थल सेना की अहमियत
नई दिल्ली, 9 सितंबर (हि.स.)। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने एक बार फिर दोहराया कि किसी भी युद्ध में थल सेना की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। उन्होंने कहा कि भारत के सामने ढाई मोर्चों का खतरा है और इसीलिए जमीन ही हमेशा जीत का आधार रहेगी।
युद्ध की अप्रत्याशितता
जनरल द्विवेदी ने नई दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय प्रबंधन संघ के 52वें राष्ट्रीय प्रबंधन सम्मेलन में कहा कि युद्ध हमेशा अप्रत्याशित होता है। लंबे युद्धों के लिए संसाधनों की उपलब्धता और तकनीकी श्रेष्ठता आवश्यक है। उन्होंने कहा कि कम लागत वाली उच्च तकनीक भी किसी बड़े प्रतिद्वंद्वी को मात दे सकती है।
थिएटराइजेशन पर जोर
उन्होंने कहा कि युद्ध केवल सेना नहीं लड़ती बल्कि सीमा सुरक्षा बल, आईटीबीपी, साइबर और स्पेस एजेंसियां, इसरो, रेलवे और प्रशासनिक संस्थाएं भी इसमें शामिल होती हैं। इतने बड़े तंत्र को संभालने के लिए सेनाओं का थिएटराइजेशन जरूरी है ताकि कमान की एकता बनी रहे।
तकनीक और आत्मनिर्भरता
सेना प्रमुख ने तेजी से बदलती तकनीक का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे-जैसे प्रतिद्वंद्वी अपनी तकनीक बढ़ा रहा है, हमें भी आत्मनिर्भरता के साथ अपनी क्षमता को और आगे ले जाना होगा। 100 किलोमीटर की मारक क्षमता कल 300 किलोमीटर तक पहुंचनी चाहिए।
संदर्भ और उदाहरण
उन्होंने अलास्का में हुई अमेरिका-रूस वार्ता और ईरान-इराक युद्ध का उदाहरण देकर युद्धों की अनिश्चितता समझाई। साथ ही, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र करते हुए कहा कि इसने पाकिस्तान और आतंकवादी ढांचे को स्पष्ट संदेश दिया।