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कौन थे विष्णु प्रभाकर, जिन्होंने आठ दशकों तक साहित्य को नई दिशा दी?

विष्णु प्रभाकर: जीवन और साहित्य का उजास

पद्मभूषण विष्णु प्रभाकर (21 जून 1912 – 11 अप्रैल 2009) हिन्दी साहित्य के उन अमर रचनाकारों में हैं, जिनकी लेखनी ने कई पीढ़ियों को दिशा दी। उपन्यास, नाटक, कहानी, एकांकी, बाल साहित्य और यात्रा वृतांत सहित अनेक विधाओं में उनका योगदान बेमिसाल है।


आरंभिक जीवन

  • जन्म: मीरपुर, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
  • माता-पिता: महादेवी और दुर्गा प्रसाद
  • प्रारंभिक नाम: विष्णु दयाल
  • प्रेरणादाता उपनाम: “प्रभाकर” नाम एक संपादक की सलाह पर जुड़ा।

शिक्षा और संघर्ष

  • 12 वर्ष की उम्र में हिसार (पंजाब) चले गए।
  • आर्थिक तंगी के कारण नौकरी के साथ-साथ शिक्षा जारी रखी।
  • हिन्दी भूषण, संस्कृत में प्रज्ञा, अंग्रेजी में B.A. की डिग्रियाँ प्राप्त कीं।
  • महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए।

साहित्यिक यात्रा

  • पहली कहानी: “दिवाली के दिन” (1931)
  • आठ दशकों तक सतत लेखन
  • साहित्य की हर विधा में योगदान:
    • 300+ कहानियाँ
    • 8 उपन्यास, 14 नाटक, 17 एकांकी संग्रह
    • 23 जीवनियाँ, 5 यात्रा वृतांत, 13 बाल एकांकी, आदि

कालजयी रचना: ‘आवारा मसीहा’

  • शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी
  • 14 वर्षों तक गहन शोध
  • इस कृति ने उन्हें अमर साहित्यकारों की पंक्ति में खड़ा किया

चर्चित कृतियाँ

उपन्यास:

  • अर्धनारीश्वर
  • कोई तो
  • परछाई
  • तट के बंधन
  • दर्पण का व्यक्ति

कहानी संग्रह:

  • एक कहानी का जन्म
  • सफ़र के साथी
  • खंडित पूजा
  • रहमान का बेटा

नाटक:

  • नवप्रभात
  • बंदिनी
  • कुहासा और किरण
  • समाधि
  • सीमा रेखा

कविता संग्रह:

  • चलता चला जाऊंगा

भाषा शैली और विशेषता

  • सरल, सटीक और प्रभावशाली भाषा
  • सामाजिक, मानवीय और राष्ट्रवादी विचारों की गहराई
  • मानवतावादी दृष्टिकोण प्रमुख विशेषता

सम्मान और पुरस्कार

  • सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1976)
  • साहित्य अकादमी सम्मान (1993)
  • महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (1995)
  • पद्मभूषण (2004)
  • ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी सम्मान

विवाद:
2005 में राष्ट्रपति भवन में कथित दुर्व्यवहार के विरोध में पद्मभूषण लौटाने की घोषणा।


देहदान और अंतिम विदाई

  • विष्णु प्रभाकर ने अंगदान की इच्छा व्यक्त की थी।
  • 11 अप्रैल 2009 को निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर AIIMS को सौंपा गया
  • अंतिम संस्कार नहीं किया गया — एक सच्चे समाजसेवी की अंतिम अभिव्यक्ति।

विरासत

‘विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान’ के माध्यम से उनका परिवार आज भी साहित्य के संवर्धन में लगा है। नवांकुर रचनाकारों को ‘विष्णु प्रभाकर स्मृति सम्मान’ से नवाजा जाता है।

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