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विकसित हो भीड़ नियंत्रण का प्रभावी तंत्र

देश में हम आए दिन भीड़ में भगदड़ मचने से कई लोगों के मरने की खबरें पढ़ते रहते हैं। हाल ही में महाकुंभ स्नान के दौरान प्रयागराज में भीड़ में भगदड़ के चलते 37 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। इस घटना के कुछ दिनों बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर महाकुंभ जाने वालों की भीड़ में अचानक भगदड़ मचने से 18 लोगों की मौत हो गई थी। यह दोनों ही दुर्घटनाएं बहुत दुर्भाग्यपूर्ण व दुखद हैं।

देश में भगदड़ में मरने वालों की सूची बहुत लंबी है। सभी को पता है कि जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ एकत्रित होगी वहां कभी भी भगदड़ मचने की स्थिति पैदा हो सकती है। मगर अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है जिससे भगदड़ की स्थिति ही उत्पन्न नहीं होने पाए। सरकारें भी भगदड़ होने के बाद उसको रोकने के ढोल पीट कर कुछ समय बाद शांत बैठ जाती है। ऐसा कोई स्थाई तंत्र विकसित नहीं किया जाता है। जिससे भगदड़ की स्थिति होने से पहले ही सुरक्षा कर्मियों को अलर्ट मिले और वह उन पर नियंत्रण कर सके।

भगदड़ भीड़ प्रबंधन की असफलता की स्थिति में पैदा हुई मानव निर्मित आपदा है। भगदड़ प्रायः भीड़ भरे इलाको में किसी अफवाह के कारण भी पैदा हो सकती है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाएं एवं प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण भी यह आपदा पैदा होती है। इसमें संपत्ति से अधिक जान की क्षति होने की संभावना रहती है। भीड़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के वैश्विक डेटाबेस के मुताबिक सन 2000 के बाद से भारत में 50 से ज्यादा विनाशकारी सामूहिक समारोहों में दो हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इन दुर्घटनाओं को देखते हुए प्रभावी भीड़ प्रबंधन तंत्र विकसित करने की बहुत जरूरत महसूस की जा रही है। खासकर कुंभ जैसे बड़े आयोजनों में इसकी काफी जरूरत महसूस होती है।

भगदड़ बेहद खतरनाक और घातक स्थिति होती है। किसी भी जगह जब भीड़ उसकी क्षमता से अधिक हो जाती है और लोगों के पास निकलने का रास्ता नहीं होता है, भीड़ की वजह से लोगों को पैर रखने की जगह नहीं मिलती है, ऐसी स्थिति में किसी तरह की अफवाह या दुर्घटना होने पर भीड़ बेकाबू हो जाती है। इसे भीड़ में हलचल भी कहा जाता है। इसकी वजह से ही भगदड़ की स्थिति बनती है। इसी तरह भीड़ में हलचल का मतलब भीड़ का बेतरतीब तरीके से एक से ज्यादा दिशाओं में एक ही समय में आगे बढ़ना है। ऐसे में लोगों को चलने के लिए जगह कम होती है वो एक-दूसरे के बीच दब जाते हैं। जब लोग एक-दूसरे से बहुत नजदीक होते हैं तो ‘फोर्सेज का ट्रांसमिशन’ यानी बल का संचरण हो सकता है। इस फोर्स ट्रांसमिशन को आपने भी कभी न कभी तब महसूस किया होगा जब आप एक बहुत भीड़भाड़ वाली किसी लाइन में खड़े हुए होंगे। जब पीछे से अचानक धक्का लगता है तो व्यक्ति खुद भी उस धक्के को अपने से आगे खड़े व्यक्ति को ट्रांसफर कर देते हैं। ऐसे में अपना संतुलन बनाए रखना और अपने पैरों पर खड़े रहना लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है।

