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करियाचल्ली द्वीप को बचाने में जुटी तमिलनाडु सरकार, ₹50 करोड़ की परियोजना शुरू

चेन्नई, 4 जून (हि.स.)।
तमिलनाडु सरकार ने थूथुकुडी जिले के समीप स्थित पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील करियाचल्ली द्वीप को फिर से संवारने के लिए ₹50 करोड़ की एक बड़ी परियोजना शुरू की है। यह द्वीप मन्नार की खाड़ी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है और समुद्री जैव विविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।


🌊 द्वीप की विशेषता और खतरा

करियाचल्ली उन 21 नाजुक द्वीपों में से है जो तटीय क्षेत्रों को चक्रवात और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करते हैं। 2004 की सुनामी के दौरान इस द्वीप ने बाढ़ को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन हाल के वर्षों में यह द्वीप तेजी से कटाव और क्षरण का शिकार हो रहा है।


🧪 वैज्ञानिक समाधान: नकली मूंगा चट्टानों का निर्माण

इस संरक्षण प्रोजेक्ट के तहत IIT मद्रास द्वारा 8,500 कृत्रिम मूंगा चट्टानें बनाई गई हैं। ये लगभग तीन टन वजनी विशेष संरचनाएं हैं, जो:

  • द्वीप के किनारों को मजबूत करेंगी
  • समुद्र में नई प्रवाल भित्ति कॉलोनियां बनने में मदद करेंगी
  • लहरों की ताकत को कम कर कटाव रोकेगी

🧜 स्थानीय समुदाय की भागीदारी

सिप्पिकुलम और पट्टिनामारुथूर गांवों के स्थानीय मछुआरों को गोताखोरी की ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वे इन संरचनाओं को समुद्र में स्थापित कर सकें। इस पहल से लोगों की आजीविका और भागीदारी दोनों को मजबूती मिलेगी।


🌱 प्राकृतिक पुनर्स्थापन और जैव विविधता का संरक्षण

इस परियोजना के अंतर्गत:

  • दो एकड़ मूंगा चट्टानों का पुनर्स्थापन
  • तीन एकड़ समुद्री घास के क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य है

ये क्षेत्र कार्बन अवशोषण, समुद्री जीवन संरक्षण और डुगोंग जैसे दुर्लभ समुद्री जीवों की वापसी के लिए बेहद जरूरी हैं।


📈 इको-टूरिज्म और सतत विकास को बढ़ावा

पर्यावरण सचिव सुप्रिया साहू के अनुसार, इस परियोजना से इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और स्थायी आर्थिक अवसर भी सृजित होंगे। अगर यह प्रयास सफल रहा, तो यह विज्ञान, समुदाय और प्रकृति के समन्वय से जलवायु संकट से लड़ने का प्रेरणादायक मॉडल बन सकता है।


🔬 विशेषज्ञों की राय

एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के समुद्री विशेषज्ञ आर. रामसुब्रमण्यम का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के असर को झेलने वाले मूंगा प्रजातियों का उपयोग इस पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण होगा। मूंगे की धीमी वृद्धि दर (1 सेमी प्रति वर्ष) को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक निगरानी जरूरी है।

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