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कभी डाकुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा ‘जालौन वाली माता’ का यह मंदिर

जालौन, 5 अप्रैल (हि.स.)। बुंदेलखंड के जिन जिलों में कभी दस्युओं का खौफ रहता था। आज वहां पर देवी माता के नाम के जयकारे गूंज रहे हैं। एसटीएफ और पुलिस एनकाउंटर के बाद दस्यु प्रभावित यह इलाका अब पूरी तरह से दस्युओं के आतंक से मुक्त हो चुका है। बीहड़ में बसा यह मंदिर दस्युओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। नवरात्र के मौके पर डाकू भी अपनी आराध्य देवी की पूजा अर्चना किया करते थे। फिलहाल, यह इलाका पूरी तरह से शांत हो गया है और दूर-दराज क्षेत्रों से सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं।

दरअसल, बुंदेलखंड के कई जिलों में दस्युओं के आतंक के किस्से गूंजते रहे हैं। यमुना और चम्बल नदियों के बीहड़ों में डाकू अपना अड्डा बनाते थे और फिर वहीं से अपनी दहशतगर्दी फैलाया करते थे। जालौन जिले के आस-पास के जनपदों इटावा, औरैया आदि जगहों पर दस्युओं ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा। फूलन देवी से लेकर फक्कड़ और पहलवान जैसे कई डकैत इस मंदिर में आकर अपना सिर झुकाते थे। पिछले तीन दशकों से डाकुओं का साम्राज्य ध्वस्त हुआ और कई बड़े नामचीन एनकाउंटर में मारे गए। डाकुओं के खात्मे के बाद अब यहां नवरात्र पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं।

दर्शन करने आने वाले भक्तों को डकैतों ने नहीं पहुंचाया नुकसान

वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि बीहड़ में जिस डकैत ने भी अड्डा बनाया हो उसकी विशेषता रही है कि वह जालौन वाली माता के मंदिर में दर्शन करने के साथ ही घंटे भी चढ़ाता था। डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय, अरविन्द गुर्जर समेत कई ऐसे डकैत थे। जो समय-समय पर इन मंदिरों में गुपचुप तरीके से माता के मंदिर पर माथा टेकने आते थे। उस वक्त जो भी श्रद्धालु मंदिर दर्शन करने जाते थे, डाकुओं ने उन्हें कभी नुकसान नहीं पहुंचाया। डाकुओं का अंत होने के बाद भक्तों का रुझान इस मंदिर की तरफ बढ़ने लगा है।

द्वापर युग में पांडवों के द्वारा की गई थी मंदिर की स्थापना

नवरात्र पर दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां पर माता के दरबार में मत्था टेकने आते हैं। इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि इसे द्वापर युग में पांडवों के द्वारा स्थापित किया गया था। तभी से इस मंदिर का एक प्रमुख स्थान रहा है। ये चंदेल राजाओं के समय खूब प्रसिद्ध हुआ लेकिन डकैतों के कारण आजादी के बाद ये स्थान चम्बल का इलाका कहलाने लगा। डकैतों के डर से इस मंदिर में आम लोग आने से डरते थे। बाद में पुलिस और एसटीएफ की सक्रियता के चलते डकैत मुठभेड़ के दौरान मारे गए और कुछ ने मारे जाने के डर से आत्मसमर्पण कर दिया।

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