नई दिल्ली, 28 मार्च (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात के जामनगर में दर्ज एफआईआर को निरस्त कर दिया। जस्टिस एएस ओका की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कोई केस नहीं बनता है। पुलिस को इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले बोले गए या लिखित शब्दों के सही निहितार्थ को समझना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान अभिव्यक्ति की आजादी पर वाजिब प्रतिबंध की इजाजत देता है, पर ये प्रतिबंध गैरवाजिब नहीं होने चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को यूं ही नहीं छीना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। कोर्ट की जिम्मेदारी बनती है कि वो लोगों के इस मौलिक अधिकार की रक्षा करें।
शीर्ष अदालत ने 3 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि आजादी के 75 साल बाद भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पुलिस को समझना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से कहा था कि आप इमरान प्रतापगढ़ी की कविता पर गौर कीजिए । आखिर रचनात्मकता भी महत्वपूर्ण है। इमरान प्रतापगढ़ी ने याचिका दायर कर दावा किया था कि एफआईआर गुजरात पुलिस ने राजनीतिक दुर्भावना से दर्ज की है।
दरअसल इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कथित तौर पर उत्तेजक गाने के साथ एक संपादित वीडियो पोस्ट करने के लिए जामनगर में एफआईआर दर्ज की गई था। इमरान प्रतापगढ़ी ने एफआईआर निरस्त करने के लिए पहले गुजरात हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। गुजरात हाई कोर्ट ने 17 जनवरी को प्रतापगढ़ी की याचिका खारिज कर दी थी।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर प्रतापगढ़ी द्वारा अपलोड की गई 46 सेकंड की वीडियो क्लिप, जिसमें वह हाथ हिलाते हुए चल रहे थे तो उन पर फूलों की वर्षा की जा रही थी और बैकग्राउंड में एक गाना बज रहा था। इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर में कहा गया था कि उस गाने के बोल उत्तेजक, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हैं। इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन हैं।