सुलतानपुर। उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले में आयोजित ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव स्थानीय संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब का प्रतीक बन चुका है। महोत्सव की शुरुआत परंपरागत रूप से आठ कहारों की डोली से होती थी, जिसमें मूर्तियों को उठाने के लिए आठ कहार एक साथ लगते थे। आज यह परंपरा ट्रैक्टरों पर बिजली की झांकियों के माध्यम से आधुनिक रूप में दिखाई जाती है।
केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के महामंत्री सुनील श्रीवास्तव ने बताया कि भिखारीलाल सोनी द्वारा स्थापित यह महोत्सव आज भी मजबूत परंपरा के रूप में जीवित है। महोत्सव में मुस्लिम समुदाय के लोग भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हैं, जिससे सुलतानपुर में सौहार्द और सामुदायिक सहयोग की मिसाल कायम होती है।
दशमी के दिन मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, लेकिन नौ दिन पहले से ही शहर रामलीला मैदान में रामलीला की झांकियों का आयोजन होता है। इसके बाद सात दिनों तक दुर्गा पूजा मेला चलता है, जिसमें भरत-मिलाप सहित विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
1983 के बाद से महोत्सव में शहर के मंदिरों का दृश्य, पंडाल और झांकियों की सजावट स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार की जाती है। इस पर करीब दस लाख रुपये का खर्च आता है और दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं के लिए विशाल भंडारे और अन्य आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं।
महोत्सव का समापन सीताकुंड घाट पर विसर्जन समारोह के साथ होता है, जिसे देखने के लिए आसपास के जिलों से हजारों लोग आते हैं। शहर में इस दौरान पूरी उत्सव धूम रहती है और हर गली, हर कोना महोत्सव की रंगत से जगमगाता है।
सुलतानपुर का यह महापर्व अब केवल हिन्दुओं का नहीं, बल्कि पूरे जिले का गौरव और पहचान बन चुका है, जो परंपरा, संस्कृति और सामूहिक सौहार्द का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।