रुद्रप्रयाग, 26 मार्च (हि.स.)। शक्तिपीठ कालीमठ में मां सरस्वती अस्त्र-शस्त्र धारण कर विराजमान हैं। यह देशभर में संभवत: एकमात्र मंदिर है, जहां मां सरस्वती इस रूप में हैं। साथ ही इस शक्तिपीठ में त्रिशक्ति (मां महाकाली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती) अपने-अपने मंदिर विराजमान हैं। वैष्णो देवी मंदिर में यह तीन देवियां पिंडी रूप में हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्र के साथ ही वर्षभर लाखों श्रद्धालु आराध्य के दर्शन कर पूजा-पाठ के लिए पहुंचते हैं।
रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर गुप्तकाशी-कालीमठ-कोटमा-चौमासी मोटर मार्ग पर गुप्तकाशी से लगभग 10 किमी की दूरी पर कालीमठ मंदिर स्थित है। यहां काली नदी किनारे मां महाकाली का शक्तिपीठ है। इस मंदिर परिसर में मां महाकाली की प्रतिदिन विशेष पूजा-अर्चना होती है। यहां मां काली की मूर्ति नहीं है, बल्कि श्रीयंत्र की पूजा की जाती है, जो रजतपट से ढका रहता है। इस मंदिर परिसर में मां सरस्वती और मां लक्ष्मी के प्राचीन मंदिर है, जहां आराध्य की काले पत्थर की मूर्तियां हैं। विशेष यह है कि, यहां मां सरस्वती की मूर्ति अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं, जो अन्य जगहों से अलग है। क्योंकि, अन्य जहां भी मंदिरों में मां सरस्वती की मूर्ति है, वह वीणा धारण किए हुए है। आचार्य दिनेश गौड़ बताते हैं कि, मां सरस्वती विद्या की देवी हैं।
कालीमठ में मां सरस्वती अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए विराजमान हैं। उन्होंने बताया कि देशभर में शक्तिपीठ कालीमठ एकमात्र मंदिर है, जहां त्रिशक्ति एक ही परिसर में अपने-अपने मंदिर में विराजमान हैं। यहां वर्षभर देवी भक्तों की भीड़ जुटी रहती है। स्थानीय सहित जिले और बाहरी से देवी भक्त चैत्र व शारदीय नवरात्र के साथ ही अन्य मौकों पर यहां पहुंचते हैं और आराध्य देवी के दर्शन कर पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर के प्रबंधक प्रकाश पुरोहित बताते हैं कि कालीमठ पहुंचकर श्रद्धालु मां देवी मां के तीन रूपों के एकसाथ दर्शन होते हैं, जो दुर्लभ है।