श्रीनगर, 6 मार्च (हि.स.)। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा के 1931 के शहीदों पर दिए गए बयान के खिलाफ यहां विरोध मार्च निकाला और भाजपा विधायक से माफी मांगने की मांग की।
पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती के नेतृत्व में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने श्रीनगर पार्टी मुख्यालय से लाल चौक सिटी सेंटर की ओर मार्च किया लेकिन पोलो व्यू के पास पुलिस ने उन्हें रोक दिया।
प्रदर्शनकारियों ने 13 जुलाई, 1931 के शहीद हमारे नायक हैं और 13 जुलाई, 1931 के बलिदान कभी नहीं मरेंगे लिखी तख्तियां लेकर शर्मा और भाजपा के खिलाफ नारे लगाए। इल्तिजा ने संवाददाताओं से कहा कि उन शहीदों ने जम्मू-कश्मीर में निरंकुश शासन को खत्म करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
उन्होंने कहा कि हम शहीदों का अपमान स्वीकार नहीं करेंगे। अगर उन्होंने अपने प्राणों की आहुति नहीं दी होती तो यहां लोकतंत्र स्थापित नहीं होता। उन्होंने कहा कि पीडीपी भाजपा को हमारी सामूहिक स्मृति को मिटाने की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने कहा कि हम भाजपा की ऐसी सभी योजनाओं को विफल कर देंगे। वह 22 शहीद हमारे नायक हैं और हम उनके बलिदान को याद रखेंगे। पीडीपी नेता ने शर्मा से माफी की भी मांग की। इल्तिजा ने अन्य दलों से पीडीपी विधायक वहीद पारा द्वारा लाए गए प्रस्ताव का समर्थन करने का आह्वान किया जिसमें 13 जुलाई और 5 दिसंबर को छुट्टियां बहाल करने की मांग की गई है।
सुनील शर्मा ने बुधवार को पारा द्वारा चल रहे बजट सत्र के दौरान विधानसभा में दो छुट्टियों को बहाल करने की मांग के बाद यह टिप्पणी की। विपक्ष के नेता की अपमानजनक टिप्पणी को बाद में स्पीकर अब्दुल रहीम राथर ने हटा दिया। 13 जुलाई, 1931 को जम्मू-कश्मीर के अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह के दौरान डोगरा सेना के सैनिकों द्वारा 20 से अधिक प्रदर्शनकारियों को मार दिया गया था। भाजपा ने प्रदर्शनकारियों पर महाराजा हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस दिन का पालन क्षेत्र में कभी भी पुनर्जीवित नहीं किया जाएगा।
शर्मा ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा कि मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि 13 जुलाई जिसे कश्मीरी नेता शहीद दिवस कहते हैं, हम इसे देशद्रोहियों का दिन मानते हैं। इसे जम्मू-कश्मीर की धरती पर फिर कभी बहाल नहीं किया जाएगा।
13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में सार्वजनिक अवकाश होता था और राज्यपाल या मुख्यमंत्री इस दिन नौहट्टा क्षेत्र में एक आधिकारिक समारोह में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते थे।
2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अवकाश समाप्त कर दिया गया था। अब आधिकारिक समारोह आयोजित नहीं किए जाते हैं।