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राज्यपाल ने किया त्रिवेणी संगम राजिम में ऐतिहासिक राजिम कुंभ कल्प का शुभारंभ

रायपुर, 13 फ़रवरी (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध त्रिवेणी संगम राजिम में ऐतिहासिक राजिम कुंभ कल्प मेला का राज्यपाल ने बुधवार की देर शाम भव्य शुभारंभ किया। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलने वाले 15 दिवसीय राजिम कुंभ कल्प के शुभारंभ अवसर पर मुख्य मंच में राज्यपाल रमेन डेका एवं मौजूद अतिथियों और संतों ने भगवान राजीव लोचन की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर आशीर्वाद लिया। साथ ही प्रदेश की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की। महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के पावन संगम पर आयोजित इस मेले में देशभर से साधु-संत, श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी संख्या में पहुंचे हैं ।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि राजिम सदियों से संतों और भक्तों का केंद्र रहा है ।यह कुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और परंपरा के संरक्षण का संदेश देता है।राज्यपाल ने कहा आगे कि, राजिम, सदियों से संतों और भक्तों का केंद्र रहा है। यहां का प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, हमारी आस्था का प्रमुख प्रतीक है। इसके अलावा, भगवान कुलेश्वर महादेव, रामचंद्र पंचेश्वर महादेव, भूतेश्वर महादेव ,सोमेश्वर महादेव जैसे प्राचीन मंदिर हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की गहराई को दर्शाते हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला भी हमारे इतिहास की समृद्धि को प्रकट करती है। पंचकोशी यात्रा जिसमें कुलेश्वर, चम्पेश्वर, ब्रह्मनेश्वर, फणीश्वर, कोपेश्वर महादेव शामिल है यह यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। । उन्होंने कहा, “प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है, तो राजिम में महानदी, पैरी और सोंढूर का संगम. इसीलिए इसे छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाता है.”।

राज्यपाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन रहा है। राजिम कुंभ केवल अध्यात्म का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास का भी केंद्र है. यह मेला प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा। शास्त्रों में माघ मास को पुण्य माह माना गया है और सदियों से इस पावन अवधि में त्रिवेणी संगमों में स्नान की परंपरा चली आ रही है। छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन की परंपरा रही है। राज्य में महामाया मंदिर, बम्लेश्वरी माता, दंतेश्वरी माई, मडकू आइसलैंड जैसे कई ऐतिहासिक, धार्मिक केंद्र हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं।आज इस पावन अवसर पर, मैं यहां उपस्थित सभी संतों और अनुयायी को नमन करता हूं। कहा जाता है कि जहां संतों के चरण पड़ते हैं, वह भूमि स्वयं पवित्र हो जाती है। उनके आशीर्वाद से समाज में ज्ञान, समरसता और सकारात्मक ऊर्जा फैलती है। संतों का जीवन हमेशा परोपकार और मानवता की सेवा के लिए समर्पित रहता है। इतिहास में वाल्मीकि, अजामिल, अंगुलिमाल जैसे कई उदाहरण हैं, जिनका जीवन संतों की कृपा से परिवर्तित हुआ। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं, पर्यटकों और आयोजन में शामिल सभी लोगों से कहा कि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजें और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी पहचान है, और इसे सरंक्षण करना हमारा दायित्व है।

शुभारंभ कार्यक्रम में दंडी स्वामी डॉ. इंदुभवानंद जी महाराज, महंत साध्वी प्रज्ञा भारती जी , बालयोगेश्वर बालयोगी रामबालक दास महाराज सहित कई साधु-संतों मौजूद रहे। यह आयोजन छत्तीसगढ़ सरकार, धर्मस्व विभाग, पर्यटन मंडल और स्थानीय प्रशासन की देख रेख देख रेख में हो रहा है । आयोजन में लाखों श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।

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