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वैश्विक पहचान से सांगरी के लिए बढ़ा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार

मई का पहला सप्ताह राजस्थान के लिए खासा महत्त्वपूर्ण रहा। इस सप्ताह राजस्थान की प्रतीक और पहचान ‘सांगरी’ को वैश्विक प्रतिष्ठा मिली। सांगरी मरुस्थलीय इलाके का प्रमुख खाद्य व्यंजन है। इस महीने सांगरी को भौगोलिक संकेतक टैग ( जीआई टैग) मिला, जिससे अब इसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार मिलने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। यह राजस्थान के खाद्य व्यापारियों के लिए ही नहीं, बल्कि सीधे किसानों के लिए भी शुभ संकेत है। सांगरी के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार के द्वार खुलने से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। बदलते समय के साथ रेगिस्तान का खेजड़ी अब वरदान बन गया है। सांगरी राजस्थान के राज्य वृक्ष खेजड़ी का एक उत्पाद है। राजस्थान के खान-पान में केर-सांगरी का अचार या सब्जी के अलावा इनके साथ कुमटिया, गुंदा और अमचूर मिला कर बनाई जाने वाली ‘पंचकूटा’ की सब्ज़ी मरुधरा की विशिष्ट पहचान है। इसकी महत्ता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाज़ार में इसका भाव बारह सौ से लेकर डेढ़ हज़ार रुपए प्रति किलो है।

केर-सांगरी और पंचकूटा वस्तुतः ‘छप्पनिया काळ’ की देन है, जो 1899 ईस्वी और विक्रम संवत के हिसाब से 1956 में पड़ा था। छप्पनिया अकाल को “द ग्रेट इंडियन फेमिन 1899” के नाम से भी जाना जाता है। इस अकाल में लाखों लोगों की जान गई थी। भयंकर आपदा के इस दौर में लोगों के पास खाने के नाम कुछ भी न बचा था। इस अकाल को लेकर कहा जाता है कि ये दौर ऐसा था कि लोगों के लिए न तो खाने के लिए कुछ था और न पीने के लिए, लेकिन इस भीषण सूखे में रेगिस्तानी इलाकों में खेजड़ी (जिन पर सांगरी की फली होती है) और केर नहीं सूखे। जब लोगों और पशुओं के लिए भी खाने को कुछ नहीं बचा तो केर और सांगरी की फली लोगों को खूब काम आई। कहा जाता है कि खेजड़ी की छाल और फली तक लोग कच्ची खाकर गुजारा करने लगे। केर एक केपर जैसा रेगिस्तानी फल है जो कांटेदार झाड़ी पर उगने वाली एक बेरी है। इसका स्वाद तीखा होता है, जिससे इसका अचार काफ़ी चटपटा बनता है। दूसरी ओर सांगरी खेजड़ी के पेड़ की फलियों जैसी होती है। बबूल फली या बबूल के पेड़ के चपटे बीज होते हैं। इसी केर-सांगरी और पंचकूटा सब्ज़ी का महत्व वर्तमान में ऐसा है कि राजस्थान से जुड़ा कोई भी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय आयोजन या समारोह हो, इनके बिना मेनू पूरा हो ही नहीं सकता। फाइव स्टार होटलों में ‘बीन्स एंड बेरीज़ वेजिटेबल’ के नाम से यह बेहद महंगे दाम पर मिलती है। अब जब इसे जीआई टैग मिल चुका है तो विश्व बाज़ार में आर्थिक रूप से इसकी संभावनाएं काफ़ी बढ़ गई हैं।

राजस्थान में सांगरी का कुल कारोबार सालाना मोटे तौर दो सौ करोड़ रुपए से ज़्यादा का है। अब इसमें बढ़ोत्तरी होने की पूरी संभावना है क्योंकि विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सांगरी को अब ‘प्रीमियम प्राइस’ भी मिलेगा। वस्तुतः जीआई टैग कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उन वस्तुओं को दिया जाता है जो एक ख़ास क्षेत्र में उत्पादित होते हैं। इसमें क्षेत्र की विशेष गुणवत्ता या प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताएं शामिल होती हैं। राजस्थान में इसका करोबार उत्पाद संगठित और असंगठित क्षेत्रों में किया जाता है, वो भी राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में। बड़े व्यापारियों से लेकर छोटे किसान भी इसमें शामिल हैं। यह काफ़ी महँगे दामों पर बिकने वाला उत्पाद है। इसमें क्षेत्र की विशेष गुणवत्ता या प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताएं शामिल होती हैं। यह टैग वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा जारी किया जाता है।

स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (एसकेआरएयू) ने कोलायत के गोविंदसर गांव में खेजड़ी उत्पाद बेचने वाली किसानों की एक सोसायटी के माध्यम से जीआई टैग हासिल किया है। अब जब राजस्थान में खेजड़ी की सांगरी कोजीआई टैग मिला है तो कई बड़े फायदे होंगे।

बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन यानी खेजड़ी के पेड़ को संरक्षित किया जा सकेगा। सांगरी को वैश्विक पहचान मिलेगी और इसके प्रोडक्ट्स का निर्यात होगा। किसी भी उत्पाद को जीआइए टैग दिया जाता है तो उस उत्पाद को कानूनी सुरक्षा भी प्रदान की जाती है। जीआई टैग के दूसरे फायदे भी हैं। किसी भी वस्तु या उत्पाद को जीआई टैग प्राप्त होने के बाद कोई भी निर्माता समान उत्पादों को बाज़ार में लाने के लिए नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता। यह टैग मिलने से किसी उत्पाद की विशिष्टता और पहचान स्थापित होती है। इससे उस उत्पाद की मांग बढ़ती है जिससे किसानों और कारीगरों की आय में वृद्धि होती है और नकली उत्पादों पर रोक लगाने में मदद मिलती है।

भारत में जीआई को वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और सुरक्षा) अधिनियम 1999 के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। राजस्थान की कई वस्तुओं को जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैग प्राप्त हैं। इनमें से कुछ प्रमुख वस्तुएं हैं- बगरू हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग, जयपुर की ब्लू पॉटरी, राजस्थान की कठपुतली, कोटा डोरिया, मोलेला मिट्टी का काम, फुलकारी, पोकरण मिट्टी के बर्तन, सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग, थेवा आर्ट वर्क, नाथद्वारा पिचवाई शिल्प, बीकानेर काशीदाकारी शिल्प, बीकानेर उस्ता कला शिल्प, जोधपुर बंधेज शिल्प, उदयपुर कोफ्तगारी धातु शिल्प, बीकानेरी भुजिया और सोजत मेहंदी शामिल हैं। अब सांगरी को जीआई टैग मिलने से लोगो सहित राजस्थान के कुल 17 उत्पाद जीआई टैग में शामिल हो गए हैं।

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