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विमान क्रैश : ये चूक किस पर भारी ?

देश में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जो बार-बार होती है, किंतु इसके बाद भी उनसे हम कुछ सबक लेना नहीं चाहते। तर्कों की बोछारों के बीच इस मामले में अपने-अपने सभी के तर्क हो सकते हैं। कोई सिस्टम का हवाला देगा तो कोई संसाधनों की कमी या समय को इसके लिए दोषी मानेगा, किंतु इस सब के बीच जो नहीं बदलने वाला वह है सत्‍य, जो घट चुका है। दो अप्रैल को हुए विमान हादसे में इंडियन एयरफोर्स के फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव का सिर्फ 28 वर्ष की अल्‍प आयु में निधन हो गया। उनके निधन ने एक बार फिर से भारतीय सेना द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे दशकों पुराने विमानों को लेकर बहस छेड़ दी है। भारतीय वायुसेना (आईएएफ) ने स्‍वयं स्‍वीकार किया है कि ‘जगुआर लड़ाकू विमान में पायलटों को तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा और हादसा हो गया।’

संवेदना के स्‍तर पर एक मां का भावुक पत्र पूरे सिस्‍टम को आज बड़ा संदेश दे रहा है। वस्‍तुत: 2001 में एमआईजी-21 क्रैश में हुतात्‍मा होनेवाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की मां ने फेसबुक के माध्‍यम से एयरफोर्स के विमान हादसों को लेकर लिखा है, “मैं चाहती हूं कि आप याद रखें। गुस्सा करें। बेहतर की मांग करें। परवाह करने के लिए अगली दुर्घटना का इंतजार न करें।” 75 साल की कविता गाडगिल लिखती हैं, “इन लड़कों को फोटो खिंचवाने और देशभक्ति के हैशटैग तक सीमित न रखें, भारत के प्रिय नागरिकों, एक और जवान चला गया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव। युद्ध में शहीद नहीं हुआ। लड़ाई में नहीं मारा गया। लेकिन 46 साल पुराने जगुआर जेट में खो गया, जिसे उसके जन्म से बहुत पहले ही जमीन पर उतार दिया जाना चाहिए था। उनकी मृत्यु एक ऐसे विमान को उड़ाते हुए हुई जिसे दुनिया ने दशकों पहले ही रिटायर कर दिया था। एक ऐसा विमान जो मिग-21 की तरह आज भी हमारे आसमान में आतंक मचा रहा है और हमारे सबसे होनहार और बहादुर लोगों की जान ले रहा है, दुश्मन की कार्रवाई की वजह से नहीं, बल्कि हमारी अपनी उदासीनता के कारण।”

ये मां आगे लिखती हैं, “मेरे बेटे, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की भी इसी तरह मृत्यु हुई थी। 2001 में। तब से, 340 से अधिक भारतीय वायु सेना के विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। 150 से अधिक पायलट मारे गए हैं। संख्याएं भयावह हैं। उनके बारे में चुप्पी, और भी बदतर है। और फिर भी, हम आगे बढ़ते हैं। कोई जवाबदेही नहीं। कोई सुधार नहीं। कोई आक्रोश नहीं। इसके बजाय हमें सलाह मिलती है। मंत्रियों और नौकरशाहों से जो इनोवेशन और ‘डीप टेक’ रिवॉल्यूशन की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। जो युवा उद्यमियों और सपने देखने वालों को पर्याप्त काम न करने के लिए दोषी ठहराते हैं। जबकि उनकी अपनी मशीनरी, पीएसयू, रक्षा अनुसंधान संगठन, राज्य तंत्र, साल-दर-साल हमारे सशस्त्र बलों को विफल करते रहते हैं।हम ग्लोबल पावर बनने की बात करते हैं। हम विश्व मंच पर सम्मान की मांग करते हैं। लेकिन हम अपने ऑफिसर्स को पुराने विमानों, उधार के समय और उधार के पुर्जों पर उड़ने वाली मशीनों में भेजते हैं। और हम इसे वीरता कहते हैं। यह वीरता नहीं है। यह हिंसा है।’’

ये दर्द बहुत भयंकर है, ‘‘हमारे अपने लोगों के खिलाफ राज्य द्वारा स्वीकृत हिंसा। सिद्धार्थ की सगाई हुई थी। दुर्घटना से दस दिन पहले। वह अपना जीवन संवार रहा था। और हमने उसे कॉकपिट के नाम पर एक ताबूत दिया। मुझे आपकी संवेदनाएं नहीं चाहिए… उनके ताबूतों को सलाम मत करो और अगले हफ़्ते की सुर्खियों में उन्हें भूल जाओ… वे इससे बेहतर के हकदार थे। हम उनसे बेहतर के लिए ऋणी हैं…”

