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‘स्वामित्व’ योजना के पांच साल…आत्मनिर्भर भारत का निर्माण

देश ने ठान लिया है कि गांव और गरीब को आत्मनिर्भर बनाना है, भारत के सामर्थ्य को साकार करना है। इस संकल्प की सिद्धि में स्वामित्व योजना की भूमिका बहुत बड़ी है। -नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवासर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 अप्रैल, 2020 को ‘स्वामित्व’ (गांवों का सर्वेक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर तकनीक के साथ मानचित्रण) योजना का शुभारंभ किया था। ‘स्वामित्व’ ड्रोन-आधारित सर्वेक्षणों का उपयोग करके ग्रामीण आवासीय भूमि का कानूनी स्वामित्व प्रदान करता है। ‘स्वामित्व’ का कार्यान्यवन भारतीय सर्वेक्षण विभाग और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र सेवा (एनआईसीएसआई) के सहयोग से किया जा रहा है। इसका उद्देश्य ग्रामीण नागरिकों को संपत्ति कार्ड प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना, ऋण सुलभ कराना, विवाद समाधान और बेहतर योजना बनाना है। इस योजना के अंतर्गत 1.61 लाख गांवों के लिए 2.42 करोड़ से अधिक संपत्ति कार्ड बनाए गए हैं। 3.20 लाख गांवों में ड्रोन सर्वेक्षण पूरा हो चुका है। इसके तहत 68,122 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया जा चुका है। भारत सरकार के पत्र एवं सूचना कार्यालय (पीआईबी) की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण में इस योजना पर विस्तार से चर्चा की गई है। पीआईबी के अनुसार, ‘स्वामित्व’ के कारण ग्रामीण शासन में बदलाव आ रहा है। आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है। वैश्विक स्तर पर भारत की भूमि संबंधी तकनीक मील का पत्थर साबित हो रही है।

इस वर्ष ‘स्वामित्व’ अपनी पांचवीं वर्षगांठ मना रहा है। यह योजना गांवों में लोगों को उनके उन घरों एवं जमीन, जहां वे रहते हैं, के लिए कानूनी स्वामित्व के कागजात पाने में मदद करती है। यह संपत्ति की सीमाओं को स्पष्ट रूप से चिह्नित करने के लिए ड्रोन और मानचित्रण संबंधी विशेष उपकरणों का उपयोग करती है। इन कागजात के साथ, लोग बैंक से ऋण ले सकते हैं। भूमि विवादों का निपटारा कर सकते हैं और यहां तक कि अपनी संपत्ति का उपयोग अधिक कमाई के लिए भी कर सकते हैं। यह योजना बेहतर ग्राम नियोजन में भी मदद करती है। वित्तीय वर्ष 2020-21 से लेकर वित्तीय वर्ष 2024-25 तक कुल लागत 566.23 करोड़ रुपये है। इसे वित्तीय वर्ष 2025-26 तक बढ़ाया जा सकता है।

पीआईबी ने इस योजना की प्रमुख उपलब्धियों का जिक्र भी किया है। इसमें कहा गया कि 18 जनवरी 2025 को 10 राज्यों (छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) और दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख) के 50,000 से अधिक गांवों में 65 लाख स्वामित्व संपत्ति कार्ड वितरित किए गए। दो अप्रैल, 2025 तक, स्वामित्व योजना के तहत 3.20 लाख गांवों में ड्रोन सर्वेक्षण पूरा हो चुका है। इन सर्वेक्षणों ने प्रत्येक गांव में बसे हुए क्षेत्रों के औसत आकार के आधार पर अनुमानित 68,122 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया है। 11 मार्च 2025 तक 31 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों ने समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप, लद्दाख एवं दिल्ली और आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पूर्ण कवरेज के साथ 3.20 लाख गांवों में ड्रोन सर्वेक्षण पूरा हो चुका है। 1.61 लाख गांवों के लिए कुल 2.42 करोड़ संपत्ति कार्ड जारी किए गए हैं।

गुरुग्राम स्थित हरियाणा लोक प्रशासन संस्थान में 24-29 मार्च, 2025 को आयोजित भूमि के प्रशासन से संबंधित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में 22 देशों के वरिष्ठ अधिकारी एकत्रित हुए। इस कार्यक्रम में ड्रोन आधारित सर्वेक्षण, डिजिटल संपत्ति रिकॉर्ड और स्वामित्व योजना के जरिए पारदर्शी शासन सहित भारत के रचनात्मक दृष्टिकोण को प्रदर्शित किया गया। भारत मंडपम में आयोजित भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले 2024 में इस योजना ने इस बात को प्रदर्शित किया कि कैसे ड्रोन एवं जीआईएस मैपिंग ग्रामीण समुदायों को स्पष्ट और कानूनी भूमि स्वामित्व हासिल करने में मदद कर रहे हैं। यह योजना प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि का नतीजा है, क्योंकि दशकों से भारत में तमाम गांवों के घरों और जमीनों का सही तरीके से रिकॉर्ड नहीं रखा गया था। कानूनी दस्तावेजों के बिना लोग स्वामित्व साबित नहीं कर सकते थे या बैंक से ऋण नहीं ले सकते थे। रिकॉर्ड की कमी ने ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक विकास को धीमा किया और अकसर भूमि विवाद पैदा हुए। इस समस्या को हल करने के उद्देश्य से स्वामित्व योजना को शुरू करने का फैसला किया गया।

इस योजना की सफलता की कहानियां भी सामने आई हैं। 25 वर्ष की अनिश्चितता के बाद हिमाचल प्रदेश के तारोपका गांव की सुनीता को स्वामित्व योजना के जरिए अपनी पैतृक भूमि का कानूनी स्वामित्व मिला है। अपने संपत्ति कार्ड की सहायता से उन्होंने पड़ोसी के साथ लंबे समय से चल रहे विवाद को सुलझाया। इससे परिवार में शांति और सुरक्षा आई। स्वामित्व योजना ने उन्हें स्पष्ट स्वामित्व दिया। इससे उनका जीवन बेहतर हुआ।

राजस्थान के फलाटेड गांव के सुखलाल पारगी को इस योजना के तहत पट्टा और संपत्ति कार्ड मिला। इन दस्तावेजों की मदद से वे वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बनाने में सक्षम हुए। उन्होंने संपत्ति कार्ड का उपयोग करके बैंक से तीन लाख रुपये का ऋण तुरंत प्राप्त किया। आज स्वामित्व योजना ग्रामीण भारत की पुरानी चुनौतियों को विकास एवं सशक्तिकरण के नए अवसरों में बदल रही है। यह योजना विवादों को सुलझाने और बाधाओं को तोड़ने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है। यह योजना सरकारी कार्यक्रम से कहीं बढ़कर है। यह आत्मनिर्भरता, बेहतर नियोजन और एक मजबूत ग्रामीण भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

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