संगीत और लोक संस्कृति का संगम
छत्तीसगढ़ रजत महोत्सव के तीसरे दिन नवा रायपुर का राज्योत्सव स्थल संगीत और संस्कृति की चमक से जगमगा उठा। राज्य की स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित इस महोत्सव में सोमवार की रात लोक धुनों और आधुनिक संगीत का अद्भुत मेल देखने को मिला।
भूमि त्रिवेदी ने मचाया सुरों का जादू
बॉलीवुड की प्रसिद्ध पार्श्व गायिका भूमि त्रिवेदी ने अपनी मनमोहक आवाज़ से दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने “ससुराल गेंदा फूल”, “राम चाहे लीला” और “डम-डम ढोल बाजे” जैसे गीतों से माहौल को जोश से भर दिया। छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत की लय के साथ उन्होंने युवा दर्शकों के दिलों में संगीत की नई तरंग पैदा की।
ऊषा बारले की पंडवानी ने बांधा समां
इसके बाद पद्मश्री ऊषा बारले ने अपनी अभिव्यक्ति और स्वर से महाभारत की गाथा को जीवंत कर दिया। उनकी पंडवानी की प्रस्तुति में वीरता, करुणा और भक्ति का अनोखा समावेश था। “चीरहरण” प्रसंग की मार्मिक प्रस्तुति पर पूरा सभागार भावविह्वल हो उठा।
सूफी और लोक धुनों की रूहानी छुअन
सूफी गायक राकेश शर्मा और उनकी टीम ने “दमादम मस्त कलंदर” और “मौला मेरे मौला” जैसे गीतों से श्रोताओं को रूहानी यात्रा पर ले गए। वहीं, लोक कलाकार कुलेश्वर ताम्रकार ने “नाचा” नृत्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ की माटी की खुशबू मंच पर बिखेरी।
दर्शकों की तालियों से गूंज उठा नवा रायपुर
रात गहराती रही और संगीत थमता नहीं दिखा। तालियों, नृत्य और मुस्कान से नवा रायपुर का राज्योत्सव स्थल गूंजता रहा। छत्तीसगढ़ रजत महोत्सव ने एक बार फिर साबित किया कि यहां की माटी में ही कला, संस्कृति और सुरों की आत्मा बसती है।




