✍ लेखक: राजेन्द्र सिंह
जलवायु परिवर्तन आज एक वैज्ञानिक चिंता नहीं, बल्कि जीवित मानवता के लिए चेतावनी है। वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि, चरम मौसम घटनाएं और जल संकट जैसे संकेत स्पष्ट हैं कि धरती दहकने लगी है।
🌡️ वैश्विक संकट बनता बढ़ता तापमान
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, 1850-1900 की तुलना में औसत वैश्विक तापमान में 1.1°C की वृद्धि हो चुकी है। यह परिवर्तन केवल पारे में नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता, और खाद्य सुरक्षा पर भी गंभीर असर डाल रहा है।
🇮🇳 भारत पर विशेष खतरा क्यों?
- विशाल तटीय क्षेत्र
- हिमालयी नदियों पर निर्भरता
- कृषि आधारित अर्थव्यवस्था
इन सबके कारण भारत जलवायु संकट के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बन जाता है।
🚨 क्या कहता है डेटा?
- हीटवेव से हर साल हजारों मौतें
- गंगा-ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में अनिश्चित प्रवाह
- अनियमित मानसून, जल संकट और सूखा
- गेहूं-चावल की पैदावार में गिरावट
- चक्रवात, बाढ़, और जंगल की आग की बढ़ती घटनाएं
- अरबों डॉलर की आर्थिक हानि (स्रोत: विश्व बैंक)
🔧 समाधान: नीति, नवाचार और नवीकरण
भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाए हैं:
- पेरिस समझौता के तहत 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का संकल्प
- 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य
- इलेक्ट्रिक वाहन और ऊर्जा कुशल इमारतों को बढ़ावा
- 33% वन क्षेत्र लक्ष्य और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट
🌱 उत्तर प्रदेश का हरित उदाहरण
- 8 वर्षों में 210 करोड़ पौधे लगाए गए (मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में)
- 559.19 वर्ग किमी वन आच्छादन में वृद्धि (ISFR 2023)
- 77% से 96% पौधों की जीवितता दर
- राष्ट्रीय औसत से अधिक ग्रीन कवर वृद्धि
यह आंकड़े बताते हैं कि नीति के साथ जनभागीदारी हो तो असंभव को संभव किया जा सकता है।
📢 आम आदमी क्या कर सकता है?
- पानी, बिजली की बचत
- पुनर्चक्रण और सार्वजनिक परिवहन का उपयोग
- स्थानीय वृक्षारोपण अभियान में भागीदारी
- स्कूलों और समुदायों में जागरूकता अभियान
- पौधे लगाएं, पौधे दान करें, और पर्यावरण का मित्र बनें
🤝 अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नवाचार की जरूरत
भारत जैसे विकासशील देश के लिए सिर्फ घरेलू प्रयास पर्याप्त नहीं। वैश्विक सहयोग, तकनीकी नवाचार और जलवायु न्याय की अवधारणाएं भी जरूरी हैं।
🎯 निष्कर्ष: अब नहीं तो कब?
यदि आज हम नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका भारी मूल्य चुकाना पड़ेगा। लेकिन अगर सरकार, उद्योग, वैज्ञानिक और आम लोग साथ आएं तो दहकती धरती को फिर से हरी-भरी बनाया जा सकता है।