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जयपुर के हांडीपुरा में सजने लगा पतंगों का बाजार

जयपुर, 10 जनवरी (हि.स.)। राजधानी जयपुर में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा पूर्व महाराजा सवाई राम सिंह के समय से चली आ रही है। महाराजा राम सिंह पतंगबाजी की परंपरा को 1835 से 1880 इस्वीं में अवध से लेकर आए थे। तत्कालीन समय कपड़े की पतंग उड़ाई जाती थी, जिसे तुक्कल कहा जाता था। बाद से ही मकर संक्रांति पर यह कार्यक्रम सार्वजनिक हो गया। जिसके बाद से ही हांडीपुरा पतंगों का बड़ा बाजार बन गया। करीब 150 साल से यहां पतंगे बनाई और बेची जाती हैं। मकर संक्रांति के नजदीक आते ही पूरे हांडीपुरा में रंग-बिरंगी पतंगों का बाजार सजने लग जाता है। हांड़ीपुरा में सीजन के दिनों में लाखाें रुपये की पतंगों की बिक्री होती है।

बरेली से भी आते है कारीगर पतंग बेचने

पतंग विक्रेता हाफिज ने बताया कि पतंगबाजी का व्यवसाय गुजरात और जयपुर में अधिक होता है। जयपुर के अलावा उत्तर प्रदेश के बरेली से भी पतंग विक्रेता हर साल पतंग बेचने के लिए हांडीपुरा पहुंचते है। जयपुर में बरेली की पतंगों की काफी मांग रहती है। बताया जाता है कि बरेली की पतंग की क्वालिटी काफी अच्छी होती है। जयपुर की पतंगों में इस्तेमाल होने वाला बांस बरेली की पतंगों जितना चिकना नहीं होता। बरेली की पतंग वैसे तो साधारण रंगों की होती है, जबकि जयपुर की पतंगों में चमकीले रंग और अलग तरीके से डिजाईन की जाती है। बरेली की पतंग का कागज लंबे समय तक चलती है। जबकि जयपुर की पतंग जल्दी ही फट जाती है।

अगस्त से दिसंबर तक तैयार होती है पतंगे

पतंग बनाने वाले अब्दुल ने बताया कि पतंगों को सीजन जनवरी से मार्च माह का होता है, लेकिन पतंग बनाने वाले कारीगर अगस्त से दिसंबर माह में पतंग बनाने में जुट जाते है और जनवरी से मार्च महीने तक पतंग को बेचा जाता है। घरों की महिलाएं भी पुरुषों के साथ पतंग बनाने का काम करती हैं। सीजन निकलने के बाद पुरुष दूसरे काम में लग जाते है। हांडीपुरा में कुछ बड़े पतंग कारोबारियाें ने ऑन लाइन काम करना भी शुरु कर दिया है।

ऐसे बनाई जाती है पतंग

कारीगर अब्दुल का कहना है कि पतंग बनाना एक कठिन कला है। चार लोगों की मदद से एक पतंग तैयार की जाती है। पतंग के हर हिस्से को अलग-अलग कारीगर तैयार करते है। बांसों को चिकना करके उसे कागज पर लगाया जाता है। जिसके बाद उसकी डिजाइन महिलाएं करती है। बांस का काम करने वाले कारीगर 100 पतंगों के लिए 100 रुपए मजदूरी लेते है। जबकि महिलाओं को 100 पतंगों की डिजाईन के 70 रुपये मिलते है। हांड़ीपुरा में स्वतंत्रता सेनानियों, राजनेताओं और अंतराष्ट्रीय हस्तियों की पतंग ज्यादा डिमांड होती है। जिसे ये इंटरनेट से तस्वीर लेकर तैयार करते है।

इन पतंगों की है रिमांड

बाजार में ड्रैगन पतंग, परी पतंग और कार्टून कैरेक्टर की पतंगों की काफी मांग है। जो दाे सौ रुपये से लकर पांच हजार रुपये तक बिकती है। पतंग बेचने वाले थोक व्यापारी उनसे इन पतंगों को खरीदकर ऊंचे दामों में बेचते है।

पर्यटन विभाग करता है पतंग बाजी का आयोजन

जयपुर में हर साल जलमहल झील के किनारे राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से पतंगबाजी का कार्यक्रम किया जाता है। जिसमें सैकड़ों की संख्या में पतंगबाज हिस्सा लेते है।

नई पीढ़ी नहीं करना चाहती पतंग बनाने का काम

पतंग बनाने का कार्य पुराने जमाने से चला आ रहा है, लेकिन अब नई पीढ़ी इस काम को नहीं करना चाहती । पतंग कारीगर अब्दुल के दो बेटे है और दोनों ही ग्रेजुएट है और अच्छी कम्पनी में काम करते है। वो पतंग बनाने का काम नहीं करना चाहते। उन्हाेंने बताया कि अब बदलते युग में लोग अपने मोबाइल में व्यस्त रहते है और पतंगबाजी का शौक भी युवा पीढ़ी में कम होता हुआ दिखाई दे रहा है। इसलिए बच्चे नौकरी कर रहे वो ज्यादा अच्छा है।

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