महाकुम्भ में 15 फरवरी से होगी सामाजिक समरसता की अखिल भारतीय बैठक
महाकुम्भनगर, 13 फरवरी (हि.स.)। महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर-18 स्थित विश्व हिन्दू परिषद के महाशिविर में बने महर्षि वेद व्यास सभागार में 15 फरवरी से दो दिवसीय सामाजिक समरसता की अखिल भारतीय बैठक शुरू होगी। इस बैठक में विश्व हिन्दू परिषद के सामाजिक समरसता आयाम से जुड़े हुए देश के सभी प्रान्तों के प्रान्त स्तर के पदाधिकारी भाग लेंगे। इस बैठक में वर्तमान कार्य की समीक्षा के साथ-साथ आगामी कार्य योजना बनेगी। यह जानकारी विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता एवं सामाजिक समरसता आयाम के प्रमुख देवजी भाई रावत ने दी।
विहिप के प्रवक्ता देवजी भाई रावत ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीति को दूर करने और सामाजिक समरसता के निर्माण के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने अनेक कार्यक्रम शुरू किये हैं। प्रयागराज की पवित्र भूमि पर सामाजिक समरसता अभियान से जुड़े देशभर के कार्यकर्ताओं के साथ आने वाले समय में सम्पूर्ण भारत को अस्पृश्यता मुक्त करने का एक बड़ा संकल्प लेकर आगामी योजना बनायेंगे। बैठक में अस्पृश्यता मुक्त भारत समरसता युक्त भारत का संकल्प होगा। आने वाले समय में प्रत्येक गांव में छुआछूत नाम का यह रोग नेस्तानाबूद हो जाय और हिन्दू समाज में समरसता निर्माण हो जाये इसके लिए काम करेंगे। इसकी पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के समरसता यज्ञ, समरसता गोष्ठियां, छोटे-छोटे रोजगार सिखाकर समर्थ व स्वावलंबी बनाने का भी कार्य हो रहा है।
उन्होंने बताया कि समाज की कमजोर कड़ी जो आर्थिक रूप से कमजोर है। शिक्षा की कमी है। इसका लाभ ईसाई मिशनरी उठा रहे हैं। हमारे भोले-भाले समाज को हिन्दू धर्म से विमुख कर उनको मतांतरित करने का काम करते हैं। ईसाईकरण व मतांतरण रुके, इसके लिए भी बैठक में योजना बनाई जायेगी। बंजारा समाज ज्यादातर एक स्थान पर नहीं रहता। हमारे कार्यकर्ता प्रत्येक जिले में ऐसे समाज का अध्ययन कर संपर्क करते हैं । उनके बच्चों को संस्कारित व पढ़ाई कराने का काम कराते हैं। सेवा का यज्ञ करते हैं। शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए अनेक प्रकल्प चलाते हैं। इसके ऐसे समाज के लिए उनके लिए चुनाव कार्ड आधार कार्ड और जो भी आवश्यक है वह बनवाने व उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का काम करते हैं।
उन्होंने कहा कि विधर्मियों के आक्रमण के बाद बड़ी मात्रा में हमारे देश में पलायन हुआ। बंजारा समाज सुरक्षा के लिए अपना स्थान छोड़कर चले गये। उन्होंने संघर्ष कर अपने को अपनी संस्कृति को अपनी हिन्दू परम्परा को बचाकर रखा। हमारी जिम्मेदारी है कि ऐसे समाज को भारतीय संस्कृति के हिन्दुत्व के प्रवाह में जोड़ना और उनका सर्वांगीण विकास करना ऐसे समाज के उत्कर्ष के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाने की योजना है।