लखनऊ, 4 जून (हि.स.) — उत्तर प्रदेश को केंद्र सरकार से अधिक वित्तीय हिस्सेदारी की उम्मीद उस समय और प्रबल हो गई, जब 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने बुधवार को लखनऊ में बैठक कर राज्यों की मांगों और करों के बंटवारे पर गंभीर चर्चा की। इस दौरे को राज्य की वित्तीय स्थिति के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
पनगढ़िया ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार अपने कर राजस्व का 59 प्रतिशत अपने पास रखती है जबकि 41 प्रतिशत राज्यों को दिया जाता है। हालांकि कई राज्यों ने इस हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने की मांग की है, लेकिन उन्होंने कहा, “राज्यों की मांग के अनुरूप वृद्धि संभव नहीं है, किंतु कुछ हद तक सुधार किया जा सकता है।”
📊 यूपी की विशेष मांगें और प्रस्ताव
उत्तर प्रदेश सरकार ने कर बंटवारे के मानदंडों में भी कुछ बदलाव की मांग की है। इनमें शामिल हैं:
- क्षेत्रफल के आधार पर हिस्सेदारी 15% से घटाकर 10% करने की मांग।
- वन और पर्यावरण के हिस्से को 10% से घटाकर 5% करने का प्रस्ताव।
- कर संग्रह आधारित हिस्सेदारी को 10% और
- जनसांख्यिकी प्रदर्शन में 7.5% हिस्सेदारी का सुझाव।
राज्य सरकार का मानना है कि उत्तर प्रदेश का GST संग्रह देश में प्रथम स्थान पर है, जो राज्य की आर्थिक ताकत और योगदान को दर्शाता है।
🏛️ आयोग का कार्य और प्रक्रियाएं
पनगढ़िया ने बताया कि वित्त आयोग केंद्र और राज्यों के बीच करों के निष्पक्ष बंटवारे का प्रस्ताव तैयार करता है, जिसे बाद में राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। आयोग का कार्यक्षेत्र स्थानीय निकायों, पंचायतों, आपदा प्रबंधन, और राहत कार्यों के लिए भी बजट प्रस्ताव तैयार करना है।
उन्होंने यह भी बताया कि आयोग के सदस्य हर राज्य का दौरा कर सामाजिक-आर्थिक हालातों का आकलन करते हैं। उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकायों और पंचायतों के बजट आवंटन पर विशेष चर्चा की गई।
🤝 न्यायोचित और संतुलित बंटवारा
अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि आयोग का उद्देश्य राज्यों के विकास और वित्तीय मजबूती के लिए संतुलित व पारदर्शी कर वितरण प्रणाली सुनिश्चित करना है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की वाजिब मांगों पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है और इनका प्रतिबिंब आयोग की अंतिम सिफारिशों में दिखेगा।