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होलीः लोक रंगों का महापर्व

कहा जाता है कि वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा की मान्यता देने के लिए बाकी पांच ऋतुओं ने अपने में से कुछ-कुछ दिन दे दिए, इसीलिए वसंत ऋतु का आगमन विद्या और कला-संगीत की देवी मां सरस्वती के पूजन यानी वसंत पंचमी के साथ शुरू होता है। कायदे में भारतीय (हिंदू) कैलेंडर के हिसाब से सभी छह ऋतुएं-वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर, दो-दो महीने की होती है लेकिन वसंत करीब ढाई महीने का होता है। महीनों का निर्धारण विक्रमी संवत से होता है। सभी ऋतुओं की पहचान मौसम से होती है। वसंत के आगमन की सूचना वातावरण में मस्ती से होता है और वह फाल्गुन पूर्णिमा को होली (पूर्वांचल में फगुआ और आम बोलचाल में होरी) के दिन शीर्ष पर पहुंच जाता है। वातावरण में फूलों महक भी वसंत के होने का एहसास कराती है। गुलाबी ठंड, खेत पीले सरसों से भरे पड़े, उस पर मंडराते भौंरे, गेहूं की बालियां, हर तरफ फूल ही फूल, फिजा में मस्ती बिखेरते हैं। अपना देश विविधताओं का देश है। तरह-तरह की भाषा-बोली, पहनावा, खानपान और सैकड़ों पर्व-त्यौहारों को हम सभी साल भर मनाया करते हैं। अनेक त्यौहार देश के सर्वाधिक राज्यों में उत्साह से मनाया जाता है। होली भी देश के ज्यादातर राज्यों में मनाया जाने वाला त्यौहार है। होली की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह हर वर्ग और खासकर गरीब तबके का सबसे लोकप्रिय पर्व है।

ब्रज की होली की लोकप्रियता आज भी कायम है। देश-दुनिया से बड़ी तादाद में लोग मथुरा, वृंदावन, बरसाना, नंदगांव और भगवान कृष्ण और राधा-रानी से जुड़े जगहों पर लोग आते हैं। इसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। किसी अनजान व्यक्ति को यह आश्चर्य लगेगा कि बड़ी तादाद में लोग कृष्ण भक्त गोपियां बनी ब्रज की महिलाओं के साथ होली खेलने और उनके डंडे झेलने (लट्ठमार होली) के लिए दूरदराज से समय और पैसे खर्च करके लोग आते हैं। यह संख्या लाखों में होती है। मान्यता है कि सभी लोग वहां इस अनुभव के लिए जाते हैं कि जैसे उन्होंने राधे-कृष्ण के साथ होली खेल ली। इसके अलावा हर राज्यों में अलग-अलग तरीके से होली खेली और गीत गाए जाते है। अलग-अलग तरह के पकवान खासकर होली के लिए बनाए जाते हैं। इतना ही नहीं अलग-अलग इलाकों में होली का नाम भी अलग है और मनाने के तरीके भी अलग है। दीपावली की तरह होली भी सालों पहले देश की सीमा पार कर अनेक देशों का बड़ा पर्व बन गया है। नेपाल तो हाल ही तक दुनिया का अकेला हिंदू देश था। वहां तो अपने देश की तरह होली पर सार्वजनिक अवकाश होता है। दुनिया के अन्य देशों में जहां भारतवंशी रहते हैं वहां होली उत्साह से मनाया जाता है। होली मिलन समारोह भी कई देशों में आयोजित होते हैं।

प्रचलित कथा है कि दैत राजा हिरण्यकश्प अपने को ही भगवान मानता था और अपनी प्रजा से इसे मनवाता था। उसने भीषण तपस्या कर अपने को अमर होने का वरदान पा लिया था। उसे वरदान था कि वह न तो दिन में और न ही रात में, न तो अस्त्र से और न ही शस्त्र से, न तो घर में न ही बाहर, न ही मनुष्य से न ही जानवर से मारा जा सकता है। उससे ठीक विपरित उसका पुत्र प्रह्लाद नारायण भक्त था। वह उसे भगवान मानने को तैयार न था। वह नारायण का भक्त था। उसे मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने हर उपाय किए लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। उसने बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के लिए जिम्मेदारी दी। उसे जलती आग में होलिका लेकर बैठी। नारायण ने होलिका को ही जला कर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। बाद में उन्होंने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्प का अंत किया। कहते हैं कि तभी से होलिका को जलाने और उसकी राख से दूसरे दिन होली खेल कर खुशी मनाने की परंपरा चली। होली से भगवान कृष्ण की कथा भी जुड़ी है। वैसे बाद में राख के साथ-साथ रंग और गुलाल से होली खेलने की परंपरा चल पड़ी। कई इलाकों में गुलाब की पंखुड़ियों आदि से भी होली खेली जाती है। रंग के साथ-साथ पानी को कीचड़ के साथ होली खेलने की परंपरा भी चल पड़ी है। दरअसल, होली मेल-मिलाप और संबंधों को बेहतर बनाने का भी त्यौहार है।

बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा,असम और पूर्वांचल के राज्यों में होली खेलने की विधिवत शुरुआत वसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा से होती है। सरस्वती पूजा के दूसरे दिन मां सरस्वती की प्रतिमा के विसर्जन में एक दूसरे को खूब गुलाल लगाते हैं। यह परंपरा दुर्गा पूजा, काली पूजा, विश्वकर्मा पूजा के बाद प्रतिमाओं के विसर्जन के दिन भी होता है। वैसे तो बिहार आदि पूर्वांचल के राज्यों में दूल्हे की विदाई ही नहीं किसी किसी रिश्तेदार की विदाई पर भी रंग-गुलाल लगाने की परंपरा है। किसी को विदाई में सफेद कपड़ा देना अपशगुन माना जाता है इसलिए किसी की विदाई में देने वाले कपड़ों को लाल-पीले रंगों से रंग कर ही देते हैं। तभी तो बिहार के गांवों में होली के दौरान यह भी प्रचलित गीत गाया जाता है- भर फागुन बूढ़ऊ देवर लगी हें। होली में अपने इलाके के वीरों का भी बखान किया जाता है-बाबू हो कुंवर सिंह टेगवा बहादुर बंगला में उड़ेला अबीर। पूर्वांचल (बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश) के गांवों में पूरे फाल्गुन (आम बोलचाल में फागुन) में रात को किसी के दरवाजे पर होली के गीत गाने का रिवाज है। होली के दिन तो सवेरे लोग होली खेलते हैं और दोपहर से अलग-अलग टोलियों में हर दरवाजे जाकर होली गाते और होली मिलन करते हैं। उस दौरान गायकों को सूखे मेवे देने का रिवाज है। बड़े गांवों में तो दरवाजे-दरवाजे जाते हुए आधी रात होने पर लोग चैता (बीतले फगुनवा आहो चैता अईले हो राम) गाने लगते हैं। होली के दूसरे दिन से चैत की शुरुआत होती है। 15 दिन बाद से नया हिंदू संवत या नए साल की शुरुआत होती है। उसी दिन से चैत नवरात्र की शुरुवात भी होती है।

पहले दिन यानी होलिका दहन के दिन उपले आदि इकट्ठा करके शाम को उसे जलाते हैं। उस आग में नई फसल गेहूं, जौ , चना आदि को भूनते हैं। होलिका को गाली देने के बहाने गाली गाने का भी रिवाज सालों से चल रहा है। होली के लिए तरह-तरह के पकवान बनने की तैयारी काफी समय से परिवार के लोग और खासकर महिलाएं करती हैं। दिल्ली, उत्तर प्रदेश , हरियाणा, राजस्थान, पंजाब इत्यादि राज्यों में गुजिया बनाने और खिलाने का रिवाज है। पूर्वांचल में चीनी और गुड़ आटे-मैदा से पुआ बनाने और खिलाने का चलन है। पुआ भी कई तरह के बनते हैं। उसके साथ कई इलाकों में कटहल की सब्जी तो मांसाहारी परिवारों में मांसाहार का चलन है। होली में उदंडता बढ़ने का एक बड़ा कारण भांग और शराब का सेवन है। होली मनानेवाले परिवारों में तो शायद ही कोई ऐसा घर होगा जिसके यहां होली पर पकवान न बनते हों। यह परंपरा तो लोगों ने शहरों में भी निभाई जा रही है। होली के गाने के बोल देश-भर में एक ही रहते हैं, भाषा जरूर बदल जाती है। राम खेले होरी लक्षमन खेले होरी, लंकागढ में रावन खेले होली, यह भोजपुरी में है लेकिन यह हर इलाके और भाषा में अलग टोन से, अलग शब्दों से गाया जाता है। गांवों में तो महीने भर होली गई जाती है लेकिन शहरों में दिवाली की तरह होली मिलन का आयोजन महीने भर तक चलता रहता है। होली गिले-शिकवे दूर करने का भी त्यौहार है। हिंदी सिनेमा के होली के गाने सबसे ज्यादा लोकप्रिय गानों में हैं, बल्कि एक समय सिनेमा के हिट होने का एक फार्मूला होली के गाने को माना जाता था।

खास कर हिंदी भाषी राज्यों में होली से बड़ा सर्वसाधारण जन का कोई पर्व नहीं है। इसी तरह का पर्व लोक आस्था का महापर्व छठ है। छठ की तरह इस पर्व में भी पुरोहित और विशेष पूजा अनिवार्य नहीं है। छठ तो पवित्रता, सादगी और समर्पण का पर्व है, होली को उत्सव मनाने, खाने-खिलाने, मिलने-मिलाने और खुशी मनाने का त्यौहार है। जैसा यह त्यौहार और जिस तरह से मनाया जाता है, उससे ही यह साबित होता है कि सही मायने में बसंत ऋतुओं का राजा है और उसके मध्य में मनाया जाने वाला होली त्यौहार सही मायने में त्यौहारों का राजा है।

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