भोपाल, 10 अक्टूबर।
मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही टिप्पणियों को राज्य सरकार ने भ्रामक और असत्य करार दिया है। सरकार ने बुधवार को इस मामले में स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि ये सामग्री न तो राज्य के हलफनामे का हिस्सा है और न ही किसी आधिकारिक नीति या निर्णय से जुड़ी है।
दरअसल, सोशल मीडिया पर यह दावा किया जा रहा था कि ओबीसी आरक्षण प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हलफनामे में राज्य सरकार ने वर्ण व्यवस्था पर टिप्पणी की है। इन दावों को खारिज करते हुए सरकार ने कहा कि वायरल की जा रही सामग्री भ्रामक है और दुष्प्रचार की भावना से फैलाई जा रही है।
राज्य शासन ने स्पष्ट किया कि यह सामग्री वास्तव में मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग (महाजन आयोग) की वर्ष 1983 की अंतिम रिपोर्ट का हिस्सा है, जिसे पहले भी उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में अभिलेख के रूप में प्रस्तुत किया जा चुका है। सरकार ने बताया कि आयोग ने 35% आरक्षण की अनुशंसा की थी, जबकि राज्य में 27% आरक्षण लागू है। इससे स्पष्ट है कि सरकार का निर्णय महाजन आयोग की अनुशंसा पर आधारित नहीं है।
प्रशासन ने कहा कि समय-समय पर गठित विशेषज्ञ समितियों और आयोगों की रिपोर्टें न्यायालय में प्रस्तुत की जाती रही हैं। लेकिन इन रिपोर्टों के अंशों को तोड़-मरोड़कर सोशल मीडिया पर गलत तरीके से पेश करना निंदनीय है।
मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि वह ‘सबका साथ, सबका विकास’ और सामाजिक सद्भावना के प्रति प्रतिबद्ध है। साथ ही चेतावनी दी कि इस तरह के दुष्प्रचार के खिलाफ गंभीरता से जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।