राजनीतिक दलों पर POSH लागू करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। यह याचिका महिलाओं के fundamental rights की रक्षा के लिए दायर की गई है।
Fundamental rights याचिका का मूल उद्देश्य क्या है?
- सभी पंजीकृत राजनीतिक दल POSH अधिनियम के तहत आएं
- महिला कार्यकर्ताओं को सुरक्षा मिले
- आंतरिक शिकायत समितियाँ (ICC) अनिवार्य बनें
याचिकाकर्ता कौन हैं?
- अधिवक्ता योगमाया एमजी ने PIL दायर की
- श्रीराम परक्कट ने याचिका दाखिल की
संविधान के कौनसे अधिकार उल्लंघित हो रहे हैं?
- अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 15: भेदभाव निषेध
- अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 21: जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार
किन दलों को बनाया गया है पक्षकार?
- भाजपा, कांग्रेस, आप, सीपीएम, भाकपा
- एनसीपी, एआईटीसी, बसपा, एनपीपी, एआईपीसी
- भारत सरकार व चुनाव आयोग भी पक्ष में
क्या है मुख्य चिंता?
- महिला स्वयंसेवकों के पास कोई शिकायत तंत्र नहीं
- POSH अधिनियम से राजनीतिक दल बाहर हैं
- शिकायतें अनुशासन समितियों में भेज दी जाती हैं
पिछली कानूनी स्थिति क्या थी?
- केरल हाई कोर्ट ने 2022 में राजनीतिक दलों को छूट दी थी
- याचिका में उस निर्णय की आलोचना की गई है
वैश्विक रिपोर्ट का हवाला
- 45% महिला राजनेताओं ने शारीरिक उत्पीड़न झेला
- 49% ने मौखिक दुर्व्यवहार की शिकायत की
सुप्रीम कोर्ट का रुख
- POSH के बेहतर कार्यान्वयन पर पहले ही निर्देश दिए
- अब राजनीतिक दलों को भी इसमें शामिल करने की मांग
👉 याचिकाकर्ता का दावा है – “राजनीति में महिलाओं को समान सुरक्षा नहीं देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।”