रामानुजगंज में गोबर-मिट्टी के इको-फ्रेंडली दीयों की चमक
बलरामपुर, 11 अक्टूबर (हि.स.)। इस दीपावली, छत्तीसगढ़ के रामानुजगंज जिले की महिलाएं गोबर और मिट्टी से इको-फ्रेंडली दीये तैयार कर रही हैं। ये दीये न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि महिलाओं की आजीविका और आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा दे रहे हैं।
महिलाओं की पहल और दीयों की बनावट
रामानुजगंज स्थित एसआरएलएम (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) केंद्र से जुड़ा प्रगति वन स्व-सहायता समूह पिछले चार वर्षों से गोबर और मिट्टी से सुंदर और टिकाऊ दीये बना रहा है। इन दीयों को रंग-बिरंगे कलर और पारंपरिक डिज़ाइन से सजाया जाता है।
महिलाओं का कहना है कि इस काम से उनकी आमदनी बढ़ती है और आत्मनिर्भर बनने का आत्मविश्वास भी मिलता है। पिछले साल ये दीये 2 रुपये प्रति दीया बिकते थे, जबकि इस बार कच्चे माल की बढ़ती लागत के कारण कीमत 3 रुपये प्रति दीया रखी गई है।
पर्यावरण और समाज पर असर
एसआरएलएम प्रभारी विनोद केशरी ने बताया कि ये महिलाएं आमतौर पर डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण का काम करती हैं। दीपावली के समय ये अतिरिक्त गतिविधियों में भाग लेकर दीयों का निर्माण करती हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी मिलती है। साथ ही, यह कार्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी मददगार है।
दीपावली पर रोशनी और सशक्तिकरण
इस दीपावली, जब रामानुजगंज की महिलाओं द्वारा बनाए गए ये दीये घरों और आंगनों में जलेंगे, तो न केवल रोशनी फैलेगी बल्कि महिलाओं के परिश्रम और सशक्तिकरण की चमक भी चारों ओर बिखरेगी। यह पहल साबित करती है कि रचनात्मकता और लगन से साधारण सामग्री भी कमाई और पर्यावरण संरक्षण का साधन बन सकती है।