द्वापर युग से जल रही आस्था
उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में जालौन वाली माता मंदिर शारदीय नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बनता है। मान्यता है कि द्वापर युग में महर्षि वेदव्यास ने इस मंदिर की स्थापना की थी। पांडवों ने वनवास के दौरान यहां तपस्या की और मां ने उन्हें आशीर्वाद दिया। तभी से इस मंदिर में मां की ज्योति निरंतर प्रज्वलित मानी जाती है।
डकैतों की रही परंपरा
वरिष्ठ पत्रकार बीरेन्द्र सेंगर बताते हैं कि बीहड़ में स्थित इस मंदिर को “डकैतों का मंदिर” भी कहा जाता है। चंबल और यमुना किनारे सक्रिय कुख्यात डकैत फूलन देवी, निर्भय गुर्जर, मलखान सिंह और अन्य नवरात्र में यहां पूजा करते और मन्नत मांगते थे। परंपरा के अनुसार, डकैतों के दर्शन के दौरान पूरे बीहड़ में गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थी।
सुरक्षा और शांति का दौर
पिछले दो दशकों में पुलिस अभियान के कारण बड़े गिरोह समाप्त हुए और बीहड़ दस्यु मुक्त हुआ। अब मंदिर में शंख-घंटियों की आवाज़ सुनाई देती है, जो श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति को दर्शाती है।
नवरात्र में श्रद्धालुओं का सैलाब
अयाना गांव के इतिहासकार हर्षवर्धन सिंह के अनुसार, जालौन वाली माता का मंदिर दूर-दराज़ के श्रद्धालुओं का केंद्र है। नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है। जालौन, औरैया, कानपुर देहात, झांसी, ग्वालियर और भिंड-मुरैना के लोग “जवारे” सिर पर रखकर पैदल दर्शन करने आते हैं।