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अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर आदि विश्वेश्वर बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह में लगा कुंवरा

ग्रीष्मकाल में इस रजत जलधारी से बाबा के ज्योर्तिलिंग पर निरंतर होगा जलाभिषेक

वाराणसी, 30 अप्रैल (हि.स.)। अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर बुधवार को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में रजत “कुंवरा” (विशेष जलधारी) की स्थापना की गई। यह रजत जलधारी आदि विश्वेश्वर बाबा के पावन ज्योर्तिलिंग पर निरंतर जलाभिषेक के उद्देश्य से लगाई गई है, जिससे उन्हें ग्रीष्मकाल की तीव्र तपन में शीतलता प्रदान की जा सके।

मंदिर न्यास के अनुसार, प्रत्येक वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया, अर्थात अक्षय तृतीया के दिन यह कुंवरा गर्भगृह में स्थापित किया जाता है। कुंवरा शुद्धता, शीतलता एवं साधना का प्रतीक माना जाता है। यह विशेष रूप से ग्रीष्म ऋतु के वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में बाबा को शीतलता प्रदान करने के लिए लगाया जाता है।

उल्लेखनीय है कि चांदी से निर्मित यह जलधारी एक फव्वारे के रूप में कार्य करती है, जो मंदिर परिसर स्थित जल टंकी से जुड़ी होती है। जल टंकी में गंगाजल के साथ गुलाब जल एवं इत्र का मिश्रण किया जाता है, जो पाइपों के माध्यम से कुंवरे तक पहुंचता है और शिवलिंग पर निरंतर जलाभिषेक करता है। यह प्रक्रिया श्रावण मास की पूर्णिमा तक अनवरत चलती है। सनातन परंपरा के अनुसार, शिवभक्त न केवल अपने आराध्य भगवान शिव, बल्कि उनके आराध्य भगवान विष्णु की सेवा में भी जलधार समर्पित करते हैं।

अक्षय तृतीया से ही भगवान राम, श्रीकृष्ण, माधव, गोपाल आदि विग्रहों को चंदन का लेप कर फूलों से श्रृंगार करने की परंपरा भी आरंभ होती है। इस अवसर पर भगवान को लंगड़ा आम का विशेष भोग भी अर्पित किया गया। खास बात यह है कि मौसम के अनुकूल अपने आराध्य के वस्त्र विन्यास, आहार भोग व सुविधाओं की व्यवस्था करना भक्तों की आस्था का प्रतीक है। इसी क्रम में जहां शीतकाल में शिवभक्तों के अनुरोध पर बाबा को मखमली रजाई ओढ़ाया जाता है। वहीं, प्रचंड गर्मी आरंभ होने पर अक्षय तृतीया से जलाधरी लगाने की परंपरा का निर्वहन मंदिर प्रशासन व श्रद्धालु करते हैं।

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