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शीतलाष्टमी : काशी में मां शीतला की आराधना कर श्रद्धालुओं ने किया बसियउरा पूजन

वाराणसी,22 मार्च (हि.स.)। चैत माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर शनिवार को बाबा विश्वनाथ की नगरी माता शीतला के आराधना में लीन रही। प्राचीन दशाश्वमेध घाट स्थित बड़ी शीतला माता मंदिर में भोर से ही श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन पूजन के लिए जुटी रही। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं हुईं। दरबार में माता का भव्य श्रृंगार और आरती देख श्रद्धालु आह्लादित दिखे। इस दौरान पूरा मंदिर परिसर माता रानी के जयकारों और घंटियों की आवाज से गुंजायमान रहा। दिन चढ़ने तक दरबार में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं की कतार लगी रहीं।

शीतलाष्टमी पर उनके दरबार में श्रद्धालु विविध रोग, ताप से अपने और परिजनों की मुक्ति के लिए माता रानी से मानस गुहार लगाते रहे। इसके पहले मंदिर के महंत की देखरेख में बड़ी शीतला माता के विग्रह का शृंगार किया गया। महंत के आचार्यत्व में माता को पंचामृत स्नान कराकर नवीन वस्त्र, आभूषण धारण करवाया गया। इसके बाद फूलों से शृंगार किया। पुजारियों के अनुसार ऋतु परिवर्तन होने पर तमाम रोग उत्पन्न होते हैं। इससे मुक्ति के लिए माता शीतला की पूजा होती है।

उधर, शीतलाष्टमी के अवसर पर घरों में भी माता रानी की विधिवत आराधना श्रद्धालु महिलाओं ने व्रत रख कर किया। श्रद्धालुओं ने बसियउरा पूजन किया। शीतलाष्टमी के पूर्व शुक्रवार की रात ही महिलाओं ने घरों की साफ सफाई कर हलवा, पूड़ी, गुलगुला, रसियाव, सब्जी आदि पकवान बनाए। जागरण कर शीतला स्तोत्र का पाठ, पारंपरिक लोकगीत और शीतला जी की महिमा का गान किया। भोर में अपने आसपास के शीतला मंदिरों में पहुंचकर पकवानों का भोग लगाया। मां शीतला से निरोग रहने की कामना की।

शिवाराधना समिति के अध्यक्ष डॉ मृदुल मिश्र के अनुसार शीतला अष्टमी के साथ मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। यह भोग सप्तमी तिथि की शाम को बनाया जाता है। भोग चावल-गुड़ या फिर चावल और गन्ने के रस से मिलकर बनता है। इसके साथ ही मीठी रोटी का भोग बनता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी शीतला मां दुर्गा का ही अवतार हैं। देवी शीतला प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक है। मां शीतला के स्वरुप को कल्याणकारी माना जाता है। माता का वाहन गर्दभ है। उनके हाथों में झाड़ू, कलश, सूप और नीम की पत्तियां होती है। लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को छोटी माता और चेचक जैसी बीमारियों से पीड़ित होने से बचाने के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं।

बताते चलें कि शीतलाष्टमी पर्व रोगों को दूर करने की कामना से मनाया जाता है। सनातनी परिवारों में मान्यता है कि शीतलाष्टमी व्रत रहने से दाह ज्वर, पीत ज्वर, विस्फोटक ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, चेचक, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिह्न तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से मां शीतलादेवी प्रसन्न होती हैं।

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