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‘भारत’ ही लिखें और बोलें

देश के प्राचीन एवं संविधान सम्मत नाम ‘भारत’ का जिस प्रकार वातावरण बनाया जा रहा है, उससे दो बातें सिद्ध हो जाती हैं। पहली, देश में अभी भी एक वर्ग ऐसा है, जो मानसिक रूप से औपनिवेशिक गुलामी का शिकार है। भारत के ‘स्व’ और उसकी सांस्कृतिक परंपरा को लेकर उसके मन में गौरव की कोई अनुभूति नहीं है। दूसरी, वास्तव में यह समूह ‘भारत विरोधी’ है। भारतीयता का प्रश्न जब भी आता है, तब यह समूह उसके विरुद्ध ही खड़ा मिलता है। एक तरह से यह उसका स्वभाव बन गया है। ‘भारत’ को ‘भारत’ कहने पर आखिर हाय-तौबा क्यों मची हुई है? भारत विरोधी समूह को एक बार संविधान सभा की बहस पढ़नी चाहिए। निश्चित ही उसे ध्यान आएगा कि तत्कालीन कांग्रेसी नेता अपने देश का नाम ‘भारत’ ही रखना चाहते थे लेकिन अंग्रेजी मानसिकता के दास लोगों के सामने उनकी चली नहीं। आखिरकार ‘भारत’ के साथ ‘इंडिया’ नाम भी चिपक गया।

कांग्रेस के वरिष्ठ एवं सम्मानित नेता सेठ गोविंद दास ने कहा था कि वेदों, महाभारत, पुराणों और चीनी यात्री ह्वेन-सांग के लेखों में ‘भारत’ देश का मूल नाम था। इसलिए स्वतंत्रता के बाद संविधान में ‘इंडिया’ को प्राथमिक नाम के रूप में नहीं रखा जाना चाहिए। वास्तव में भारत हमारी संस्कृति एवं परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन इंडिया शब्द के साथ ऐसी कोई गौरव की अनुभूति करानेवाली बात नहीं जुड़ी है। भारत कहने पर, हमें समृद्धशाली परंपरा का स्मरण होता है। स्वाभाविक ही हम लोग अपनी परंपरा से जुड़ जाते हैं। जब भी किसी ने अपने देश को भावनात्मक आधार पर स्मरण किया है, उसने उसके लिए भारत शब्द ही उपयोग किया है। राष्ट्रगान में ‘इंडिया भाग्य विधाता’ नहीं आता, अपितु ‘भारत भाग्य विधाता’ गाया जाता है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी ‘भारतमाता कौन है’ व्याख्यायित किया, इंडिया माता नहीं। स्वतंत्रता के आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों एवं क्रांतिकारियों ने भी ‘भारत माता की जय’ का नारा बुलंद किया। संविधान सभा में जब भारत के नाम को लेकर आए प्रस्ताव पर चर्चा हो रही थी तब प्रसिद्ध गांधीवादी नेता एवं कांग्रेस सरकार के मंत्री महावीर त्यागी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू की दलीलों पर व्यंग्य करते हुए कहा कि “यह (नेहरूजी) हैरो (विलायत) में पढ़े हैं और मैंने केवल एक छोटी-सी पाठशाला में अंग्रेजी पढ़ी है। पर मेरे गुरु नंदराम जी ने छठी क्लास में मुझे बताया था कि व्याकरण के अनुसार ‘प्रोपर नाउन’ (व्यक्तिवाचक संज्ञा) का अनुवाद नहीं होता है, पर जब हैरो की ग्रामर के विद्यार्थी कहते हैं कि नामों का अनुवाद भी हो सकता है, तो मैं अपना संशोधन वापस लेता हूँ। पर मेरे प्रतिष्ठित मित्र को सचेत रहना चाहिए कि कल के अंग्रेजी समाचारपत्रों में यह छप सकता है कि ऑनरेबिल प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया, मिस्टर ‘जैमरैड कैनालू’ के कहने पर त्यागी ने अपना संशोधन वापस लिया”। नेहरूजी ने जब पूछा कि क्या कहा तुमने? तब वाकपटुता के लिए प्रसिद्ध महावीर त्यागी ने कहा- जैम का अर्थ है जवाहर, रैड का लाल और कैनालू का अर्थ है नेहरू। दरअसल, महावीर त्यागी ने ‘इंडिया दैट इज भारत’ प्रस्ताव में एक ऐसी गलती की ओर ध्यान आकर्षित किया था, यदि उसे नहीं सुधारा जाता तो आज संविधान की दुहाई देनेवाले लोग कहते कि अपने देश का नाम न तो इंडिया है और न ही भारत, संविधान के अनुच्छेद-1 के अनुसार हमारे देश का नाम ‘इंडिया दैड इज भारत’ है। महावीर त्यागी का आधा संशोधन मानकर ‘इंडिया दैट इज भारत’ से उद्धरण चिह्न हटा लिए और इंडिया शब्द के बाद कौमा लगा दिया।

