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झारखंड की स्थानीयता और नियोजन नीति पर निर्णायक पहल, देवेन्द्र नाथ ने राज्यपाल को सौंपा प्रारूप

📍 रांची, 9 जून (हि.स.) — धरती आबा बिरसा मुंडा की 125वीं पुण्यतिथि के अवसर पर झारखंड लोककल्याण मोर्चा (जेएलकेएम) के केंद्रीय उपाध्यक्ष देवेन्द्र नाथ महतो ने सोमवार को राज्यपाल संतोष गंगवार से राजभवन में भेंट की। इस दौरान उन्होंने स्थानीय नीति और नियोजन नीति का प्रारूप सौंपते हुए झारखंड के मूल निवासियों की पहचान, अधिकार और अस्मिता पर आधारित ठोस नीति बनाने की मांग की।


🗨️ देवेन्द्र नाथ महतो ने क्या कहा?

देवेन्द्र नाथ ने राज्यपाल से बातचीत में कहा:

15 नवंबर 2000 को अबुआ दिशुम, अबुआ राज के सपने के साथ झारखंड राज्य का गठन हुआ था, लेकिन पिछले 25 वर्षों में यह सपना अधूरा रह गया है। स्थानीयता और नियोजन नीति न बनने से झारखंडियों की पहचान और अधिकारों को अभी तक मान्यता नहीं मिली है।”

उन्होंने बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 85 का हवाला देते हुए कहा कि झारखंड सरकार को अधिकार है कि वह बिहार के श्रम एवं नियोजन विभाग के गजट को संशोधित कर झारखंड के अनुरूप लागू करे। इसी क्रम में उन्होंने संबंधित गजट की छाया प्रति और स्थानीयता नीति का विस्तृत प्रारूप राज्यपाल को सौंपा।


📜 प्रमुख मांगें

  1. स्थानीयता नीति और नियोजन नीति को अविलंब लागू किया जाए।
  2. बिहार के पुराने गजट को संशोधित कर झारखंड राज्य के अनुसार अंगीकृत किया जाए।
  3. डॉ. रामदयाल मुंडा की रिपोर्ट के आधार पर झारखंड की 9 जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को स्थानीयता नीति का आधार बनाया जाए।
  4. 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक – 2022 को शीघ्र स्वीकृति दिलाई जाए।

🗣️ राज्यपाल की प्रतिक्रिया

राज्यपाल संतोष गंगवार ने कहा कि:

“झारखंडियों की जनभावनाओं का आदर होना चाहिए। विधानसभा से पारित 1932 खतियान आधारित विधेयक को राष्ट्रपति भवन भेज दिया गया है और उस पर निर्णय की प्रतीक्षा की जा रही है।”


🙋 बैठक में उपस्थित प्रमुख लोग

बैठक के दौरान अमित मंडल, संजय महतो, योगेश भारती, प्रेम नायक, रणधीर यादव, सिकंदर आलम, मनीष, रविन्द्र कुमार समेत कई लोग उपस्थित रहे।


📢 यह पहल झारखंड की सामाजिक और राजनीतिक दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है, जिससे राज्य के मूल निवासियों की पहचान और अधिकारों को संवैधानिक मान्यता दिलाने की उम्मीद फिर से जगी है।

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