महाकुम्भ नगर, 01 फरवरी(हि.स. )। प्रख्यात संत स्वामी दिव्यानंद जी महाराज लगभग चार दशकों से अपनी सेवा विभिन्न मंचों से देते आ रहे हैं। वर्तमान में वह अखिल भारतीय संत समिति एवं विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं। सनातन की गहरी समझ के साथ राष्ट्रवाद की भावना से ओत-प्रोत स्वामी दिव्यानंद जी महाराज जीवन के लगभग हर क्षेत्र और विषय पर सूक्ष्म दृष्टि तो रखते हैं। समसामयिक घटनाओं और देशकाल की अपडेट उनके पास रहती है। महाराज जी इन दिनों महाकुम्भ मेले में प्रवास पर हैं। हिन्दुस्थान समाचार के लिये विकास पाण्डेय ने अध्यात्म, समाज और समसामयिक विषयों पर लंबी बातचीत की। यहां प्रस्तुत है बातचीत का मुख्य अंश…
प्रश्न : कुंभ पर्व का महत्व क्या है? क्या यह अमृत की बूंदों के गिरने व उसको पाने जैसी कथा तक सीमित है?
उत्तर : अमृत की जो बूंदें गिरी थीं, उस समय खगोलीय दृष्टिकोण से जो ग्रह नक्षत्रों की स्थिति थी, ठीक उसी संयोग, स्थिति एवं स्थान पर कुम्भ आयोजित होता है। इस संयोग में स्नान का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व और लाभ है। वहीं इस पर्व में सामाजिक समरसता भी समाहित है।
प्रश्न : सनातन बोर्ड की मांग संत समाज से उठ रही है, इस पर आपका क्या मत है?
उत्तर : समाज में विभिन्न मत हो सकते हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबको है। किसी विशेष वर्ग की अपेक्षा होगी, किंतु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय सन्त समिति की ओर से सरकार से ‘वक्फ बोर्ड’ को निरस्त करने या संशोधन मात्र का आवाहन किया गया है।
प्रश्न : क्या ‘पोप’ की भांति आज हिन्दू धर्माचार्यों का कोई सर्वोच्च निकाय होना समय की आवश्यकता नहीं?
उत्तर : हमारे सनातन धर्म में चार पीठों में पूज्य शंकराचार्य जी हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी के द्वारा इस व्यवस्था को प्रारंभ किया गया था। सनातन जिसका न कोई आदि है, न कोई अंत है। इसकी तुलना किसी और से की ही नहीं जा सकती, करनी भी नहीं चाहिये।
प्रश्न : वक्फ बोर्ड को खत्म करने की मांग संत समाज और सामाजिक संगठन करे रहे हैं, इस पर आपकी क्या राय है?
उत्तर : बिल्कुल, इसे निरस्त किया जाना चाहिए। जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जे.पी.सी) ने अपना काम करके, रिपोर्ट सरकार को भेजी है। उम्मीद है, सरकार हमारी मांग पर यथायोग्य निर्णय लेगी।
प्रश्न : क्या आपको लगता है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम , 1991) में बदलाव होना चाहिए या इसे खत्म कर देना चाहिए?
उत्तर : बिल्कुल खत्म होना चाहिए। हमारी आस्था और धरोहर हमारे अस्तित्व का विषय है। इससे ( प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट) भारत की पहचान खत्म हो जायेगी। हम इस एक्ट को खत्म करने की मांग करते हैं।
प्रश्न : आखिर क्या कारण है कि हिन्दू समाज कुछ राजनीतिक दलों के सदैव निशाने पर रहता है?
उत्तर : राजनीतिक दलों को कुर्सी की लोलुपता रहती है। जिन्हें राष्ट्र प्रेम या जनसेवा से कोई सरोकार नहीं है, वे (राजनीतिक दल और नेता) तुष्टिकरण की राजनीति और वोट बैंक के लिये सनातन को निशाने पर लेते हैं। असल में ऐसा करके वो पाप करते हैं। कलियुग का प्रभाव भी है। जो धर्म एवं राष्ट्र के लिये निःस्वार्थ भाव से समर्पित होते हैं, उन्हें स्वार्थियों का दंश झेलना ही पड़ता है। लेकिन यह दंश क्षणिक होता है। जो पहले से है, वही तो सनातन है। किसी भी क्षेत्र की (राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र) की आसुरी ताकत सनातन को खत्म नहीं कर सकती।
प्रश्न : समय के साथ हिन्दूधर्म में प्रवेश कर गयीं कुरीतियों के विषय में क्या कहेंगे? इन्हें दूर करने के लिए संत समाज क्या प्रयास कर रहा है?
