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हरित महाकुंभ में पर्यावरण संरक्षण के प्रति दिखी जागरूकता

महाकुम्भ नगर, 6 फ़रवरी (हि.स.)।हमारी संस्कृति में देवी-देवताओं की सवारी पशु-पक्षियों को बताया गया है। गणेश जी के पूजन के साथ ही उनकी सवारी मूषक के प्रति भी मानवीय संवेदनाएं जुड़ती हैं। उक्त बातें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और पर्यावरण संरक्षण गतिविधि, गंगानाथ झा परिसर (प्रयागराज), केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हरित महाकुंभ- 2081 के द्वितीय दिवस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय संयोजक पर्यावरण संरक्षण गतिविधि गोपाल आर्या ने गुरुवार को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इसी तरह हमारी संस्कृति ने हमें पर्यावरण से भी जोड़ रखा है, परंतु हम यह सब एक हद तक भूल गए हैं। कुंभ और ज्ञान महाकुंभ दोनों ही पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनाओं को एक बार फिर जागृत करने का जरिया है।

आर्ट ऑफ़ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय निदेशक दर्शक हाथी ने कार्बन फू़टप्रिंट को लेकर समाज में जागरूकता की जोर दिया। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को इस शब्दावली को समझना चाहिए और हर दिन हमारी यही कोशिश होनी चाहिए कि हम कम से कम प्रदूषण करें।

शिप्रा पाठक, वाटर वोमेन ने मौनी अमावस्या का सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि ज्ञान अहंकार न बने इसलिए ज्ञान प्राप्ति के साथ मौन रहना भी आवश्यक होता है। मौनी अमावस्या इसी का संकेत देती है, साथ ही यह शांति बसंत के आगमन की आहट की ओर भी इशारा करती है।

डॉ आर. सी. मिश्रा पूर्व डीजीपी हरियाणा केडर ने कहा कि बिगड़ते पर्यावरण संतुलन के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी है और हमें इसके प्रति सजग होना चाहिए।’जिसके घर नीम, क्या काम हकीम’ जैसी चीजों को प्रचलन में लाना चाहिए।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो.एच. डी. चारण्य पूर्व कुलपति ने कहा कि पर्यावरण पर प्रहार भी हमने किया, सबसे ज्यादा समस्याओं से भी हम ही जूझ रहे हैं और हम इस समस्या के निदान को खोज रहे हैं।ये तो ठीक अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना ही हुआ। हमें कम से कम अब इससे बचना चाहिए।

आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ विनय जी सहस्त्रबुद्धे ने हमारी ज्ञान परंपरा में पर्यावरण के विशेष महत्त्व को समक्ष रखा। सहस्त्रबुद्धे जी ने आगे संबोधन में कहा कि पेपरलेस कार्यप्रणाली और सौर्य उर्जा हरित क्रांति ला रहे हैं, हमें भी इसे आसानी से स्वीकार करना चाहिए और बढ़ावा देना चाहिए। इन सब के साथ ही अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए।

प्रशांत भल्ला, कुलपति मानव रचना विश्वविद्यालय और डॉ. अतुल कोठारी राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। इस बार का महाकुंभ ना सिर्फ़ अपार जनमानस का कुंभ है बल्कि इस कुंभ से पर्यावरण के नवीनीकरण का भी संदेश होना चाहिए।

समारोह में डॉ. डब्ल्यू. जी. प्रसन्ना (प्रदूषण नियंत्रण मंडल, हैदराबाद) ने महाकुंभ की सार्वभौमिकता का बखान करते हुए कहा कि आज संपूर्ण विश्व प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है, इसमें भारत भी शामिल है, पर मत भूलिए हमारी परंपराओं में नदियों को मां का दर्जा मिला है और इस मां के लिए हम हमेशा से जागरूक रहे‌ हैं। परंतु कुछ विकारों के कारण आज समस्याएं तो हैं पर हम ही हैं जो इस विश्व को बचा सकते हैं। हमें अपनी परंपराओं को एक बार फिर बल देना होगा और ना सिर्फ़ भारत में बल्कि विश्वभर में इसका प्रचार -प्रसार करना होगा।

प्रो आर. के. आनंद, मुख्य परिचालन अधिकारी मानव रचना संस्थान ने पश्चिम के विश्वविद्यालयों का महाकुंभ कुंभ के प्रति नज़रिया सामने रखते हुए कहा कि कुंभ समाज के साथ ही पर्यावरण के लिए भी ‘रीसेट’ बटन की तरह है, जहां से नकारात्मक चीजों का अंत और सौहार्द, साकारात्मक और हरियाली का संदेश विश्वभर में गूंजता है। ‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते’ अर्थात् इस दुनिया में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है। श्रीमद्भगवद् गीता में दर्ज इस पंक्ति की सार्थकता को व्यापक रूप देने के लिए प्रयागराज के महाकुंभ में ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ की ओर से 10 जनवरी से 10 फरवरी के बीच ‘ज्ञान महाकुंभ’ का आयोजन चल रहा है।

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