झाड़ग्राम में ऐतिहासिक पूजा
झाड़ग्राम जिले के बालीपाल ग्राम में स्थित केंदुआबुड़ी पूजा लगभग 500 वर्ष पुरानी है। यही पूजा क्षेत्र में दुर्गोत्सव की शुरुआत का संकेत देती है। यह स्थल केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और संस्कृति का अद्भुत संगम है।
पूजा की प्राचीन परंपरा
स्थानीय कथा अनुसार प्राचीन काल में बालीपाल के राजा युद्ध से लौटते समय नीम के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे। तब देवी केंदुआबुड़ी प्रकट हुईं और उन्हें फल खाने को दिया। देवी ने राजा को इस स्थान पर पूजा आरंभ करने का आदेश दिया। तभी से यह स्थल केंदुआबुड़ी थान के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
अनूठी परंपराएं
हर मंगलवार और शनिवार को विशेष पूजा होती है। यहां ब्राह्मण नहीं, बल्कि बागदी समुदाय के पुरोहित, जिन्हें देहुरी कहा जाता है, पूजा संपन्न करते हैं। प्रसाद में फल और कच्चा चावल अर्पित किया जाता है, अन्यत्र प्रचलित खिचड़ी या भोग नहीं।
आध्यात्मिक महत्ता
केंदुआबुड़ी थान आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच आस्था और एकता का प्रतीक है। दुर्गोत्सव की शुरुआत इसी पूजा से होने के कारण इसकी आध्यात्मिक महत्ता और बढ़ जाती है। नवमी की रात को देवी स्वयं प्रसाद ग्रहण करती हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आज की स्थिति
भले ही मंदिर भव्य न हो, परंपरा और आस्था अत्यंत प्राचीन है। पूजा के समय लोकगीत, नृत्य और कथाएं सुनाई देती हैं। दूर-दराज के गांव से श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं और माता के दर्शन कर धन्य महसूस करते हैं।