वाराणसी, 04 अप्रैल (हि.स.)। वासंतिक नवरात्रि के सातवें दिन शुक्रवार को श्रद्धालुओं ने नवदुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि और शुभकारी भवानी गौरी का विधिवत दर्शन और पूजन किए। श्रद्धालु भोर से ही दोनों देवी मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचने लगे, यह क्रम देर शाम तक बना रहेगा।
सातवें दिन श्री काशी विश्वनाथ धाम स्थित कालिका गली में माता कालरात्रि का दरबार श्रद्धालुओं की जयकारों से गूंज उठा। भक्तों ने गुड़हल पुष्प, लाल चुनरी, नारियल, फल, मिष्ठान, सिंदूर, रोली, इत्र और अन्य सामग्री माता के चरणों में अर्पित कर घर-परिवार में सुख शांति की प्रार्थना की। इस रूप में मां आदिशक्ति शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाली मानी जाती हैं। माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत विकराल और रौद्र है।
पुराणों के अनुसार, माता कालरात्रि का यह स्वरूप चंड-मुंड और रक्तबीज जैसे अनेक राक्षसों का वध करने के लिए प्रकट हुआ था। देवी को कालरात्रि, काली और चंड-मुंड का संहार करने के कारण मां के इस रूप को चामुंडा भी कहा जाता है। विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर होती है, उनके काले बाल खुले हैं, गले में मुंडों की माला है और एक हाथ में खून से भरा पात्र तथा दूसरे में राक्षस का कटा सिर है। उनके हाथ में अस्त्र-शस्त्र भी हैं। ऐसा माना जाता है कि माता का दर्शन मात्र सर्व भय, डर और बाधाओं को समाप्त कर देता है। माता का वाहन गर्दभ है।
वहीं, गौरी स्वरूप में माता भवानी गौरी का दर्शन और पूजन करने के लिए भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रही। विश्वनाथ गली के अन्नपूर्णा मंदिर के निकट श्रीराम मंदिर में स्थित दरबार में भक्तजन विधि-विधान से भवानी गौरी का पूजन करते रहे। काशी में ऐसी मान्यता है कि भवानी गौरी के दर्शन-पूजन से व्यक्ति के भीतर से भय समाप्त हो जाता है।