बहरहाल, विश्व में शायद ही किसी देश का ऐसा उदाहरण नहीं मिले, जिसका उसकी अपनी भाषा में नाम अलग हो और अंग्रेजी में अलग। सबका एक ही नाम चलता है। दुनियाभर में अनेक उदाहरण हैं, जब देशों ने बाह्य पहचान को हटाकर अपने ‘स्व’ का धारण किया और अपना वास्तविक नाम स्वीकार किया है। इनमें हमारे ही पड़ोसी देश म्यांमार और श्रीलंका उदाहरण हैं। भारत में अभी ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया कि उसका नाम अब केवल ‘भारत’ लिखा जाएगा। लेकिन कांग्रेस सहित उसके समर्थित समूह में हलचल मच गई है। अभी कोई नहीं जानता कि संसद के विशेष सत्र में ऐसा कोई प्रस्ताव आएगा या नहीं। यदि आए तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए और इस दिशा में कोई प्रस्ताव नहीं भी आता तब एक संकल्प सबको लेना चाहिए कि जहाँ तक संभव होगा, हम अपने देश का नाम भारत ही लिखें और बोलें।

नोएडा में 10 मार्च, 2025 को ‘विमर्श भारत का’ पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि “भारत को अंग्रेजी नाम इंडिया नहीं बल्कि ‘भारत’ कहा जाना चाहिए। यह ‘कंस्टीटूशन ऑफ इंडिया’ है, ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ है…ऐसा क्यों है? ऐसा सवाल उठना चाहिए। इसे सुधारा जाना चाहिए। अगर देश का नाम भारत है, तो इसे इसी नाम से पुकारा जाना चाहिए। भारत एक भौगोलिक इकाई या संवैधानिक ढांचे से कहीं अधिक है; यह एक गहन दर्शन और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है”।

स्मरण हो कि इससे पहले 2 सितंबर, 2023 को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी भी यह आग्रह कर चुके हैं कि भारत को भारत ही कहना चाहिए। उन्होंने सकल जैन समाज के एक कार्यक्रम के दौरान उचित ही कहा कि “हमारे देश का नाम सदियों से भारत ही है। भाषा कोई भी हो, नाम एक ही रहता है। हमारा देश भारत है और हमें सभी व्यवहारिक क्षेत्रों में इंडिया शब्द का इस्तेमाल बंद करके भारत शब्द का इस्तेमाल शुरू करना होगा, तभी बदलाव आएगा। हमें अपने देश को भारत कहना होगा और दूसरों को भी यही समझाना होगा”। प्रकांड विद्वान स्वर्गीय राजीव दीक्षित से लेकर सद्गुरु जग्गी वासुदेव तक अनेक महानुभाव यह आग्रह कर चुके हैं कि हमारे देश का नाम भारत होना चाहिए। कांग्रेस में भी जो राष्ट्रभक्त नेता हैं, उनका आग्रह भी भारत नाम के लिए रहा है।

अभी हाल के वर्षों में यानी 2012 में ही कांग्रेस के सांसद रहे शांताराम नाइक ने राज्यसभा में विधेयक प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने प्रस्ताव रखा कि संविधान के अनुच्छेद-1 में और संविधान में जहाँ-जहाँ इंडिया शब्द आया का उपयोग हुआ हो, उसे बदलकर भारत कर दिया जाए। कांग्रेस के सांसद नाइक ने यह भी कहा कि इंडिया शब्द से एक सामंतशाही शासन का बोध होता है, जबकि भारत से ऐसा नहीं है। परंतु आज एक ऐसे नेता के प्रति स्वामी भक्ति प्रकट करने के चक्कर में कांग्रेसी ‘भारत’ का विरोध कर रहे हैं, जो भारत को एक राष्ट्र ही नहीं मानता है। वह चुनौती भी देते हैं कि संविधान में कहीं भी भारत को राष्ट्र नहीं लिखा है, जबकि संविधान की प्रस्तावना में ही भारत को एक संप्रभु राष्ट्र कहा गया है।

बहरहाल, देश के नाम शुद्धि के लिए संविधान संशोधन हो या नहीं, हमें संकल्प करना चाहिए कि हम अपने लिखने, पढ़ने और बोलने में ‘भारत’ ही उपयोग करेंगे। यदि ऐसा किया, तब किसी प्रकार के संशोधन की अपेक्षा भी नहीं रह जाएगी। वैसे भी अभी सामान्यतौर पर हम अपने देश के लिए ‘भारत’ नाम का ही उपयोग करते हैं।

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