कहना होगा कि भारतीय वायु सेना के पिछले एक साल में छह फाइटर जेट क्रैश हुए हैं। दिसंबर 2024 में संसद की स्टैंडिंग कमेटी की एक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि वर्ष 2017 से 2022 के बीच कुल 35 फाइटर जेट्स कॉम्बैट हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट दुर्घटनाग्रस्‍त हुए, जिसमें कि 54 प्रतिशत ये क्रैश किसी तकनीकी खराबी के कारण नहीं पायलट या किसी और ऑफिसर की गलती, ह्युमन एरर के कारण से हुए। सरकार ने संसद में यह भी बताया था कि अब भारत में ऐसी दुर्घटनाएं बहुत कम हो रही हैं और पहले जहां 10 हजार फ्लाइंग हॉर्स पर यह 0.9 थीं वह अब 2020 से 2024 तक 0.2 पर आ गई हैं। अब सेना और भारत सरकार के समर्थन में बात रखनेवाले इस आंकड़े को देखकर अवश्‍य यह कह सकते हैं कि सरकार तो अपना काम कर रही है। घटनाओं में कमी साफ बता रही है कि कैसे भारत में इस ओर भी सशक्‍त रूप से ध्‍यान दिया जा रहा है। पर विषय इतना सरल नहीं कि इसकी गंभीरता को इतना कहकर नकार दिया जाए! क्‍योंकि भारत इन दुर्घटनाओं के चलते अपने श्रेष्‍ठ पायलटों को लगातार खो रहा है।

वास्‍वत में यह बहुत ही समझ के परे है कि भारतीय वायुसेना अब तक 1970 के दशक के पुराने जगुआर लड़ाकू विमानों पर क्‍यों निर्भर है? करीब 120 जगुआर भारतीय वायुसेना के बेड़े में अब भी मौजूद हैं, जबकि दुनिया इस श्रेणी के पुराने विमानों को दशकों पहले ही हटा चुकी है। यह सही है कि जगुआर को कभी तेज और नीची ऊंचाई पर मिशन अंजाम देने के लिए डिजाइन किया गया था। इसके माध्‍यम से कभी 1987 से 1990 के बीच श्रीलंका में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स मिशन के दौरान इसने महत्वपूर्ण जासूसी और निगरानी में अपनी सशक्‍त भूमिका को अंजाम दिया। इस दौर में जब भारत की परमाणु शक्ति आकार ले रही थी, तब मुख्य डिलीवरी प्लेटफॉर्म के रूप में अपना कार्य बखूबी अंजाम देने में भी यह सफल साबित हुआ। वहीं जगुआर 1999 के करगिल युद्ध में ऊंचे और कठिन इलाकों में सटीक बमबारी कर रहा था। इसके अलावा वर्ष 2003 में पृथ्वी-II मिसाइल के आने तक जगुआर ही भारत की न्यूक्लियर स्ट्राइक फोर्स की रीढ़ बना रहा, किंतु यह भी सच है कि आज के आधुनिक स्टेल्थ फाइटर जेट के मुकाबले यह पूरी तरह से कमजोर साबित हो रहा है। इसकी नीची उड़ान क्षमता, जो कभी इसकी ताकत रही, वह अब दुश्मन की एडवांस्ड रडार टेक्नोलॉजी के सामने अपना प्रभाव खो चुकी है। इसलिए हमें यह स्‍वीकारना होगा कि जगुआर की तकनीक अब पुरानी हो चुकी है और इसकी क्षमताएं भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहीं, बल्‍कि अपने होनहार पायलटों को खोने का कारण बन रही है। इसलिए अच्‍छा हो भारत सरकार इस विषय पर अति गंभीरता से ध्‍यान दे और इस तरह की पुरानी तकनीक के जितने भी विमान हैं उन्‍हें सेना से विदा कर उन्‍नत तकनीक के विमानों से उसकी पूर्ति करे।

वस्‍तुत: आज यह कहना सही होगा कि यह किसी एक मां का दर्द नहीं, जिसने अपने बेटे को विमान हादसे में खोया है, बल्‍कि यह हर भारत वासी का दर्द है जो अपने वतन और अपने बहादुर सैनियों से अपार प्रेम करते हैं। अब सरकार इस बार को जितना जल्‍दी समझे उतना अच्‍छा है!

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