ये पहली बार नहीं था जब किसी धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मची हो। इसके पहले भी समय-समय पर भगदड़ मचने की खबरें सामने आती रही हैं। इन घटनाओं में कई लोगों की जान भी चली गई। 27 अगस्त 2003 महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में स्नान के दौरान भगदड़ मचने से 39 लोगों की मौत हो गई थी। 25 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में भगदड़ मच गई थी। जिसमें 340 से ज्यादा श्रद्धालु कुचले गए थे। 3 अगस्त 2008 हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में मची भगदड़ में 162 लोगों की मौत हो गई थी। 30 सितंबर 2008 राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में मची भगदड़ में लगभग 250 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। 4 मार्च 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ में 63 लोगों की मौत हो गई थी.। 14 जनवरी 2011 को केरल के इडुक्की जिले के पुलमेडु में सबरीमाला मंदिर में एक जीप की टक्कर से मची भगदड़ में 104 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। 8 नवंबर 2011 को हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे हर की पौड़ी घाट पर मची भगदड़ में लगभग 20 लोगों की मौत हो गई थी। 19 नवंबर 2012 को पटना में गंगा नदी पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से भगदड़ मच गई थी जिसमें 20 लोगों की मौत हो गयी थी।

13 अक्टूबर 2013 मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि के जश्न के दौरान भगदड़ मचने से 115 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। 3 अक्टूबर 2014 को दशहरे का जश्न समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मच गई जिसमें 32 लोगों की मौत हो गई थी। 14 जुलाई 2015 को आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में पुष्करम उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर भगदड़ मचने से 27 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। 1 जनवरी 2022 को जम्मू-कश्मीर में माता वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 12 लोगों की मौत हो गई थी। 31 मार्च 2023 को इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के मौके पर एक प्राचीन बावड़ी के ऊपर बनी स्लैब के ढह जाने से 36 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

इसी तरह रेलवे स्टेशनों पर भी भगदड़ के कारण कई बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। 28 सितंबर 2002 को लखनऊ में बसपा की रैली से वापस लौटते समय ट्रेन की छत पर चढ़ने से चार लोगों की करंट लगने से मौत हो गई थी। 13 नवंबर 2004 को नई दिल्ली स्टेशन पर छठ पूजा के दौरान बिहार जाने वाले ट्रेन का प्लेटफार्म अचानक बदलने से दूसरे प्लेटफार्म पर जाने के लिए ओवरब्रिज पर मची भगदड़ में चार यात्रियों की मौत हुई थी। 03 अक्टूबर 2007 को मुगलसराय जंक्शन पर भगदड़ मचने के कारण 14 महिलाओं की मौत हो गई थी। 10 फरवरी 2013 को इलाहाबाद में कुंभ मेला के दौरान रेलवे जंक्शन पर भगदड़ मचने से 38 लोगों की मौत हो गई थी। 29 सितंबर 2017 के दिन मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन में बने फुट ओवरब्रिज पर भगदड़ मचने के कारण 22 लोगों की मौत हुई थी।

हमारे देश में आए दिन जगह-जगह बड़े-बड़े धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक व अन्य कई प्रकार के आयोजन होते रहते हैं। जिनमें हजारों-लाखों लोग शामिल होते हैं। ऐसे ही कार्यक्रमों में जरा-सी लापरवाही भगदड़ का कारण बन सकती है। ऐसे में यदि कार्यक्रम के आयोजक सावधानी बरतते हुए भीड़ नियंत्रण के पुख्ता इंतजाम करें तभी किसी तरह की दुर्घटना होने से बचा जा सकता है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन व प्रयागराज के महाकुंभ में भी जो भगदड़ की स्थिति पैदा हुई है उसमें प्रशासनिक चूक रही है। एक स्थान पर अधिक भीड़ इकट्ठा होने पर यदि प्रशासन के अधिकारी सतर्कता बढ़ाते तो ऐसी दुर्घटनाओं को टाला जा सकता था। आगे भी सरकार को चाहिए कि ऐसे किसी भी बड़े आयोजनों के लिए और अधिक पुख्ता व्यवस्था करें। देश में आपदा राहत बल को भी अधिक सशक्त किया जाये ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।

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