देहरादून, 18 मार्च (हि.स.)। उत्तरकाशी (प्राचीन नाम सौम्य काशी) में भी बनारस की तर्ज पर हर साल चैत्र माह की त्रयोदशी तिथि को पौराणिक पंचकोसी यानी वारुणी यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष यह यात्रा 27 मार्च को होगी। 15 किलोमीटर की पैदलयात्रा की शुरुआत वरुणा व गंगा के संगम स्नान से अस्सी और गंगा में स्नान पर संपन्न मानी जाती है।
यात्रा में बसूंगा में मां रेणुका, कंडार देवता के लिंग दर्शन सहित साल्ड में जगन्नाथ, अष्टभुजा माता के दर्शन के बाद ज्ञाणजा गांव में ज्वाला देवी, वरुणावत शिखर पर व्यासकुंड और शिखरेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं। कंडार देवता के दर्शन के बाद अस्सी गंगा स्नान होता है। इसके बाद श्रद्धालु भगवान विश्वनाथ के दर्शन कर पुण्य प्राप्ति की कामना करते हैं।
यात्रा को लेकर ग्रामीणों ने तैयारियां शुरू कर दी है। पंडित सुरेश शास्त्री बताते हैं कि इस वर्ष यह यात्रा वारुणी योग में होगी। उन्होंने बताया कि यात्रा का उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड में किया गया है। केदारखंड में यह भी लिखा गया है कि वरुणावत पर्वत पर साक्षात शिव का वास है। वे यात्रा का महत्व बताते हुए कहते हैं कि जो वरुणावत की पांच कोस की परिक्रमा करता है, उसे तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के दर्शन का पुण्य मिलता है।