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महाशिवरात्रि: पंचक्रोशी परिक्रमा के पुण्य पथ पर निकले शिवभक्त ,हर-हर महादेव की गूंज

—पंचक्रोशी परिक्रमा का पथ रात से ही गुलजार,24 घंटे में पूरी कर रहे पंचक्रोशी परिक्रमा

वाराणसी,26 फरवरी (हि.स.)। महाशिवरात्रि पर्व पर लाखों शिवभक्त पंचक्रोशी परिक्रमा के पुण्य पथ पर निकल पड़े है। परिक्रमा पथ श्रद्धालुओं से गुलजार है। पंचक्रोशी परिक्रमा का संकल्प लेने के बाद श्रद्धालु 24 घंटे में इसे पूरा करने के लिए अनवरत नंगे पांव पैदल चल रहे है।

बाबा विश्वनाथ के प्रति आस्था किस कदर लोगों के मन में है इसका नजारा परिक्रमा पथ पर दिख रहा है। यात्रा पूरी होने पर मणिकर्णिका घाट पर ही संकल्प छोड़ कर श्रद्धालु घर लौटेंगे। इसके पर्व काशी ​के परम्परानुसार महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर मंगलवार शाम मणिकर्णिका घाट स्थित चक्रपुष्कर्णी कुंड और गंगा में स्नान कर श्रद्धालुओं ने कठिन यात्रा का संकल्प लिया। घाटों पर तीर्थ पुरोहितों ने विधि-विधान से श्रद्धालुओं का संकल्प दिलाया। इसके बाद 24 घंटे में पूरी होने वाली पंचक्रोशी परिक्रमा शुरू हो गई। मणिकर्णिकाघाट से घाटों के सहारे श्रद्धालु अस्सी घाट पहुंचे। फिर यहां से परिक्रमा पथ के पहले पड़ाव कंदवा कर्दमेश्वर महादेव में श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया। इसके बाद श्रद्धालु दूसरे पड़ाव भीमचंडी,तीसरे पड़ाव रामेश्वर और फिर वहां से शिवपुर पांचों पंडवा में दर्शन पूजन के बाद यात्रा के अंतिम पड़ाव कपिलधारा पहुंचेंगे। कपिलधारा से गंगा घाटों के सहारे मणिकर्णिका घाट होते हुए व्यास पीठ तक पहुंचेंगे। लगभग 85 किलोमीटर लंबे पंचक्रोशी मार्ग पर जगह-जगह रोड़ा और पत्थरों से होकर श्रद्धालुओं को गुजरना पड़ रहा है। उनके पांवों में छाले पड़ गए लेकिन उनको जोश में कोई कमी नहीं दिखाई दी। हर-हर महादेव, बम-बम भोले का घोष करते हुए श्रद्धालुओं की टोली यात्रा पथ पर चलती रही। रास्ते में शिवभक्तों की सेवा के लिए प्रत्येक पड़ाव के मध्य सामाजिक संगठनों ने सेवा शिविर लगाए हैं।

—पंचक्रोशी परिक्रमा पथ की शुरुआत त्रेता युग से हुई थी

मान्यता है कि पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत त्रेता युग से हुई थी। पौराणिक ग्रंथों में पंचक्रोशी यात्रा का उल्लेख है। त्रेता युग में भगवान राम ने अपने तीनों भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न और पत्नी के सीता के साथ काशी में पंचक्रोशी यात्रा की थी। भगवान राम ने स्वयं रामेश्वरम मंदिर में शिवलिंग स्थापित किया था। उन्होंने यह यात्रा अपने पिता राजा दशरथ को श्रवण कुमार के माता-पिता के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए की थी। दूसरी बार पंचक्रोशी परिक्रमा श्रीराम ने तब की थी, जब रावण वध करने से उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। उस दोष से मुक्ति के लिए भगवान राम ने पत्नी सीता एवं भाई लक्ष्मण के साथ परिक्रमा की थी। द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञावास के दौरान ये यात्रा द्रौपदी के साथ की थी।

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