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खेल जगत के लिए ऐतिहासिक और प्रेरणादायक रहा 2024

2024 का वर्ष खेल जगत के लिए कई मायनों में अद्वितीय, ऐतिहासिक और प्रेरणादायक रहा। यह वर्ष न केवल नई उपलब्धियों और नए रिकॉर्ड का गवाह बना बल्कि कई युवा खिलाड़ियों के उदय के अलावा खेल में नई तकनीकों के समावेश का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। खेल संस्कृति में बदलाव और तकनीकी उन्नति के कारण खेलों के अनुभव को नई ऊंचाईयां मिली। वर्ष 2024 भारतीय खेलों में क्रिकेट, ओलंपिक, पैरालंपिक, शतरंज ओलंपियाड और फिडे विश्व चैंपियनशिप में सफलता के लिए याद किया जाएगा। भारतीय एथलीटों ने इस वर्ष विभिन्न अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया। वॉलीबॉल और टेबल टेनिस जैसे खेलों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। क्रिकेट से लेकर टेनिस, हॉकी, शतरंज के अलावा भारत ने पेरिस ओलंपिक और पैरालंपिक में भी अपना लोहा मनवाया। भारत का इन खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन रहा, जिससे समस्त देशवासी गौरवान्वित हुए। भारत में आयोजित एशियाई खेल और विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप ने वैश्विक स्तर पर भारत को एक प्रभावशाली खेल मेजबान के रूप में स्थापित किया। एक क्रिकेट विश्व कप, 6 ओलंपिक पदक, 29 पैरालंपिक पदक और दो शतरंज विश्व चैंपियनशिप सहित 2024 ने भारतीय खेल प्रशंसकों को जश्न मनाने के कई ऐसे अवसर प्रदान किए, जिससे खेलों की दुनिया में भारत का भविष्य उज्जवल नजर आता है।

2024 में खेलों में तकनीकी उन्नति ने निर्णायक भूमिका निभाई। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और वर्चुअल रियलिटी ने खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और प्रदर्शन विश्लेषण को नई दिशा प्रदान की। इसके अलावा दर्शकों के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए एआर (ऑगमेंटेड रियलिटी) तकनीक का उपयोग किया गया। विश्वनाथन आनंद के बाद इस वर्ष शतरंज के नए चैंपियन उभरकर दुनिया के सामने आए और शतरंज ने खेल प्रेमियों को जश्न मनाने का भरपूर मौका दिया। हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में 45वें चेस ओलंपियाड का आयोजन हुआ था, जिसमें पुरुष वर्ग में 195 देशों की 197 टीमों और महिला वर्ग में 181 देशों की 183 टीमों ने हिस्सा लिया था। भारत की पुरुष और महिला दोनों ही टीमों ने सितंबर में इस ओलंपियाड में पहली बार स्वर्ण पदक जीते, वहीं डी गुकेश और कोनेरू हम्पी ने दिसंबर में विश्व खिताब के साथ नई ऊंचाईयों को छुआ। 12 दिसंबर को सिंगापुर में आयोजित विश्व शतरंज चैंपियनशिप में गुकेश ने महज 18 वर्ष की आयु में पिछली बार के शतरंज चैंपियन चीन के डिंग लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बनकर नया इतिहास रचा। वह विश्वनाथन आनंद के बाद वैश्विक खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय बने, वहीं 37 वर्षीया हम्पी ने 28 दिसंबर को अपने कैरियर में दूसरी बार महिलाओं का रैपिड विश्व खिताब जीता।

पिछले साल भारत वनडे विश्व कप 2023 का खिताब जीतने से चूक गया था लेकिन इस वर्ष आईसीसी ट्रॉफी जीतने का 11 वर्ष का सूखा समाप्त करने में भारत सफल हुआ। आखिरी बार महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में भारत ने 2013 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी अपने नाम की थी। रोहित शर्मा की कप्तानी में 30 जून 2024 को भारतीय टीम ने बारबाडोस में दक्षिण अफ्रीका को मात देकर टी20 विश्व कप का खिताब जीता। इसी प्रकार भारतीय हॉकी टीम ने पांचवीं बार एशियन चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब जीता। भारत की ओर से जुगराज सिंह ने गोल दागा था, जिसकी बदौलत भारतीय टीम ने चीन को 1-0 से मात देते हुए यह खिताब अपने नाम किया। टेनिस में रोहन बोपन्ना ने ऑस्ट्रेलियन ओपन 2024 में इटली के सिमोन बोलेली और वावसोरी को मात देकर मेंस डबल्स का खिताब जीता और ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सबसे उम्रदराज पुरुष खिलाड़ी बने। उन्होंने 43 वर्ष की उम्र में यह खिताब अपने नाम किया।

