—माताओं ने संतान के कल्याण के लिए रखा व्रत,अन्य मंदिरों में भीड़
वाराणसी,17 जनवरी (हि.स.)। माघ मास के चर्तुथी(संकष्टी चतुर्थी) पर शुक्रवार को लोहटिया स्थित बड़ा गणेश मंदिर में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। इस वर्ष के पहले चतुर्थी पर नगर के अन्य गणेश मंदिरों में भी दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु महिलाओं की भीड़ जुटी रही। संतान की प्राप्ति और उसके दीर्घ जीवन के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखने वाली महिलाओं ने सुबह स्नान के बाद बड़ागणेश मंदिर में कतारबद्ध होकर दर्शन पूजन किया। पूरे दिन व्रत रख महिलाएं रात में भगवान गणेश का विधि विधान से पूजन अर्चन कर चंद्रोदय होने पर अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण करेंगी। सनातन धर्म में मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए शुभ माना गया है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा मानव के जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है। संतान से जुड़ी बाधा भी दूर होती है। माताएं अपने पुत्रों के कल्याण की कामना से भी व्रत रखती हैं।
कर्मकांडी प्रदीप पांडेय के अनुसार इस बार चतुर्थी तिथि की शुरूआत प्रातः 4 बजकर 10 मिनट से हुई। शनिवार 18 जनवरी को प्रातः 5 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। माघ मास के चतुर्थी को संकट चौथ, वक्रतुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को लेकर एक कथा है कि एक बार गणेश भगवान की मां भगवती पार्वती स्नान कर रही थीं। उन्होंने घर के बाहर पहरा देने के लिए भगवान गणेश को खड़ा रहने को कहा। मां ने आदेश देते हुए कहा कि कोई भी अंदर न आने पाए। कुछ देर के बाद भगवान गणेश के पिता महादेव आए और अंदर जाने लगे। यह देख गणेशजी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया और कहा कि किसी को भी अंदर जाने की आज्ञा नहीं है। इस बात को लेकर पिता-पुत्र में विवाद हो गया। क्रोधित होकर महादेव ने त्रिशूल से भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती स्नान करके बाहर आईं तो बेटे गणेश का सिर कटा देख रोने लगीं। उन्होंने महादेव से कहा कि मुझे मेरा बेटा जीवित चाहिए। उनकी मनुहार पर महादेव ने गणेशजी के सिर के स्थान पर एक हाथी का सिर लगा दिया। तभी से भगवान गणेश को गजानन कहा जाने लगा। इसके साथ ही उन्हें वरदान मिला कि देवताओं में सबसे पहले उनकी ही पूजा होगी। सनातन धर्म में मान्यता है कि संकष्टी चतर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।