-इविवि में भगवद्गीता के वैज्ञानिक आयाम विषय पर व्याख्यान
प्रयागराज, 06 फरवरी (हि.स.)। गीता में भगवान् केवल दो विषयों की प्रधानतया चर्चा करते हैं-धर्म और कर्म। इसमें जो आत्मविषयक चिन्तन है वह धर्म है और जो विषाद की चर्चा है, वह कर्म विचार है। गीता सृष्टि का विज्ञान है। जो सभी प्राणियों पर एक नियम लागू करती है। धर्म ही ज्ञान है और कर्म ही विज्ञान है।
उक्त विचार इलाहाबाद विश्वविद्यालय, संस्कृत पालि प्राकृत एवं प्राच्य भाषा विभाग द्वारा प्रवर्तित ऋषि व्याख्यान माला में मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध लेखक डॉ. गुलाब कोठारी ने भगवद्गीता के वैज्ञानिक आयाम विषय पर व्यक्त किया।
व्याख्यान का आयोजन इविवि के तिलक भवन में गुरूवार को किया गया। जिसका शुभारम्भ संस्कृत विभाग के शोधछात्र अमृत प्रकाश दुबे के वैदिक मंगलाचरण से हुआ। श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि गीता को सर्वदा इस भाव से पढ़ना चाहिए कि मानो भगवान् श्रीकृष्ण हमसे कह रहे हैं। इस प्रकार हमें अर्जुन बनना पड़ेगा। विविधं ज्ञानं विज्ञानम् यह विज्ञान की परिभाषा है।
‘‘मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्।सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।’’
उन्होंने कहा कि इस मन्त्र में पूरी सृष्टि प्रक्रिया वर्णित है। इस पर शोधार्थी विद्वानों को गूढ़ रहस्य परक विचार करना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राम सेवक दुबे ने कहा कि आज का व्याख्यान बहुत ही उत्तम रहा। ऐसे व्याख्यानों से विश्वविद्यालय व विभाग की कीर्ति चतुर्दिक् प्रसृत होती है। डॉ कोठारी गीता शास्त्र के अद्भुत चिन्तक हैं। आपने कहा कि गीता में भगवान् ने स्पष्ट कहा है कि दुःखों से मुक्ति के लिए विज्ञान सहित ज्ञान की आवश्यकता है।
इसके पूर्व अतिथियों का वाचिक स्वागत संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रयाग नारायण मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर अनिल प्रताप गिरि, संस्कृत पालि प्राकृत एवं प्राच्य भाषा विभाग द्वारा किया गया। संचालन प्रोफेसर निरुपमा त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रधान कुलानुशासक प्रो. राकेश सिंह, डॉ. विनोद कुमार, डॉ.विकास शर्मा, डॉ. ललित कुमार, डॉ. रेनू कोछड़ शर्मा, डॉ. तेज प्रकाश चतुर्वेदी, डॉ. आशीष त्रिपाठी, डॉ. कल्पना, डॉ. प्रतिभा आर्या, प्रो. जया कपूर, डॉ. सन्दीप यादव, डॉ. प्रचेतस्, डाॅ. सन्त प्रकाश तिवारी, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. बालखड़े भूपेन्द्र अरुण, डॉ. सतरुद्र तथा बहुत संख्या में शोध छात्र उपस्थित रहे।