उत्तर प्रदेश के वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी रेलवे स्टेशन (पुराना नाम झांसी रेलवे जंक्शन) पर पहली अप्रैल को ‘जो हुआ, जैसा भी हुआ’ उसे सारी दुनिया ने देखा। यह एक हृदयविदारक घटना है। गोल्डन रिट्रीवर नस्ल का एक पालतू डॉग प्लेटफार्म से आगे बढ़ रही चलती राजधानी एक्सप्रेस के दौरान गिर गया। सौभाग्य से यह डॉग जीवित बच गया। बावजूद इसके इस घटना ने पालतू डॉग के रेल से ले जाने के नियमों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस घटना के वायरल वीडियो में नीली टी-शर्ट और जींस पहने इस डॉग का मालिक उसे पट्टे से खींचते हुए दिल्ली जाने वाली सीएसएमटी-निजामुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस में चढ़ाने की कोशिश करते हुए दिखाई दे रहा है। ट्रेन के गति पकड़ते ही डॉग प्लेटफॉर्म और ट्रेन के बीच की खाई में गिर जाता है।
चमत्कारिक रूप से रेलवे अधिकारियों ने पुष्टि की कि डॉग जीवित है और उसे उसके परिवार से मिला दिया गया है। यह परिवार फर्स्ट क्लास एसी कोच में सफर कर रहा था। हालांकि, इस घटना ने व्यापक आक्रोश पैदा कर दिया है और पालतू जानवरों के मालिकों की जवाबदेही और पशु कल्याण के बारे में सवाल उठाए हैं।
देश में पालतू जानवरों का स्वामित्व महत्वपूर्ण कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों के साथ आता है। विशेष रूप से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (पीसीए अधिनियम) के तहत। पीसीए अधिनियम की धारा 11 उन कार्यों को क्रूरता मानती है जो अनावश्यक दर्द या पीड़ा का कारण बनते हैं, जैसे कि एक पालतू डॉग को चलती ट्रेन जैसी खतरनाक स्थितियों में उजागर करना। इस मामले में, मालिक का डॉग को खींचने का निर्णय, बजाय उसे उठाने या सुरक्षित क्षण का इंतजार करने के उसके जीवन को खतरे में डालना जैसा रहा।
भारतीय रेलवे ने पालतू जानवरों की यात्रा के लिए विशिष्ट नियम बनाए हैं। इनका विवरण भारतीय रेलवे वाणिज्यिक मैनुअल में है। पालतू जानवरों को केवल प्रथम एसी या प्रथम श्रेणी के डिब्बों में अनुमति दी जाती है, बशर्ते उन्हें एक निजी कोच में बुक किया गया हो। यात्रा के दौरान, पालतू जानवरों को पट्टे पर या मानक के अनुसार केज में रखा जाना चाहिए और दुर्घटनाओं से बचने के लिए केवल तभी चढ़ने या उतरने की अनुमति है जब ट्रेन रुकी हो।
पीसीए अधिनियम के तहत स्थापित एडब्लूबीआई (1962 में पार्लियामेंट एक्ट के तहत स्थापित देश की हाई प्रोफाइल स्वायत्तशासी प्रतिष्ठान- एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया/ भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड) , रेलवे नियमों के पूरक दिशा-निर्देश तैयार करके पशु कल्याण की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके दिशा-निर्देश अनिवार्य करते हैं कि मालिक मजबूत पट्टों या वाहकों का उपयोग करें। चलते वाहनों में चढ़ने की जल्दबाजी जैसी तनावपूर्ण स्थितियों से बचें और पानी पिलाने और आराम देने जैसी पालतू जानवरों की शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करें।
दो अप्रैल तक इस व्यक्ति के खिलाफ किसी भी पुष्ट कानूनी कार्रवाई की सूचना नहीं मिली। रेलवे अधिकारियों ने दंडात्मक उपायों के बजाय डॉग के जीवित रहने पर जोर दिया। एडब्ल्यूआई ने अभी तक सार्वजनिक रूप से हस्तक्षेप नहीं किया है।
यह समय की मांग है कि एडब्लूबीआई और भारतीय रेलवे को पालतू जानवरों के मालिकों के लिए एक संक्षिप्त प्रमाणन अनिवार्य करना चाहिए, जिसमें यात्रा नियम और सुरक्षा प्रोटोकॉल शामिल हों। स्टेशन के कर्मचारियों को पालतू जानवरों के बोर्डिंग की निगरानी करने और वास्तविक समय में उल्लंघन करने वालों को दंडित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने से एक मिसाल कायम हो सकती है, जो सार्वजनिक भावनाओं के अनुरूप हो। इससे पालतू जानवरों के एसी क्लास में बोर्डिंग जोन जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार से जोखिम कम हो सकते हैं।
झांसी की घटना पालतू जानवरों की यात्रा सुरक्षा में व्यापक तौर पर एनिमल वेलफेयर की मौजूदा नीतियों और उसके फील्ड में प्रयोग से संबंधित मुद्दों को उजागर करती है। साथ ही यह घटना जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में दर्शित पशु मालिक के कर्तव्यों को लेकर एनिमल वेलफेयर पॉलिसी की कमजोरी को सुधारने की गुहार लगा रही है। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई निरीह पशु-पक्षी मानवीय लापरवाही का शिकार न हो।