उदालगुड़ी (असम), 31 दिसंबर (हि.स.)। उदालगुड़ी जिलांतर्गत दहलपारा गांव में दुग्ध क्रांति हाल के दिनों में चर्चा का विषय बन गई है। दूध उत्पादन कर गांव के लोग अब आर्थिक, शिक्षा सहित सभी पहलुओं में मजबूत होकर संपन्न हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि आदिवासी गांव में डेयरी क्रांति की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी। उदालगुड़ी के दहलपारा गांव की आर्थिक स्थिति एक समय बेहद दयनीय थी। गांव में रहने वाले लगभग 90-95 परिवार दिहाड़ी मजदूरी और चुलाई शराब (घर में निर्मित देसी शराब) बेचकर जीवन यापन करते थे। गांव के कुछ युवाओं ने गांव में शैक्षिक माहौल और वित्तीय तंगी को देखते हुए गांव में चुलाई शराब की भट्टियों को बंद करके दुग्ध क्रांति की शुरुआत की। गांव के हर घर में गायों को पालना अनिवार्य कर दिया गया।
इसी बीच युवकों द्वारा गांव में उत्पादित दूध को एकत्रकर उदालगुड़ी कस्बे में बेचकर पैसा जमा करना शुरू किया गया। जब दूध का उत्पादन अच्छा होने लगा तो वर्ष 2014 में, दहलपारा डेयरी फॉर्म खोला गया और उन्नत नस्ल की गायों को ग्रामीणों को मुहैया कराया गया। वर्तमान समय में गांव में रोजाना 1,000 लीटर दूध का उत्पादन होता है। अब गांव के लोग आर्थिक, शिक्षा और अच्छी तरह से सभी पहलुओं में मजबूत होकर मुस्कुराने लगे हैं। दहलपारा गांव के युवा वर्तमान समय में आसपास के गांवों के लिए एक आदर्श के रूप में अपने आप को स्थापित करने में सफल हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व बीटीसी के मुख्य कार्यकारी पार्षद प्रमोद बोडो दहलपारा गांव का दौरा कर ग्रामीणों का हौसला बढ़ाया था। उन्होंने कहा था कि दहलपारा गांव दूध उत्पादन को बढ़ाकर असम की ‘श्वेत क्रांति’ को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा था कि ‘असम के दुग्ध गांव’ का दौरा करके और डेयरी किसानों, दूध उत्पादकों से बातचीत करके प्रसन्नता हुई। उन्होंने राज्य के डेयरी क्षेत्र में एक बड़ा हितधारक बनने के लिए बीटीसी सरकार की ओर से हर संभव सहायता और सहयोग का आश्वासन दिया था।