ तो दूसरी कुरीति आ जाती है। कबीर पंथी बहुत हैं, कुरीतियां कम हैं। कबीर ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए समाज को जागरूक किया था। समता व सदभाव व भाईचारे का संदेश उन्होंने दिया था।
प्रश्न: महाकुम्भ में 25 वर्ष से कम उम्र के लड़के लड़कियां न आएं, ऐसा आपने अपने भक्तों से क्यों कहा था?
उत्तर: अगर 25 वर्ष से कम उम्र की लड़कियां मेला में आयेंगी, इधर उधर घूमेंगी। उनके साथ कुछ घटना घट गयी तो कौन जिम्मेदारी लेगा। हमारे शिविर में यहां छह से सात हजार श्रद्धालु रहते हैं। किसी लड़की-लड़का का संग हो गया तो बदनामी तो हमारी होगी। हम प्रवचन सुनाते हैं कि लड़की बचायें। इसलिए हम लड़कियों से कहेंगे कि अपने घर में रहे, वहीं से हमारा प्रवचन सुन लीजिए।
प्रश्न: ग्रहस्थ अपने जीवन को सुखमय कैसे बनाएं?
उत्तर: काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्श्या, द्वेष अहंकार पर जब नियंत्रण करेंगे, तभी सुखी रह सकते हैं। गृहस्थ हों या विरक्त, चित्रकार, कलाकार कोई भी हो, लेकिन जहां बुराई वहां दुख, जहां अच्छाई वहां सुख। जितने ज्यादा अवगुण होंगे उतने ही दु:ख ज्यादा होंगे। बीडी तम्बाकू खाने पीने की क्या जरूरत है। इसलिए प्रवचन सुनें, नशा व्यवसन छोड़ दें। सुख ढ़ूढ़ रहे हो इसका मतलब आप दुखी हैं।
दुख किसने दिया। कहां से आया। जब बीमारी पहले ढ़ूंढ़ लो, तब इलाज कराओ। भूसा पर गोबर लीपने से मजबूती नहीं आयेगी। जीवन में जितने दुख हैं, वह सब निज दोषों के कारण हैं।
प्रश्न:सब लोग संगम पर ही स्नान करना चाहते हैं, इसका क्या उपाय है?
उत्तर: संगम में किसी भी दिन स्नान करो पुण्य मिलेगा। इसको प्रचारित करने की जरूरत है। एक ही दिन संगम में सारी भीड़ घुस ही नहीं सकती।
साधु संतों को भी समझना पड़ेगा। पूरे महीने का प्रचार करना चाहिए।अगर संगम की लम्बाई बढ़ा दी जाय और 50 किलोमीटर तक संगम घाट घोषित किया जाय। उसका नाम दिया जाय महासंगम। भीड़ को जब तक हम लम्बे क्षेत्रफल में बांटेंगे नहीं तो तब तक नियंत्रण संभव नहीं होगा।