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प्रजनन दर में गिरावटः भविष्य की नई वैश्विक चुनौती

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

दुनिया के देशों के सामने जनसंख्या नीति के नकारात्मक प्रभाव भी सामने आने लगे हैं। दक्षिण कोरिया, चीन, फ्रांस, इटली, स्पेन, पुर्तगाल सहित दुनिया के अनेक देश घटती जन्म दर से दो-चार हो रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार दुनिया के 124 देशों में जनसंख्या दर में गिरावट दर्ज की जा रही है। खासतौर से विकसित देशों में जनसंख्या दर में तेजी से गिरावट आ रही है। विषेषज्ञों की मानें तो यही हालात रहे तो दक्षिण कोरिया और सर्बिया आदि के सामने तो 2100 तक अस्तित्व का संकट आ सकता है। 2100 तक दक्षिण कोरिया की आबादी 5.1 करोड़ से घटकर इसकी तिहाई रह जाएगी। खास बात यह कि बुजुर्गों की आबादी तो बढ़ेगी पर युवाओं की आबादी बहुत कम रह जाएगी।

लैसेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार 2100 तक दुनिया के देशों में प्रजनन दर 1.6 रह जाएगी। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था, देशों के बीच परस्पर शक्ति संतुलन, खाद्य, पर्यावरण , स्वास्थ्य आदि प्रभावित होंगे। दरअसल 1950 में दुनिया के देशों में औसत प्रजनन दर 5 बच्चे थी जो 2021 आते आते 2.1 रह गई है। विषेषज्ञों की मानें तो यह प्रजनन दर 2050 तक घटकर 1.8 रह जाएगी और 2100 तक 1.6 रह जाएगी। इससे तेजी से आबादी तो नियंत्रित हो जाएगी पर इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि पश्चिमी व पूर्वी उप सहारा क्षेत्र अफ्रीका के देशों में प्रजनन दर में उतनी गिरावट नहीं होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि मानव जाति के लिए 2.1 प्रजनन दर होना जरूरी है। चीन, कोरिया सहित अनेक देशों में यह दर कम होती जा रही है। यही कारण है कि चीन सहित अनेक देशों ने अपनी जनसंख्या नीति में परिवर्तन किया है। अब चीन कोरिया सहित अनेक देश अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे हैं। चीन में एक बच्चे की नीति के कारण जनसंख्या तो नियंत्रित हो गई पर उस के परिणाम खासतौर से युवा पीढ़ी के कम होने के कारण दो बच्चों और फिर उसमें भी सफलता नहीं मिलने पर तीन बच्चों की नीति लागू की गई है।

दरअसल, दुनिया के देशों में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है, वहीं जिस तरह के परिणाम सामने आ रहे हैं उससे साफ हो जाता है कि कामकाजी युवाओं की संख्या कम से कम होती जाएगी। यह दुनिया के देशों के सामने बड़ा संकट दिखाई देने लगा है। यही कारण है कि चीन सहित विभिन्न देश अब आबादी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देने लगे हैं। एक या दो बच्चों की नीति को त्यागकर तीन बच्चों तक की नीति को अपनाने लगे हैं। दक्षिण कोरिया में माता-पिता को बच्चे के जन्म से लेकर सात वर्ष का होने तक विभिन्न प्रकार की प्रोत्साहन ओर सहायता योजना में 35 से 50 युआन तक दे रहे हैं। इसी तरह से यूरोप के कई देश अपने नागरिकों को प्रोत्साहित करने की कई कार्यक्रमों का संचालन कर प्रोत्साहित करने लगे हैं।

प्रजनन दर कम होने के पीछे जहां दुनिया के देशों की आबादी को नियंत्रित करने की नीति रही वहीं अब जनंसख्या नियंत्रित होने के कई कारणों में से एक कारण आधुनिक जीवन शैली, रहन-सहन, मंहगाई, शिक्षा स्वास्थ्य व आवास जैसी समस्याएं आदि प्रमुख हैं। इसके साथ ही शैक्षिक स्तर बढ़ने और सोच में बदलाव भी बड़ा कारण है। देखा जाए तो अब भारत सहित दुनिया के देशों में बाल विवाह में कमी, आत्मनिर्भर होने पर विवाह बंधन में बंधने की प्रवृति, महिलाओं में भी शादी के प्रति अनिच्छा या फिर अधिक उम्र में शादी, इसके मुख्य कारण हैं। एक सर्वे के अनुसार हालांकि यह अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है कि आज की पढ़ी-लिखी महिलाएं शादी तो करना चाहती हैं पर बच्चे पैदा करने, उनके लालन-पालन और घर-गृहस्थी को बोझ मानने की मानसिकता भी एक कारण होती जा रही है। इस सबसे अलग दुनिया के किसी भी कोने को ले लें अब हालात यह हो गए हैं कि आधुनिकता और जीवन स्तर के चलते कॉस्ट ऑफ लिविंग यानी रहन-सहन का खर्च बढ़ गया है। एक बड़ा कारण यह है कि लोग परिवार को सीमित रखने व देरी से शादी लिविंग स्टैण्डर्ड के कारण प्रमुखता देने लगे हैं।

जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं उससे दुनिया के देश चिंतित हो गए हैं। एक बच्चे की नीति को तो करीब-करीब सभी देश त्यागने ही लगे हैं क्योंकि यह लगने लगा है कि अगला दशक कहीं बुजुर्गों का दशक ना हो जाए। सरकारों के सामने इससे गंभीर संकट के हालात इस मायने में हो जाएंगे कि उत्पादक जेनरेशन यानी युवा कम होते जाएंगे और बुजुर्ग अधिक हो जाएंगे। इससे सामाजिक ताने-बाने के साथ उत्पादकता सहित अनेक विषमताएं सामने आने लगेगी। आज क्रोसिया, ग्रीस, इटली, मालटा, पुर्तगाल, स्लोवानिया आदि दक्षिण यूरोप के देशों में 65 साल से अधिक की आबादी 21 प्रतिशत तक पहुंच गई है। जापान में 29 प्रतिशत तो मोनाको में 36 प्रतिशत आबादी 65 साल से अधिक के नागरिकों की हो गई है।

इसमें दो राय नहीं कि स्वास्थ्य बेहतरी के चलते औसत उम्र में बढ़ोतरी हुई है। यहां बुजुर्ग आबादी को लेकर कोई नकारात्मक सोच नहीं है पर जिस तरह से प्रजनन दर कम हो रही है और आने वाले समय में संकट दिखाई दे रहा है उसे लेकर चिंता है। इस चिंता को सरकारों, चिंतकों, मनोविज्ञानियों सहित समाज के सभी वर्गों को विचार करना होगा ताकि समय रहते संतुलन बनाए रखा जा सके।

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