प्राचीन समय से ही इंसान का विभिन्न कलाओं के प्रति अटूट रिश्ता रहा है। कभी कलाकारों के फ़न ने तो कभी कलाओं के मुरीद लोगों ने इस ज़माने में नए-नए रंग बिखेरे हैं। ये माना जाता है कि आत्मा की तरह कला अजर-अमर है, ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती है और नया रूप लेती है। आज कला के रूप बदरंग हो गए हैं। कलाकार अपने उद्देश्यों से भटक गए हैं और पैसों के पीछे दौड़ पड़े हैं, जो एक तरह कला को बेचने जैसा है। आज कला के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता समाज को लील रही है। मगर इन सबके बीच आज भी देश में कुछ ऐसे कलाकार हैं जो भारत की प्राचीन सभ्यता को नए रंग देकर उन आदर्श और मूल्यों को बचाने की कोशिश में लगे हैं। जी हाँ, उनमें से एक है हरियाणा के भिवानी जिले के कस्बा सिवानी के गाँव बड़वा की माटी में जन्मे मास्टर छोटूराम।
किसान परिवार में जन्मे मास्टर छोटूराम का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उनके पिता स्वर्गीय रिछपाल गैदर किसान थे जिनसे इनको संघर्ष करने और धैर्य रख आगे बढ़ने की सीख मिली। छोटी उम्र में पिता का साया उठने के बाद भी ये अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए शिक्षा और कला के क्षेत्र में आगे बढ़ते गए। पिछले चार-पांच दशकों से मास्टर छोटूराम अपने लिखे गीतों के जरिये समाज को भारत की प्राचीन संस्कृति से जोड़ने का अतुल्य प्रयास कर रहे हैं। पेशे से सरकारी अध्यापक मास्टर छोटूराम एक आशु कवि और हरियाणवी-हिंदी के जाने माने गायक हैं। देशभर में हज़ारों स्टेज कार्यक्रम दे चुके मास्टर छोटूराम हमारे देश के वीर-शहीदों; शहीद भगतसिंह, सुभाष चद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, शहीद उद्यम सिंह के साथ-साथ अन्य सपूतों की जीवनी को जब अपने गीतों और किस्सों के माध्यम से स्टेज पर प्रस्तुत करते हैं तो देशभक्ति की रसधार बहने लगती है। लोगों को आज सभ्य और जीवन मूल्यों से भरे गीतों को सुनने का सुनहरा अवसर मिलता है।
इन सबके अलावा मास्टर छोटूराम यूट्यूब एवं सोशल मीडिया के जरिये भारत की प्राचीन संस्कृति से जुड़े किस्सों को वीडियो और ऑडियो के रूप में फ्री में शेयर करते हैं, ताकि प्राचीन संस्कृति को बचाया जा सके। हरियाणवी संस्कृति के विभिन्न रंगों को इन्होंने अपनी रागनियों और नाटकों में बखूबी पिरोया है। देशभर में आकाशवाणी एवं टीवी पर समय-समय पर इनके ये कार्यक्रम देखे-सुने जा सकते हैं। गायक कवि कलाकार मास्टर छोटूराम अपने सिद्धांतों और कला से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करते। आज जब नग्न संस्कृति गीतों और किस्सों में हावी है, तब भी इन्होंने अपने मूल्यों को बनाये रखा और हमारे ऐतिहासिक और पौराणिक किस्सों को जेब से पैसे लगाकर रिलीज़ करवाया है।
बेशक आज के तड़क-भड़क वाले अश्लील वीडियो की तुलना में उनको कम शेयर किया गया है लेकिन वास्तव में उन्होंने हमारी धरोहर को सहेजने कि दिशा में अपना अमूल्य योगदान दिया है। पितृभक्त श्रवण कुमार और फैशन की फटकार- इनके पहले दो ऑडियो एल्बम हैं जिनको लोग आज बीस साल बाद भी सुन रहे हैं और सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। ‘कड़े गए वह नाथू-सुरजा’ हरियाणा की बदलती संस्कृति पर फ़िल्माया गया उनका सुपर हिट गीत है जिसे बहुत पसंद और शेयर किया गया है। ऐतिहासिक ‘नरसी का भात’ किस्सा दर्शकों को पूरी रातभर सुनने को मजबूर कर देता है। वास्तव में अपनी प्राचीन कला को बनाये रखना बहुत बड़ी बात है। आज के दौर में युवा पीढ़ी यूट्यूब और अन्य सोशल प्लेटफार्म पर घटिया स्तर के वीडियो और ऑडियो पसंद करती नज़र आ रही है। ऐसे में मास्टर छोटूराम के सामाजिक गीतों के प्रयास बड़ी छाप छोड़ रहे है। मीडिया को ऐसे कलाकारों के प्रयासों को जोर-शोर से प्रचारित-प्रसारित करना चाहिए। ताकि हमारे प्राचीन मूल्यों को आज की इस शोषणकारी और अश्लील संस्कृति से दूर रखा जा सके।
जब मास्टर छोटूराम जैसे कलाकर पैसों के लिए अपनी कला से समझौता नहीं करते तो हम क्यों घर बैठे कर रहें है। अश्लील गीतों को समाज से बाहर करने के लिए हमें अच्छे गीतों और अच्छे कलाकरों को उचित मान-सम्मान देना ही होगा, तभी हम कला को वास्तविक रूप देकर एक रहने योग्य समाज आने वाली पीढ़ियों को देकर जा पाएंगे। लोक कलाएँ वास्तव में किसी भी समाज की नब्ज होती है। हमें अपने बच्चों को इन कलाओं से अवश्य रूबरू करवाना चाहिए। साथ ही ये भी ध्यान रखना चाहिए कि आज के इंटरनेट युग में हमारे बच्चे क्या देख रहे हैं, क्या सुन रहे हैं। अच्छे कलाकार और उनकी कला समाज के सच्चे पथ प्रदर्शक है लेकिन उनको चुनना हमारी जिम्मेदारी है।
प्रदेश एवं केंद्र सरकार को आज की बिगड़ती संस्कृति के लिए दोषी गानों को खासकर यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म पर बैन करना चाहिए। मास्टर छोटूराम जैसे कलाकारों को ढूँढ़कर उनके लिए एक सरकारी प्लेटफार्म एवं आर्थिक पैकेज की व्यवस्था करने की ज़रूरत है ताकि ऐसे सभी कलाकार हमारी संस्कृति को बचाने के लिए चल रहे प्रयासों को और आगे गति दे सकें। हमारे वीर सपूतों की जीवनियों को मास्टर छोटूराम की तरह रागिनी, नाटक और किस्सों के जरिये अब बदलते दौर के डिजिटल उपकरणों के माध्यम से घर-घर तक पहुँचाने की ज़रूरत है ताकि आने वाली पीढ़ी हमारे वीरों के आदर्शों को अगली पीढ़ी तक सौंप सके। इसलिए ज़रूरी है कि केंद्र सरकार ऐसे ज़मीन से जुड़े सच्चे कलाकरों के लिए अलग से कानून बनाकर हर राज्य सरकार को अपने क्षेत्र के हिसाब से लागू करवाए, तभी हमारी संस्कृति, संस्कार और धरोहर बच पाएंगे।