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दिल्ली हाई कोर्ट का चौंकाने वाला फैसला: कॉन्ट्रैक्ट क्लॉज में नया ट्विस्ट, क्या होगा कॉन्ट्रैक्टर्स का भविष्य?

दिल्ली हाई कोर्ट का सनसनीखेज फैसला

7 जुलाई 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया, जो कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए खतरे की घंटी बन सकता है।

जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की बेंच ने कहा कि अगर कॉन्ट्रैक्ट में कोई क्लॉज एम्प्लॉयर को डैमेज क्लेम में फायदा देता है

और कॉन्ट्रैक्टर उसे आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के सामने या कॉन्ट्रैक्ट साइन करते वक्त चैलेंज नहीं करता,

तो उसे बाद में सेक्शन 34 के तहत चैलेंज नहीं किया जा सकता।

इसका मतलब? कॉन्ट्रैक्टर ने उसे जानबूझकर स्वीकार किया माना जाएगा!

क्या यह कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए खेल खत्म होने जैसा है?

मामला क्या है?

यह केस एक पब्लिक वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ा है,

जहां क्लॉज 8.3 (जनरल कंडीशंस ऑफ कॉन्ट्रैक्ट) ने एम्प्लॉयर को ताकत दी और कॉन्ट्रैक्टर को कमजोर किया।

  • क्लॉज 8.3: अगर एम्प्लॉयर या इंजीनियर साइट, नोटिस, या सामग्री देने में देरी करता है, तो कॉन्ट्रैक्टर केवल समय विस्तार मांग सकता है, न कि पैसे का हर्जाना।
  • विपरीत स्थिति: अगर कॉन्ट्रैक्टर देरी करता है, तो एम्प्लॉयर डैमेज क्लेम कर सकता है।
  • कोर्ट की टिप्पणी: दोनों पक्षों ने इस क्लॉज को जानबूझकर स्वीकार किया था। कॉन्ट्रैक्टर ने न तो कॉन्ट्रैक्ट साइन करते वक्त न ही ट्रिब्यूनल में इसे चैलेंज किया। अब सेक्शन 34 के तहत इसे उठाना “अप्रत्यक्ष चैलेंज” है, जो मान्य नहीं।

क्या कॉन्ट्रैक्टर्स अब हर क्लॉज को बारीकी से पढ़ने को मजबूर होंगे?

कॉन्ट्रैक्टर की दलील: क्या थी शिकायत?

कॉन्ट्रैक्टर ने कोर्ट में दावा किया कि क्लॉज 8.3 भारतीय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 73 और पब्लिक पॉलिसी के खिलाफ है।

  • उनका तर्क:
    • एम्प्लॉयर ने साइट और सामग्री देने में देरी की, जिससे नुकसान हुआ।
    • क्लॉज 8.3 कॉन्ट्रैक्टर को डैमेज क्लेम करने से रोकता है, जो अनुचित है।
    • Simplex Concrete Piles (India) Ltd. vs. Union of India और G. Ramachandra Reddy vs. UOI के केस में कोर्ट ने ऐसे क्लॉज को गलत ठहराया था।
  • आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का फैसला: ट्रिब्यूनल ने क्लॉज 8.3 के आधार पर कॉन्ट्रैक्टर का डैमेज क्लेम खारिज कर दिया, क्योंकि देरी के लिए समय विस्तार दिया गया था, न कि हर्जाना।

क्या कॉन्ट्रैक्टर की आवाज को दबाया गया?

एम्प्लॉयर की दलील: क्यों ठहराया गया सही?

एम्प्लॉयर (रिस्पॉन्डेंट) ने कोर्ट में कहा कि कॉन्ट्रैक्टर ने गलत समय पर गलत दलील दी।

  • उनका तर्क:
    • कॉन्ट्रैक्टर ने ट्रिब्यूनल में क्लॉज 8.3 को पब्लिक पॉलिसी के खिलाफ होने का मुद्दा नहीं उठाया।
    • Simplex Concrete का हवाला भी ट्रिब्यूनल में नहीं दिया गया।
    • सेक्शन 34 के तहत पहली बार नई दलीलें नहीं उठाई जा सकतीं।
  • कोर्ट का समर्थन: जस्टिस ओहरी ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट के समय या ट्रिब्यूनल में चैलेंज न करने से कॉन्ट्रैक्टर ने क्लॉज को स्वीकार कर लिया।

क्या यह एम्प्लॉयर की जीत है या कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए चेतावनी?

पहले क्या कह चुके हैं कोर्ट?

यह कोई नया मुद्दा नहीं है।

दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी ऐसे क्लॉज पर बात की है:

  • Simplex Concrete Piles (2010): दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि डैमेज रोकने वाला क्लॉज धारा 73 के खिलाफ है और पब्लिक पॉलिसी का उल्लंघन करता है।
  • MBL इन्फ्रास्ट्रक्चर (2024): कोर्ट ने कहा कि अगर एम्प्लॉयर की देरी सिद्ध हो, तो ट्रिब्यूनल डैमेज दे सकता है, भले ही कॉन्ट्रैक्ट में केवल समय विस्तार का प्रावधान हो।
  • Central Inland Water Transport (1986): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असमान ताकत वाले पक्षों के बीच अनुचित क्लॉज धारा 23 के तहत अवैध हैं।

तो फिर इस बार कोर्ट ने उल्टा फैसला क्यों दिया?

इस फैसले का असर: कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए खतरा?

यह फैसला कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए बड़ा झटका हो सकता है।

  • नया नियम: अगर आप कॉन्ट्रैक्ट साइन करते वक्त या ट्रिब्यूनल में क्लॉज को चैलेंज नहीं करते, तो बाद में कोर्ट में शिकायत नहीं कर सकते।
  • एम्प्लॉयर की ताकत: ऐसे क्लॉज अब एम्प्लॉयर को और ताकत दे सकते हैं, खासकर सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स में।
  • कॉन्ट्रैक्टर्स की सावधानी: अब हर कॉन्ट्रैक्टर को कॉन्ट्रैक्ट की बारीकियां पढ़नी होंगी, वरना नुकसान उठाना पड़ेगा।
  • पब्लिक पॉलिसी का सवाल: क्या यह फैसला पब्लिक पॉलिसी के खिलाफ है? कोर्ट ने इस पर चुप्पी साधी।

क्या कॉन्ट्रैक्टर्स अब हर शब्द पर वकील बिठाएंगे?

क्या होगा आगे?

यह फैसला कॉन्ट्रैक्ट लॉ में नया मोड़ ला सकता है।

  • कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्टिंग: एम्प्लॉयर्स अब और सख्त क्लॉज डाल सकते हैं।
  • कॉन्ट्रैक्टर्स का रास्ता: कॉन्ट्रैक्ट साइन करने से पहले वकील की सलाह जरूरी।
  • सुप्रीम कोर्ट की राह?: क्या कॉन्ट्रैक्टर इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेगा?
  • AI का रोल: क्या भविष्य में AI टूल्स कॉन्ट्रैक्ट्स की बारीकियां पकड़ने में मदद करेंगे?

क्या यह फैसला कॉन्ट्रैक्टर्स को जाल में फंसाएगा, या एम्प्लॉयर्स को और ताकत देगा?

दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में हलचल मचा रहा है। क्या आप तैयार हैं इस नए नियम का सामना करने के लिए? अपडेट्स के लिए बने रहें!

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