जहां तक ओलंपिक और पैरालंपिक में भारत के प्रदर्शन की बात है तो पूरी उम्मीद थी कि भारत इस वर्ष पेरिस में ओलंपिक में नया इतिहास लिखेगा लेकिन 206 देशों के बीच भारत 71वें स्थान पर रहा और भारत का अभियान 1 रजत और 5 कांस्य सहित कुल 6 पदकों के साथ समाप्त हो गया जबकि टोक्यो ओलंपिक में 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य सहित 7 पदक जीतने में सफल हुआ था। महिला पहलवान विनेश फोगाट का 100 ग्राम वजन अधिक होने का मामला भारत की पदक उम्मीदों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा था क्योंकि उनके स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीदें लगभग पक्की हो चुकी थी। पेरिस ओलंपिक में भारत भले ही टोक्यो ओलंपिक के रिकॉर्ड को नहीं तोड़ सका लेकिन पुरुष हॉकी टीम का लगातार दूसरी बार पदक जीतना भारत के बेहद महत्वपूर्ण रहा। निशानेबाज मनु भाकर ने तो एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतकर सनसनी मचा दी। वह एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनी। टोक्यो ओलंपिक के गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा से स्वर्ण पदक जीतने की सबसे ज्यादा उम्मीदें थी लेकिन वह रजत पदक ही हासिल कर सके। उनके अलावा शूटिंग में सरबजोत सिंह, स्वप्निल कुसाले, कुश्ती में अमन सहरावत और पुरूष हॉकी टीम ने पेरिस ओलंपिक में पदक जीते।

पेरिस ओलंपिक के बाद पैरालंपिक खेलों का महाकुंभ तो भारत के लिए अविस्मरणीय बन गया। दरअसल पहली बार हमारे पैरा खिलाड़ी कीर्तिमानों, उपलब्धियों और पदकों का अभूतपूर्व अध्याय रचने में सफल हुए। दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने दिव्यता के साथ जो सफलताएं अर्जित की, वह तमाम लोगों के लिए मिसाल बनी। पेरिस पैरालंपिक में भारत ने 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक सहित कुल 29 पदक जीते और पदक तालिका में भारत 18वें स्थान पर रहा। इससे पहले टोक्यो पैरालंपिक में 2020 में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 5 स्वर्ण सहित कुल 19 पदक हासिल किए थे। पेरिस में 17वें पैरालंपिक में 22 खेलों की कुल 549 प्रतिस्पर्धाओं में दुनियाभर से 4463 दिव्यांग खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था जबकि भारत के पैरा खिलाड़ियों ने इनमें से केवल 12 खेलों के 84 मुकाबलों में भाग लिया था और 29 पदक जीतकर अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन करते हुए साबित कर दिखाया कि वे दिव्यांग, आधे-अधूरे और असहाय भले ही हैं लेकिन उनके भीतर हौंसलों की कोई कमी नहीं है। पेरिस पैरालंपिक खेलों में अवनी लेखरा, सुमित अंतिल, मरियप्पन थंगावेलु, शीतल देवी, नितेश कुमार, प्रवीण कुमार, नवदीप सिंह, हरविंदर सिंह, धरमबीर जैसे पैरा खिलाड़ी अपने यादगार प्रदर्शन के कारण नए नायक बनकर उभरे।

पेरिस ओलंपिक में भारत के पदकों की संख्या बेशक कम रही लेकिन शूटिंग, कुश्ती, हॉकी के अलावा कई अन्य खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन को देखते हुए भविष्य में खेलों की दशा और दिशा सुधरने की उम्मीदें बलवती हुई हैं। मनु भाकर ने ओलंपिक में दो पदक जीतकर भारत की बेटियों को खेलों के प्रति आकर्षित होने का बेहतरीन अवसर प्रदान किया है। ओलंपिक में मनु की सफलता देश की आधी आबादी के लिए बहुत प्रेरणादायी है और अब जरूरत है कि ऐसे सुअवसरों का लाभ उठाकर देशभर में विभिन्न खेलों में ऐसा माहौल बनाया जाए ताकि प्रतिभाशाली लड़कियां आगे आएं और आने वाले समय में तमाम अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में महिलाओं का डंका भी बजता दिखाई दे।

कुल मिलाकर, 2024 का साल खेलों के प्रति भारत और विश्व के दृष्टिकोण को बदलने वाला साबित हुआ। यह साल न केवल अनेक उपलब्धियों से भरा रहा बल्कि इसने भविष्य के लिए नई प्रेरणाएं और दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किए। खेल जगत को इस वर्ष से जो ऊर्जा और उत्साह मिला, वह आने वाले वर्षों में और भी ऊंचाईयां छूने में सहायक होगा। हालांकि भारत को खेल महाशक्ति बनने से पहले अभी काफी कुछ करने की जरूरत है।

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