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तिब्बती पठार और चीन के आधा दर्जन शहरों को निशाना बनाने में सक्षम हुआ भारत

– लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल सशस्त्र बलों के लिए गेम-चेंजर साबित होगी

नई दिल्ली, 30 दिसंबर (हि.स.)। भारत ने अब हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की मारक दूरी बढ़ाने की तकनीक हासिल कर ली है। यह हाइपरसोनिक मिसाइल 1500 किमी से अधिक की सीमा के साथ तिब्बती पठार और उससे आगे स्थित चीनी सेना के एयरबेस को निशाना बनाने में भारत को सक्षम बनाएगी। भारत लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित करने वाला पहला देश है, जो ध्वनि की गति से आठ गुना अधिक गति से यात्रा कर सकती है। यह मिसाइल वैश्विक रक्षा प्रौद्योगिकी में एक गेम-चेंजर है, जो किसी अन्य देश के पास नहीं है।

डीआरडीओ के मुताबिक यह अभी तक की सबसे लंबी दूरी की एकमात्र पारंपरिक हाइपरसोनिक मिसाइल है, जिसका परीक्षण 16 नवंबर की देर रात किया गया। यह लगभग 3 किमी प्रति सेकंड की गति से 1,500 किमी से अधिक दूरी तक पारंपरिक और परमाणु दोनों तरह के हथियार ले जा सकती है। भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल जो गति, सीमा, सटीकता और पता लगाने की क्षमता के मामले में गेम-चेंजर है, जिससे सशस्त्र बलों को बढ़त हासिल होगी। यह 1500 किमी से अधिक की घोषित सीमा के साथ भारत को तिब्बती पठार और उससे आगे स्थित चीनी सेना के एयरबेस को निशाना बनाने में सक्षम बनाएगी।

हाइपरसोनिक मिसाइल की रेंज में चीन के शहर चांगजी, उरुमकी, गोलमुंड, उक्सकताल, झांगये, गुइलिन में पश्चिमी थिएटर कमांड और दक्षिणी थिएटर कमांड के एयरबेस आएंगे। इस मिसाइल का लैंड अटैक वर्जन 1500 किमी से अधिक अंदर तक निशाना लगाने में मदद करेगा। डीआरडीओ ने 13 दिसंबर को ओडिशा तट पर चांदीपुर के एकीकृत परीक्षण रेंज में सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट (एसएफडीआर) का अंतिम परीक्षण किया, जो पूरी तरह सफल रहा है। स्वदेशी रूप से विकसित यह तकनीक भारत को लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल विकसित करने में मदद करेगी।

डीआरडीओ के मुताबिक सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट (एसएफडीआर) प्रणोदन आधारित मिसाइल प्रणाली का अंतिम प्रायोगिक परीक्षण सफल रहा है। परीक्षण में इस्तेमाल की गई जटिल मिसाइल प्रणाली ने सफलतापूर्वक प्रदर्शन करके मिशन के सभी उद्देश्यों को पूरा किया। आईटीआर में तैनात टेलीमेट्री, रडार और इलेक्ट्रो ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम जैसे कई रेंज इंस्ट्रूमेंट्स ने इस प्रणाली के सफल प्रदर्शन को पुष्ट किया। एसएफडीआर को हैदराबाद की रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला ने डीआरडीओ की प्रयोगशालाओं जैसे हैदराबाद की अनुसंधान केंद्र इमारत और पुणे की उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला के सहयोग से विकसित किया गया है।

एसएफडीआर का विकास 2013 में शुरू हुआ और वास्तविक प्रदर्शन शुरू करने के लिए पांच साल की समय सीमा तय की गई। मिसाइल का ग्राउंड आधारित परीक्षण 2017 में शुरू हुआ था। सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट का पहला परीक्षण 30 मई, 2018 को किया गया था। इस परीक्षण के जरिये भारत ने पहली बार नोजल-कम बूस्टर का प्रदर्शन किया। दूसरा परीक्षण 8 फरवरी, 2019 को हुआ। इसमें मिसाइल ने लक्ष्य के मुताबिक वांछित गति से आखिरकार जमीन को छू लिया। इसके बाद 08 अप्रैल, 2022 को हुए बूस्टर तकनीक का सफल परीक्षण किया गया।

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