उत्तर : हमारे देश में विशेष कालखंड में विवशतावश कुछ कुरीतियां प्रवेश कर गई थी। उन कुरीतियों को दूरे करने के लिये संत समाज मे साथ कई संस्थाएं जैसे गायत्री परिवार, स्वामी नारायण, शिव परिवार और अन्य संस्थाएं प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं। असल बात यह है कि, हमारे समाज (हिन्दू समाज) से कई गुणा ज्यादा कुरीतियां एवं गंदगी दूसरे के समुदाय में हैं। उनसे कभी प्रश्न क्यों नहीं किया जाता। सिर्फ सहिष्णु हिन्दू समाज से ही ऐसे प्रश्न क्यों….?
प्रश्न : कई मठ व मंदिर व अन्य धर्म संस्थान चिकित्सालय, कॉलेज, धर्मशालाएं आदि का संचालन करते हैं। आपके यहां लोकहित के क्या कार्य किये जाते हैं?
उत्तर : इसका सीधा प्रमाण अभी कुम्भ में देखा जा सकता है कि किस प्रकार की सेवाएं अनवरत चौबीस घंटे निःस्वार्थ भाव से जारी हैं। किसी संकट की स्थिति में संघ परिवार के साथ सिक्ख और जैन समाज के साथ कई संस्थाएं कार्य कर रही हैं। वहीं हमारी समविचारधारा के राजनीतिक दल भी अपना योगदान दे रहे हैं।
प्रश्न : एक ओर आपकी हजारों-हजार वर्षो की संत परम्परा है, दूसरी ओर अनेक स्वयंभू बाबाओं की भीड़-दोनों में अंतर क्या है? संतों के इस बाजारीकरण को रोके जाने के लिए क्या प्रयास अपेक्षित हैं?
उत्तर : यदि कोई हमारे संत समाज की आड़ में कोई ऐसा कृत्य करता है तो समाज का भी दायित्व बनता है। ऐसी नौटंकियां सोशल मीडिया में देखी जा सकती हैं। इस सत्य को प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे तथाकथित संतों और बाबाओं की पहचान जरूरी है। समाज भी ऐसे लोगों का बहिष्कार करे। कुम्भ में सनातन संतों की शक्ति, पवित्रता, सेवा भाव और आध्यात्मिकता को देखा जा सकता है। जो सही में संत हैं, वो जनसेवा और परोपकार में लगे हैं। उन्हें सोशल मीडिया और नौटंकियों की जरूरत नहीं है। समाज भी सब देख और समझ रहा है।
प्रश्न : लव जेहाद के मामले लगातार सामने आ रहे हैं, जिसका शिकार हिन्दू बच्चियां हो रही हैं, इसको कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर : हम अपनी संतानों को संस्कार देते हैं। जेहादियों का एकमात्र कार्य वही है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे समाज का दायित्व है कि वो ऐसे तत्वों को पहचाने, उनका बहिष्कार करे। जो लोग लव जेहाद करते हैं, उन्हें सबक सिखाने की जरूरत है।
प्रश्न : हिन्दुओं को अपनी आबादी बढ़ानी चाहिए ये बयान कई मंचों से आया है, इस पर आपकी क्या राय है?
उत्तर : हम दो, हमारे दो की घूंट सिर्फ हमारे लिए…. किसी को नसबंदी करवाने पर पैसा…. तो किसी को गर्भावस्था से लेकर जीवन के प्रत्येक स्टेज में धनलाभ दिया जाना पहले की सरकारों की योजना थी। जनसंख्या संतुलन के लिए हम हिन्दू समाज से चार-चार बच्चे पैदा करने का आवाहन करते हैं।
प्रश्न : आप कुम्भ में पहले भी आये होंगे। इस बार के कुम्भ में क्या फर्क नजर आ रहा है?
उत्तर : अभूतपूर्व अंतर है। दिव्य, भव्य और स्वच्छ कुम्भ का स्लोगन दृष्टिगोचर हो रहा है। जिसे मीडिया के माध्यम से भी भारत ही नहीं अपितु पूरा विश्व सनातन संस्कृति के दिव्यता, भव्यता और नव्यता को देख रहा है। सरकार ने भी ऐतिहासिक प्रबंध किये हैं। इसलिये करोड़ों श्रद्धालु महाकुम्भ में आ रहे हैं।
प्रश्न : पवित्र संगम भूमि से आप देशवासियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर : संगम का अर्थ, पवित्र गंगा-यमुना-सरस्वती की पवित्र धारा है। तीनों पावन नदियां भक्ति, ज्ञान और कर्म का प्रतिनिधित्व करती हैं। मानव योनि 84 लाख योनियों के बाद प्राप्त होती है। इस जन्म को संगम के अर्थ में जीवन में आत्मसात करते हुए मोक्ष प्राप्ति की मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए। बाकी भौतिक जीवन में तो स्वतः सर्वस्व प्राप्त हो जाएगा।