भोपाल, 3 जुलाई (हि.स.) | रिपोर्ट: सुमित राठौर
जहां दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डिजिटल शिक्षा की ओर दौड़ रही है, वहीं भोपाल की आचार्य पाणिग्राही चतुर्वेद संस्कृत वेद पाठशाला में बच्चे सामवेद और यजुर्वेद का अभ्यास कर रहे हैं—वो भी बिना मोबाइल और फिल्मों के।
🕉️ क्या है खास इस पाठशाला में?
- मोबाइल मुक्त जीवन: यहां के छात्र मानते हैं कि मोबाइल इंद्रियों को कमजोर करता है। वे इससे पूरी तरह दूर रहते हैं।
- वैदिक अध्ययन: दो इकाइयों में विभाजित—सामवेद और यजुर्वेद, प्रत्येक में 10 विद्यार्थी।
- कर्मकांड और संस्कृत शिक्षा: अन्य विद्यार्थी कर्मकांड और उच्च संस्कृत का भी अध्ययन करते हैं।
- आधुनिक शिक्षा भी: गणित, विज्ञान जैसे विषयों को भी पढ़ाया जाता है।
- सात्विक जीवन शैली: भोजन, रहन-सहन, परिधान सब कुछ वैदिक परंपरा के अनुरूप।
👦 विद्यार्थियों की आवाज़
- साहिल अवस्थी (15 वर्ष, गुना):
“मैं अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा, लेकिन वेदों में आत्मा जुड़ी है। अब मैं सामवेद पढ़ रहा हूं और जीवन भर संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लगना चाहता हूं।” - अनिकेत शर्मा (12 वर्ष, विदिशा):
“संस्कृत ने मेरी सोच बदल दी है। अब मैं अपने छोटे भाई को भी संस्कृत सिखाता हूं और संस्कृत शिक्षक बनने का सपना देखता हूं।”

🏫 पाठशाला की दृष्टि
पाठशाला के अध्यक्ष दिनेश पाणिग्राही का कहना है:
“शिक्षा से व्यक्ति बनता है, व्यक्ति से कुटुंब, कुटुंब से समाज और समाज से विश्व।
हमारा उद्देश्य भारत को फिर से जगतगुरु बनाना है।”
📍 पाठशाला का योगदान
- पिछले 14 वर्षों से संचालन
- 50 से अधिक छात्र
- राजदेव कॉलोनी, भोपाल में स्थित
- शिक्षा का संचालन राष्ट्रीय वेद संस्कृत शिक्षा बोर्ड, उज्जैन द्वारा
🙏 संस्कृति बचाओ, परंपरा अपनाओ
भोपाल की ये पाठशाला सिर्फ वेदों की शिक्षा नहीं देती, बल्कि एक जीवंत भारतीयता की सीख देती है।
जब पूरी दुनिया डिजिटल रेस में व्यस्त हो, तो ऐसे छोटे केंद्र हमें याद दिलाते हैं कि हमारी जड़ें अब भी गहरी हैं।