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ग्वालियर व्यापार मेले में सैलानियों को खूब भा रहे पत्थर शिल्प उत्पाद

ग्वालियर, 9 जनवरी (हि.स.)। पत्थर शिल्प कला सदियों से चली आ रही भारत की समृद्ध परंपरा है। पीढ़ी दर पीढ़ी शिल्पकार यह हुनर अपनी अगली पीढ़ी को देते आए हैं। शिल्पकारों को अपनी कला का प्रदर्शन एवं रोजगार के लिए मंच उपलब्ध कराने में भारतीय संस्कृति में गहरे तक रचे-बसे मेले भी सदैव से अहम भूमिका निभाते रहे हैं। ग्वालियर का ऐतिहासिक मेला भी उन मेलों में से एक है।

इस साल के श्रीमंत माधवराव सिंधिया ग्वालियर व्यापार मेले में शिल्पकारों ने पत्थर शिल्प की दुकानें लगाई हैं। मेले में छत्री नं. 19 व 20 के बीच विनय कुमार शिल्पकार द्वारा लगाई गई पत्थर शिल्प की दुकान सैलानियों को खूब भा रही है, जाहिर है वे पत्थर से बनीं घरेलू उपयोग की वस्तुएँ व सजावटी सामान की खरीददारी भी कर रहे हैं।

पत्थर शिल्प की दुकान के संचालक विनय कुमार बताते हैं कि ग्वालियर मेले में लगभग आधी शताब्दी से हमारा परिवार दुकान लगाता आया है। यह हमारा पुस्तैनी हुनर व व्यवसाय है। पहले मेरे पिता संजीत आदिवासी अपने रिश्तेदारों की मदद से दुकान लगाते थे। अब हम अपने पिता की मदद से इस शिल्प के कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं। विनय कुमार गौंड जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। वे बताते हैं कि हमारे पूर्वज काफी वक्त पहले कानपुर व फिर आगरा में बस गए थे।

राजस्थान की खदानों से निकले मार्बल और ग्वालियर – चंबल अंचल के सफेद व बलुआ पत्थर को तराशकर विनय कुमार परिवार एक से बढ़कर एक पत्थर शिल्प के नमूने गढ़ते हैं। वहीं पत्थर से बनाई गईं देवी-देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियों का रूपांकन देखते ही बनता है। ग्वालियर मेले में लगी उनकी दुकान पर मार्बल से बना पहलवानों की खास पसंद बादाम पीसने का कुण्डा, मार्बल से ही बनाए गए इलाइची, लोंग व अन्य मसाले व अदरक इत्यादि कूटने के खलबत्ता, सुरमा व दवाएं बनाने के नाव के आकार के खलबत्ते एवं बड़ों व बच्चों के कलात्मक चकला-बेलन भी खास है। इसके अलावा सफेद पत्थर से बनी आटा, दलिया व बेसन पीसने की चक्की भी उपलब्ध है। विनय कुमार शिल्पकार ने अपने हुनर से मार्बल पत्थर को मोर, फूल-पत्ते व कलश इत्यादि का रूप देकर एवं उसमें रंग भरकर एक से बढ़कर एक घड़ियां बनाई हैं।

सैलानी उनकी दुकान से पत्थर शिल्प के नमूने खरीदकर अपने घर ले जा रहे हैं। विनय कुमार बताते हैं कि ग्वालियर मेले में उनकी दुकान से हर साल औसतन 5 से 6 लाख रुपये की बिक्री हो जाती है। वे कहते हैं कि सही मायने में मेलों ने ही हमारे परिवार के हुनर को जिंदा रखा है। ग्वालियर मेले के अलावा हम देश के अन्य मेलों में भी अपनी दुकान लगाते हैं, इससे ही हमारे परिवार का गुजारा चलता है।

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