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क्लारा जेटकिन: महिला अधिकारों की प्रखर नेता

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। यह दिवस महिलाओं के अधिकारों, उनकी समानता, स्वतंत्रता और उनकी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृति और राजनीतिक उपलब्धियों को पहचानने के लिये जाना जाता है। आज इसका इतिहास कोई सवा सौ वर्ष पुराना हो चुका है। विश्व के लगभग सभी देशों में यह खास दिन लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने साथ महिलाओं सहित पुरुषों के सहयोग और उनमें संवेदनशीलता जगाने का माध्यम भी बनता है। इस दिवस की यही उपलब्धि भी है कि महिलाओं के साथ पुरुष भी पितृसत्ता को पहचानते हुये उसके दुष्परिणामों के प्रति सजग होकर महिलाओं के साथ एक सुंदर समाज का निर्माण करें।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इन उद्देश्यों के परे यह जानने में हम सबकी उत्सुकता इस बात में जरूर होनी चाहिये कि इस ऐतिहासिक दिवस को मूर्त रूप देने में किन लोगों का सार्थक प्रयास रहा और उनके किन प्रयासों से महिलाओं को आज पुरुषों के समान अधिकारों की बात की जा रही है। उनमें से एक प्रमुख नाम क्लारा जेटकिन (1857-1933) का आता है जिनके प्रयासों से यह दिवस आज हम सब मना पा रहे हैं। वे एक जर्मन समाजवादी, नारीवादी और राजनीतिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने महिला अधिकारों, श्रमिक आंदोलन और समाजवाद के लिए जीवनभर संघर्ष किया।

क्लारा जेटकिन का जन्म 1857 में जर्मनी में हुआ था। उनकी मां भी महिला अधिकारों के लिये संघर्षरत थीं। ऐसे में वे बचपन से ही इस तरह के आंदोलनों के प्रमुख नेताओं के संपर्क में आने लगीं। वे स्कूली दिनों में ही रूसी क्रांतिकारी आंदोलन से परिचित हो चुकी थीं और जर्मन मजदूर आंदोलन से सहानुभूति रखती थीं। बाद में रूसी क्रांतिकारी ओसिप जेटकिन के संपर्क में आईं और उनके साथ काम भी किया। बाद में वे उनके जीनवसाथी भी बने। 1881 में क्लारा जेटकिन अपने पति के साथ पेरिस चली गईं, जब उन्हें जर्मनी से देश निकाला दे दिया गया था। यह वह समय था जब जर्मन मजदूर आंदोलन और उनकी पार्टी जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी को कई तरह के प्रतिबंध झेलने पड़े। 12 साल बाद 1890 में उन्हें इस तरह के प्रतिबंध से निजात मिलीं।

इस दौरान पेरिस में रहते हुये क्लारा सक्रिय रहीं अपने लेखों और भाषणों से महिला अधिकारों को आवाज उठाती रही। इसका परिणाम यह रहा कि उन्हें 1889 में महिलाओं से जुड़े सवालों पर दूसरी इंटरनेशनल कांग्रेस को संबोधित करने के लिये आमंत्रित किया गया। यहां वे एक सक्रिय महिला अधिकारों की प्रवक्ता बन कर उभरीं।

1891 में जर्मनी लौटने के साथ उन्होंने महिला अधिकारों की वकालत करने के लिये ‘डाइ ग्लीचहाइट’ नामक पत्रिका की स्थापना की और उसका आगे 25 सालों तक संपादन कार्य भी किया। जर्मन पत्रिका ‘डाइ ग्लीचहाइट’ का अर्थ ‘समानता’ है। इसके उप शीर्षक में ‘महिला मजदूरों के हितों के लिये’ लिखा जाता था।

1890 के दशक से लेकर प्रथम विश्वयुद्ध के शुरू होने तक जेटकिन ने जर्मन समाजवादी महिला आंदोलन को सफलतापूर्वक खड़ा करने के लिए अपनी ऊर्जा समर्पित की। 1907 तक समाजवादी महिला आंदोलन में 75,000 से ज्यादा महिलाएं शामिल हो चुकी थीं। यह ‘डाइ ग्लीचहाइट’ के सदस्यता अभियान से पता चलता है। हजारों महिलाओं को ट्रेड यूनियनों, शिक्षा समितियों में संगठित किया गया और 1908 के बाद जब महिला संघ के विरुद्ध कानून निरस्त कर दिया गया, तो एसपीडी में भी शामिल हो गईं। 1914 तक जर्मन सोशल डेमोके्रटिक पार्टी यानी एसपीडी की 174,474 महिला सदस्य थीं। इसी बात से उनके कुशल सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता होने का सबूत मिलता है।

1910 का ‘सोशलिस्ट इंटरनेशनल महिला सम्मेलन’ महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ था। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव 1910 में कोपेनहेगन (डेनमार्क) में आयोजित इसी सम्मेलन में रखा गया था। क्लारा ने सुझाव दिया कि हर साल एक दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए, ताकि दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों, समानता और सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जा सके। इस प्रस्ताव को 17 देशों की 100 से अधिक महिलाओं ने समर्थन दिया।

क्लारा जेटकिन के प्रस्ताव के एक साल बाद, 1911 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। यह 19 मार्च 1911 को ऑस्ट्रिया, जर्मनी, डेनमार्क और स्विट्जरलैंड में मनाया गया। लाखों महिलाओं और पुरुषों ने रैलियों, प्रदर्शनों और सभाओं के माध्यम से महिला अधिकारों की मांग की। इसके बाद 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक मान्यता दी और इसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया।

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