झज्जर, 14 मार्च (हि.स.)। जिला के गांव झांसवा और मोहन बाड़ी के निवासी 6,000 से अधिक लोगों के लिए होली जलाने का इंतजार बहुत लंबा हो चला है। इस बार भी ये लोग होलिका दहन नहीं कर पाए। यहां फाग के रंग भी बहुत फीके रहे फाग खेलने के नाम पर इन गांव में केवल औपचारिकता पूरी की गई। ग्रामीणों की मान्यता है कि जब तक होली के दिन गांव में बछड़ा पैदा नहीं होगा तब तक होलिका दहन नहीं करेंगे।
हरियाणा के अन्य क्षेत्रों की तरह झज्जर के गांव मोहन बड़ी वह झांसवा के आसपास भी हर एक गांव में श्रद्धा उल्लास के साथ होलिका पूजन किया गया। महिलाओं ने होली के दिन सज धज कर अपने बच्चों को साथ ले हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार होलिका की पूजा की। लेकिन मोहन बड़ी वह झांसवा में होली का पूजन तो किया पर दहन नहीं किया गया। महिलाएं दशकों पुरानी परंपरा के अनुसार गाय के गोबर से बने ढाल-बिड़कलों से बनी मालाओं और होली पर चढ़ाई गई लकड़ियों को घर ले गई।
झांसवा गांव के पीके शर्मा ने बताया कि लगभग 100 साल पहले होली के दिन गांव में विशाल होलिका बनाई गई थी। महिलाओं ने होली का पूजन भी किया। बताया जाता है कि होलिका दहन शुरू हुआ तो दो नंदी (गोवंशी) लड़ते-लड़ते जलती हुई होलिका में जा गिरे। ग्रामीणों ने उनको बचाने का बेहद प्रयास किया लेकिन एक की मौत हो गई। जिससे गांव में मातम छा गया। गांव के लोगों ने इस घटना को अशुभ माना। मामले को लेकर पंचायत का आयोजन किया गया। संपूर्ण गोवंश के प्रति अपनी आस्था को देखते हुए ग्रामीणों ने गांव में होलिका दहन न करने का फैसला लिया। यह तय किया गया कि जब तक होली के दिन गांव में बछड़ा जन्म नहीं लगा तब तक होलिका दहन नहीं किया जाएगा। तभी से यहां होलिका दहन नहीं किया जाता। यहां के निवासी जयवीर ने बताया कि घटना के बाद से ही उनके गांव के लोग इस मिथक के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।
मंदिर में होली पर चढ़ाए जाते हैं पंखे
झज्जर निवासियों की श्रद्धा के बड़े केंद्र बाबा प्रसाद गिरी मंदिर में इस बार भी होली के दिन पंखे चढ़ाए गए। जिन लोगों की मन्नतें पूरी हो जाती हैं वे यहां पंखे दान करते हैं। यह परंपरा 300 सालों से चली आ रही है। हर साल की तरह इस बार भी होली उत्सव और भंडारे का आयोजन किया गया। मंदिर के महंत परमानंद महाराज ने बताया कि पहले के जमाने में लोग कागज के पंखे दान करते थे। आज कल लोग बिजली के पंखे, कूलर और एसी दान करने लगे हैं। जिन भक्तों की मन्नतें पूरी होती हैं वे मंदिर में दिल खोलकर ये उपकरण दान देते हैं।