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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का दावा- डॉ. अंबेडकर मनु स्मृति से नहीं, संविधान से थे असंतुष्ट

वाराणसी, 16 मई (हि.स.)। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि लोग कहते हैं कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया, मैं स्पष्ट कर दूं कि उन्होंने मनुस्मृति को नहीं जलाया। वह तो संविधान से असंतुष्ट थे और उसको जलाना चाहते थे। शंकराचार्य ने दावा किया कि बाबा साहेब ने मनुस्मृति को नहीं जलाया, वह एक ब्राह्मण गंगाधर सहस्रबुद्धे ने जलाई थी, लेकिन उस वक्त वो भी वहां मौजूद थे। इसलिए उनका नाम आ गया।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद केदारघाट स्थित श्री विद्यामठ में शुक्रवार को प्रवचन के दौरान बाबा साहेब से जुड़ी अह्म बातों की चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर संविधान जलाना चाहते थे। जब डॉ. अंबेडकर से पूछा गया कि संविधान बनाने में तो आपकी विशेष भूमिका रही है फिर आप उसे क्यों जलाना चाहते हैं। इस पर उनका कहा था, मैंने एक मंदिर बनाया लेकिन उसमें यदि शैतान आकर रहने लगे तो फिर मुझे क्या करना चाहिए? बाबा साहब बाद में खुद संविधान से सन्तुष्ट नहीं थे। शंकराचार्य ने कहा कि मनुस्मृति में तो बिना भेदभाव के सबका धर्म बताया गया है। अम्बेडकरवादी लोगों को बाबा साहेब के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आगे आना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सनातन ही एकमात्र धर्म है जिसमें यदि बेटा भी कुछ गलत करता है तो उसे भी वही सजा दी जाती है जो किसी अन्य को दी जाती। हर धर्म का एक ग्रन्थ होता है। जैसे इसाइयों का धर्मग्रन्थ बाइबिल है। मुसलमानों का कुरआन है। इसी प्रकार हमारा भी एक ग्रन्थ वेद है। वेद को यदि पढ़ा जाए तो 4524 पुस्तकें मिलाकर 4 वेद बनते हैं। और इन्हें समझने के लिए वेदांग की आवश्यकता होती है। ज्यादा भी नहीं एक वेदांग की यदि 500 भी पुस्तकें मानी जाए तो करीब 3000 पुस्तकें वेदांग की हो गईं। इस तरीके से कुल मिलाकर 7524 पुस्तकें हो गईं। यदि वेद को भी पढ़ा जाए तो पूरा जीवन भी कम पड़ जाता है। इसलिए इसका सार जानने की आवश्यकता होती है और वेदों का जो सार है, उसी को मनुस्मृति कहा जाता है।

उन्होंने कहा कि तथागत बुद्ध ब्राह्मण कुल में पैदा हुए फिर भी हम उनको पूजते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यदि धर्म का पालन करते वक्त मौत भी आ जाए तो भी उसमें हमारा कल्याण है। इसलिए कर्म कभी नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म से ही प्रतिष्ठा मिलती है। यदि स्वर्ग में भी जाएंगे तो वहां भी प्रतिष्ठा मिलेगी। श्रुति व स्मृति वचन में श्रुति का ज्यादा महत्व होता है। पशु धार्मिक नहीं होता। इसलिए उसके लिए कोई धर्मशास्त्र नहीं होता। जो जैसा है, उसकी प्रतिभा को समझकर उसके हिसाब से काम करवाना भी एक कला है। हमारा भारत का संविधान मनुस्मृति को पूरा सम्मान देता है।

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