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प्रकृति को बचाना है तो अद्वैत के सिद्धांतों को अपनाना होगा : यूएनईपी पूर्व डायरेक्टर

– “भविष्य के लिए अद्वैत”- प्रयागराज महाकुंभ में वैश्विक विमर्श

भोपाल, 29 जनवरी (हि.स.)। प्रसिद्ध पर्यावरणविद और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के पूर्व कार्यकारी निदेशक, नार्वे के पूर्व मंत्री एरिक सोलहेम ने कहा कि आधुनिक पश्चिमी दर्शन और विज्ञान की दृष्टि प्रकृति को एक निष्क्रिय संसाधन मानती रही है, जिसका शोषण किया जा सकता है, जबकि भारतीय परंपरा में प्रकृति को “माँ” के रूप में देखा जाता है। उन्होंने “डीप इकोलॉजी” के विचार को अद्वैत से जोड़ते हुए बताया कि संपूर्ण ब्रह्मांड परस्पर जुड़ा हुआ है और यह दृष्टिकोण ही हमारे सतत विकास की कुंजी हो सकता है। अद्वैत वेदांत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि यह मानवता के सतत अस्तित्व के लिए भी अनिवार्य है। यदि हमें पृथ्वी को बचाना है, तो हमें अद्वैत के सिद्धांतों को जीवन में अपनाना होगा। अद्वैत वेदांत केवल दर्शन नहीं, बल्कि जीवन का वह सत्य है, जो हमें सिखाता है कि “हम और प्रकृति अलग नहीं, बल्कि एक ही चेतना के विभिन्न रूप है।

एरिक सोलहेम बुधवार को प्रयागराज महाकुंभ में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास संस्कृति विभाग मप्र शासन की ओर से एकात्म धाम मंडपम् में ‘अद्वैत कैसे प्रकृति संरक्षण में अहम घटक है’ पर आधारित “भविष्य के लिए अद्वैत” विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम प्रयागराज महाकुंभ की इस ऐतिहासिक चर्चा एरिक सोलहेम मुख्य वक्ता रहे।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामनाथ झा ने कहा कि वर्तमान पर्यावरणीय और सामाजिक परिदृश्य में अद्वैत केवल एक दार्शनिक मत नहीं, बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड की एकता को स्वीकार करता है। इस सत्र में अद्वैत वेदांत के सार्व-भौमिक तत्वों को आधुनिक विज्ञान, पारिस्थितिकी और वैश्विक चुनौतियों से जोड़ा गया।

अद्वैत वेदांत और पर्यावरण—एक नया दृष्टिकोण

एरिक सोलहेम ने कहा कि मैंने ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा। यह अब तक का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है। आदि शंकराचार्य ने भारत को शस्त्रों से नहीं, बल्कि अपने अद्वितीय बुद्धिबल से विजय किया। भारत में पशुओं और मनुष्यों के बीच एक अनुपम समरसता विद्यमान है। भगवान गणेश का गजमुख और भगवान हनुमान का वानर शरीर इस समरसता का द्योतक है।

उन्होंने वेदांत के मूल सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में रखते हुए एक अत्यंत प्रासंगिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने उपनिषदों के उन पाँच महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों का उल्लेख किया जो अस्तित्व की रचना, उसका पालन, संहार, तथा सर्वोच्च चेतना की सर्वव्यापकता को स्पष्ट करते हैं। इन सिद्धांतों के अनुसार, संपूर्ण सृष्टि शक्ति और चेतना का ही विस्तार है।

विमर्श में यह स्पष्ट हुआ कि अद्वैत वेदांत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि यह मानवता के सतत अस्तित्व के लिए भी अनिवार्य है। एरिक सोलहेम और अन्य विशेषज्ञों के विचारों ने इस बात को बल दिया कि अद्वैत वेदांत केवल दर्शन नहीं, बल्कि जीवन का वह सत्य है, जो हमें सिखाता है कि “हम और प्रकृति अलग नहीं, बल्कि एक ही चेतना के विभिन्न रूप है।

मनुष्य मानवता और प्रकृति में एकात्मता हैं।हम केवल प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहकर ही जीवित रह सकते हैं। सनातन धर्म में प्रकृति के प्रति अपार सम्मान हैं, हम वर्तमान में गंगा, यमुना व सरस्वती के पवित्र संगम की भूमि पर उपस्थित हैं। एरिक ने महाकुम्भ के अवसर पर संगम में स्नान करते हुए महाकुम्भ को अविस्मरणीय बताया।

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